प्राचीन विश्व की वेधशालाएं
पता लगा है कि मिस्त्र के पिरामिड केवल मिस्त्री सम्राटों के कब्रगाह नहीं हैं वरन यह ज्यामितीय आधार पर बनी हुई विशिष्ट वेधशालाएं हैं इनकी आकृति अलग अलग प्रकार के ग्रह नक्षत्रों के आधार अध्यन करके बनायी गई हैं एक जर्मन वैज्ञानिक का कहना है कि पिरामिड के फलक कुछ इस तरह बनाए गए हैं की उनकी धारियों को विषम शंख्या से गुना कर के आकाशगंगा के कुल तारों की संख्या के बारे में जाना जा सकता है .... गिजा के पिरामिड में एक फलक पर प्रचीन मिस्त्री लिपि में एक सूत्र अंकित है... जिसके माध्यम से धरती का द्रव्यमान गुरुत्व और सौरमंडल की स्थिति के बारे में जाना जा सकता है....एक फ्रेच वैज्ञानिक के अनुसार पिरामिड एक अदभुत वेधशाला है इसके शीर्ष की छाया जहाँ जहाँ पड़ती है वहां से ब्रह्मांड के बारे में बहुत कुछ जाना जा सकता है
पिरामिड बनाने की परम्परा सिर्फ मिस्त्र में नहीं रही है इन्का में भी कुशल शिल्पकार भी पिरामिड बनाया करते थे उनके बनाए पिरामिडों के खंडहरों में आज भी खगोलीय गणना देखी जा सकती है....... पेरू में हुई खुदाई में भी एक अजीब सरंचना मिली है........यह सरंचना हिसाब से बनायी गयी है कि इस की सीढियों को गिन कर व शीर्ष स्थान की लम्बाई चौडाई जान कर प्रत्येक वर्ष केदिनों ,घंटों .मिनटों को सेकंड तक को गिना जा सकता है ......यही नहीं अंकित चिन्हों के द्वारा विभिन्न राशियों की संख्या व आकाश को उनकी को भी जाना जा सकता है यह हमें ज्ञात होना चाहिए कि दुनिया को पहला सौर केलेंडर इन्का द्वारा की सभ्यता द्वारा ही बनाया गया था ...
सौर कैलेंडर केअलावा समय तथा लम्बाई की नाप तौल के लिए एक प्रमाणिक पद्धति भी विकसित कर ली थी
निश्चित ही यह उन्नत, वेधशालाओं के जरिये से ही संभव हो पाया होगा ..पेरू में ही इस्टर आइलैंड में एक प्रस्तर स्तंभ मिला है जिस पर एक चक्र जैसी आकृति बनी हुई है जिस के बारे में कहा जाता है कि यह एक विशिट खगोल यंत्र है जो इन्का लोगों के द्वारा सौरमंडल की गणनाओं के लिए बनाया गया होगा ...ऐसा लगता है कि पेरू के निवासी इन्का लोग खगोल तथा वेधशालाओं के मामले में सम्भवता अधिकांश विकसित होंगे .
पुराने समय में खगोल विज्ञान भारत में अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्तकर चुका था आर्य भट्ट, भास्कराचार्य ,वराहमिहिर ,जगन्नाथ मिश्र और वसुमित्र जैसे विद्वानों द्वारा बनाए गए सिद्धांत आज भी अकाट्य है अब जब इतना भारत था खागोल विज्ञान विकसित हुआ तो यहाँ भी उन्नत वेधशालाएं बनी होंगी ... बताया जाता है कि दिल्ली का कुतुबमीनार भी एक वेधशाला है पुरात्व विदों की धारणा है कि इसको विक्रमादित्य के समय में वराहमिहिर द्वारा निर्मित कराया गया था पहले इसकी सात मंजिले थी और तब इसको सौर स्तंभ कहा जाता था ज्ञात हुआ है कि सौर स्तंभ यानी कुतुब मीनार का निर्माण सौरमंडल सम्बन्धी गणनाओं और पंचाग तैयार करने के लिए किया गया था ..जंतर मंतर तो एक वेधशाला है ही इसके विभिन्न यंत्र विशेष कर सम्राट यंत्र आज भी उपयोगी है और आंकलन करने पर नक्षत्रों के विषय में जानकारी एक सही देते हैं रजा जयसिंह द्बारा जंतर मंतर जैसी ही कई अन्य वेधशालाओं का निर्माण कराया गया था जो अब नष्ट हो चुकी है
पुराने समय की वेधशालाओं के बारे में ख़ास बात यह है कि इन में से कुछ आज भी उपयोगी है यदि इन प्राचीन वेधशालाओं पर अंकित चिन्हों और उनकी विशिष्ट ज्यामितीय सरंचना को समझ लिया जाए तो आज भी हमें बहुत उपयोगी जानकारी ब्रह्मांड के बारे में मिल सकती है जिस को करोडो अरबों रुपये खर्च कर के भी प्राप्त करना संभव नहीं है बस जरुरत है जिज्ञासा कि प्रवति को कायम रखते हुए निरंतर अनुसन्धान की .और सहनशीलता की
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