भारत में खगोल विज्ञान का विकास
पाषाण सभ्यता के भारत से सम्बन्ध स्थापित करने से पहले कुछ और तथ्यों पर नजर डाल लेना उचित होगा। मानव के विकास के क्रम में पाषाण काल जबकि वह अपने मुख्य क्रिया-कलापों के लिए पत्थरों का प्रयोग कर रहा था, काफी महत्वपूर्ण है। यह पाषाण संस्कृति विभिन्न चरणों में विश्व के प्रत्येक भाग में विद्यमान थी, और मानव की एक मूल प्रजाति होने के कारण इनके स्वरुप और प्रयोग में समानता भी स्वाभाविक थी. मगर इसका यह मतलब नहीं कि पाषाण युग का एक चरण पुरे विश्व में एक साथ आरम्भ हुआ और अचानक ही बटन दबा और और विश्व एक नए चरण में पहुँच गया. हर महाद्वीप में स्थानीय प्रकृति के अनुरूप इसका कालक्रम अलग रहा होगा.
कतिपय कारणों से हमारे देश में इतिहास का प्रारंभ चित्रलिपि मिलने या 'वेदों' के आगमन यानि लिपि के अविष्कार के बाद से ही स्वीकार जाता है। फलतः इससे पूर्व की सभ्यता जिसने अपने विकास के चिह्न पत्थरों पर छोड़े, वो आसानी से भुला दी गयीं। विकास के चरणों से गुजरती हुई एक सभ्यता जो वेदों जैसे साहित्य के सृजन में सक्षम हुई, दुर्भाग्यवश उसकी काफी कम जानकारी ही उपलब्ध है. फिर भी कर्णाटक, नागपुर, कश्मीर, झाड़खंड और उत्तर-पूर्व के अनछुए हिस्सों में महापाषाण कालीन अवशेष जिनमें स्टोन सर्कल, मेनहिर, डौलमैन आदि शामिल हैं, प्राप्त हुए हैं. प्रारंभिक दृष्टि में इन्हें 'शवाधान' से ही जुडा पाया गया है, किन्तु इनकी खगोलीय महत्ता के भी पर्याप्त संकेत मिले हैं. इसप्रकार इन महापाषाणों ने ही भविष्य की वेधशालाओं की नींव रखी.
अब प्राकैतिहासिक काल से रुख करें प्राचीन भारत की ओर जो खगोलविज्ञान की दृष्टि से 'स्वर्णयुग' था। इस पर हम संछिप्त ही चर्चा करेंगे क्योंकि रंजना जी ने यहाँ पहले ही विस्तृत जानकारी दे रखी है.
लगभग 4500 BC में 'शरद विषुव' से नव वर्ष की शुरुआत का उल्लेख मिलता है, जो सूर्य की गति पर ही आधारित था। लगभग 1800 BC में याज्ञवल्क्य ने सूर्य और चंद्रमा की गति का सिद्धांत दिया था। नालंदा विश्वविद्यालय और उज्जैन खगोल शास्त्र के अध्ययन के महत्वपूर्ण केंद्र थे, जिनसे आर्यभट, ब्रह्मगुप्त और भाष्कर जुड़े रहे।
गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत देने वाले ब्रह्मगुप्त ने 7 वी सदी में ही सिद्ध कर दिया की पृथ्वी की परिधि 5000 योजन है। 1 योजन यानि 7.2 किमी से जरा गणना करके देखें वर्तमान निर्धारित परिधि 40000 किमी के काफी करीब पाएंगे. कालांतर में विदेशी आक्रमणों और पराधीनता ने भारत के स्वतंत्र चिंतन को प्रभावित किया और विज्ञान और गणित में विश्व को उल्लेखनीय योगदान देने वाला खगोल विज्ञान सिर्फ ज्योतिष और कुंडली तक सिमट कर रह गया.
मगर कितनी भी अँधेरी रात हो, कभी-न-कभी ख़त्म होती ही है. तो कहानी अभी बाकी है....
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