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Wednesday, May 22, 2013


शीघ्र ही मिल जायेगी मृत्यु पर विजय





स संकल्पना को यथार्थ रूप में परिणत करने के लिए जमीन उपलब्ध हो गयी है। उस उम्मीद की किरण का नाम है “क्रायोनिक्स तकनीक”। एल्कर फाउंडेशन विश्व का पहला केन्द्र है, जो क्रायोजनिक तकनीक के जरिए नए नए फ्रेंकेंस्टाइन तैयार करने के लिए मृत देहों को सहेज रहा है।

क्रोयोनिक्स तकनीक को समझने से पहले मौत की शरीरिक रासायनिक प्रक्रिया को समझना आवश्यक है। हमारा पूरा शरीर कोशिकाओं से मिलकर बना है। कोशिकाओं को रक्त से पोषण मिलता है। प्रत्येक कोशिका एक बैटरी की तरह है, जिसमें निश्चित मात्रा में ऊर्जा संग्रहीत होती है। अगर रक्त से कोशिकाओं को पोषक तत्व की आपूर्ति रूक जाए, तो कुछ समय बाद रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप हमारी कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं। इसी वजह से ही व्यक्ति की मौत हो जाती है। पोषण बंद होने के बाद कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने के बीच का यह समय बहुत अल्प अवधि का होता है, जिसे ग्रेस पीरियड कहते हैं। इस दौरान यदि डाक्टर “कार्डियो पलमोनरी रिससरिटेशन” सी0पी0आर0 उपलबध करा दें, तो कोशिकाओं को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। सी0पी0आर0 के तहत फेफड़ों में आक्सीजन प्रवेश कराकर पूरे शरीर में रक्त के प्रवाह को सुचारू किया जाता है। इससे कोशिकाओं तक आक्सीजन के रूप में पोषण पहुंच जाता है और कोशिकाओं के ठप पावर हाउस फिर से ऊर्जा का उत्पादन शुरू कर देते हैं और वे नष्ट होने से बच जाती हैं।

इस सम्पूर्ण प्रक्रिया का विस्तृत स्वरूप ही क्रायोनिक्स के नाम से जाना जाता है। इसमें शरीर का तापमान स्थिर रखा जाता है। कम तापमान पर ग्रेस पीरियड की अवधि बढ़ जाती है क्योंकि जहरीली रासायनिक क्रियाओं की गति मंद हो जाती है। भले ही व्यक्ति की धड़कनें बंद हो गयी हों या वह सांस नहीं ले रहा हो। लेकिन इस तकनीक में उसके शरीर को तरह नाइट्रोजन के जार में माइनस 370 डिग्री फॉरेनहाइट के अत्यंत निम्न तापमान पर रखा जाता है। सारा ध्यान मस्तिष्क की कोशिकाओं को नष्ट होने से बचाने पर दिया जाता है।
व्यक्ति की चिकित्सकीय मापदण्डों के अनुसार मृत्यु होते ही उसके शरीर में दवा और पोषक तत्व इंजेक्शन के द्वारा प्रविष्ट करा दिये जाते हैं और उनके जमने की प्रक़िया शुरू हो जाती है। एक विशेष रक्षात्मक द्रव पूरे शरीर में डाल दिया जाता है और मृत शरीर को एक बड़े टैंक “डिवार” में बंद कर दिया जाता है। डिवार में द्रव नाइट्रोजन भरी होती है। इस तरह से मूल शरीर को सुरक्षित करने वाली तकनीक क्रायोनिक्स सम्पन्न होती है और इसके साथ ही पुनर्जीवित होने का एक चरण समाप्त होता है।

दूसरा चरण नैनो टेक्नालॉजी कहलाता है। इस तकनीक के द्वारा भविष्य में जब चहों तब मृत शरीर को जीवित किया जा सकता है। इसमें “माइक्रोमिनीएच्यूराज्ड मशीन” को रूधिर वाहिनियों में इंजेक्शन के जरिए प्रवेश करा दिया जाता है। अत्यंत सूक्ष्म आकार के ये रोबोट कोशिकाओं तक जा पहुंचते हैं। वहां ये रोबोट कम तापमान, बीमारी या बुढ़ापे के कारण क्षतिग्रस्त हुई कोशिका की मरम्मत करके उसे स्वस्थ अवस्था में ले जाते हैं। अभी यह तकनीक परीक्षण के स्तर पर ही है और वैज्ञानिक इस दिशा में दिन-रात अनुसंधानरत हैं। वैज्ञानिकों को विश्वास है कि इस तकनीक के जरिए मृत व्यक्ति बिलकुल भला-चंगा, पूरी तरह से स्वस्थ अवस्था में जीवित किया जा सकेगा। इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों को विश्वास है कि वे इस प्रौद्योगिकी के द्वारा अगली सदी तक मौत पर विजय प्राप्त कर लेंगे।


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INDIA-RUSSIA, India
Researcher of Yog-Tantra with the help of Mercury. Working since 1988 in this field.Have own library n a good collection of mysterious things. you can send me e-mail at alon291@yahoo.com Занимаюсь изучением Тантра,йоги с помощью Меркурий. В этой области работаю с 1988 года. За это время собрал внушительную библиотеку и коллекцию магических вещей. Всегда рад общению: alon291@yahoo.com