क्या आपको मालूम है कि इस यूनिवर्स में आपकी कापी मौजूद है? आप यहां कम्प्यूटर पर बैठे ब्लाग पढ़ रहे हैं और आपकी वह कापी मैदान में फुटबाल खेल रही है?
जी हाँ। वैज्ञानिकों ने कॉसमास का जो सबसे आसान माडल गणितीय गणनाओं के आधार पर बनाया है उसमें ऐसा संभव है। और आपकी वह कॉपी कुछ इतने मीटर की दूरी पर है कि आप 1 लिखकर उसके आगे 29 शून्य लगा दें और फिर 10 को इतनी बार गुणा कर दें। साइंस की इस थ्योरी का नाम है समान्तर ब्रह्माण्ड (Parallel Universe) जिसमें हमारे ब्रह्माण्ड से इतर ब्रह्माण्डों की कल्पना की गयी है।
दरअसल इंसान जब सितारों से भरे यूनिवर्स को देखता है तो उसके दिमाग में सवाल उठता है,
‘क्या सिर्फ यही ब्रह्माण्ड है?’ इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश जब वैज्ञानिक करते हैं तो पैदा होता है समान्तर ब्रह्माण्ड का सिद्धान्त।
‘क्या सिर्फ यही ब्रह्माण्ड है?’ इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश जब वैज्ञानिक करते हैं तो पैदा होता है समान्तर ब्रह्माण्ड का सिद्धान्त।
वर्तमान में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जो सर्वाधिक मान्य थ्योरी है वह है बिग बैंग का सिद्धान्त। जिसकेअनुसार आज से लगभग 14 मिलियन साल पहले एक महाविस्फोट हुआ था जिससे ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ औरतब से यह ब्रह्माण्ड लगातार फैल रहा है। इस समय के अनुसार जब गणना की गयी तो मालूम हुआ किसर्वाधिक दूर वस्तु जो हम देख सकते हैं हमारी आँखों से इतने मीटर दूर है कि चार के आगे 26 शून्य जोड़ दियेजायें। इस अधिकतम दूरी के गोले को नाम दिया गया है हब्बल वोल्यूम।
वैज्ञानिकों ने कल्पना की है कि हब्बल वोल्यूम यानि हमारा यूनिवर्स एक अनन्त विस्तारित मल्टीवर्स (बहुब्रह्माण्ड)का बहुत छोटा सा हिस्सा है। मल्टीवर्स में हमारे यूनिवर्स जैसे अनेक यूनिवर्स हैं। सभी में भौतिकी के नियम एकजैसे पाये जाते हैं। यानि गुरुवाकर्षण नियम, कूलाम्ब नियम जैसे नियम दूसरे ब्रह्माण्डों में भी उसी प्रकार हैं जिसप्रकार हमारे ब्रह्माण्ड में। फर्क है तो प्रारम्भिक अवस्थाओं का। यानि एक यूनिवर्स में कोई व्यक्ति सुबह देर तकसो रहा है तो हो सकता है दूसरे यूनिवर्स में वही व्यक्ति सुबह उठकर जागिंग करने चला जा रहा है।
ये तो इस थ्योरी की शुरुआत भर है। दरअसल समान्तर ब्रह्माण्ड की पूरी थ्योरी को चार लेवेल में रखा गया है औरअभी हमने जिस यूनिवर्स की बात की वह था लेवेल एक का यूनिवर्स।
इससे पहले कि दूसरे लेवेल्स की बात की जाये, ये बताना जरूरी है कि समान्तर ब्रह्माण्ड के ये लेवेलकिस आधार पर बनाये गये हैं।
भौतिक विज्ञान के आधार पर अगर कई ब्रह्माण्ड मौजूद हैं तो हर ब्रह्माण्ड में कुछ भौतिकी केनियम होते हैं और कुछ प्रारम्भिक अवस्थाएं होती हैं जिनसे उत्पन्न होकर वह आगे विकास करता है।इस तरंह लेवेल एक के ब्रह्माण्ड वे हुए जिनमेंभौतिकी के नियम तो एक ही जैसे होंगे किन्तु प्रारम्भिक अवस्थाएं अलग अलग होंगी।
अब बात करते हैं दूसरे लेवेल की। इस लेवेल में कल्पनानुसार अनन्त ब्रह्माण्ड बिग बैंग विस्फोट द्वारा पैदा होते रहते हैं और फिर समाप्त हो जाते हैं। ठीक उसी तरंह जैसे पानी में बुलबुले पैदा होते रहते हैं और फिर नष्ट हो जाते हैं। इन बुलबुले रूपी ब्रह्माण्डों में भौतिकी के नियम तो समान रूप से लागू होते हैं किन्तु उनके नियतांकों का मान अलग अलग होता है। मिसाल के तौर पर हमारे ब्रह्माण्ड में प्रोटॉन इलेक्ट्रान से दो हजार गुना भारी होता है। हो सकता है दूसरे ब्रह्माण्ड में यह बीस हजार गुना भारी हो। साथ ही विमाओं की दृष्टि से भी एक ब्रह्माण्ड दूसरे से अलग होता है। सबसे खास बात ये कि यदि एक ब्रह्माण्ड में रहने वाला कोई भी व्यक्ति प्रकाश के वेग से भी यात्रा करे तो भी दूसरे ब्रह्माण्ड तक नहीं पहुंच सकता। क्योंकि ब्रह्माण्डीय बुलबुले के फैलने की रफ्तार प्रकाश के वेग से कहीं ज्यादा होगी। यानि दूसरे ब्रह्माण्ड की किसी घटना को देख पाना संभव नहीं। (फिलहाल! भविष्य के बारे में कौन जानता है।)
तीसरे लेवेल का यूनिवर्स क्वांटम भौतिकी पर आधारित है, और न सिर्फ वर्तमान बल्कि भविष्य के ब्रह्माण्ड की भीतस्वीर सामने रखता है। इस थ्योरी में भविष्य में घटने वाली कोई भी घटना वर्तमान घटना से गणितीय रूप में जुड़ी होती है और उसके साथ एक प्रोबेबिलिटी (संभावना) भी जुड़ी रहती है कुछ कुछ हिन्दी फिल्मों की कहानी की तरंह, जिनमें एक लड़की और दो लड़कों के बीच लव ट्राईएंगिल शुरू होता है। इस कहानी के कितने अंजाम संभव हो सकते हैं, उतने ही लेवेल थ्री के यूनिवर्स बन जाते हैं।
लेकिन तीनों लेवेल भौतिक विज्ञानियों और आम मनुष्य के एक प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हैं। वह है हमारे यूनिवर्स की फाइन ट्यूनिंग।
फाइन ट्यूनिंग की समस्या हल करते हुए यूनिवर्स के चौथे लेवेल का विचार ज़हन में आता है। इस लेवेल में प्रत्येक ब्रह्माण्ड का अपना एक अलग गणितीय माडल होता है। उस ब्रह्माण्ड के सभी भौतिक नियम उस माडल के अनुसार होते हैं। दूसरे ब्रह्माण्ड का गणितीय माडल बदल जाता है नतीजे में वहां के नियम भी उसी प्रकार से बदल जाते हैं। अब चूंकि गणितीय माडल अनन्त तरंह के मुमकिन हैं इसलिए ब्रह्माण्ड के स्ट्रक्चर भी अनन्त तरंह के हुए, जिनका अध्ययन वही कर सकता है जिसके पासअनन्त बुद्धिमता हो।
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