पृथ्वी का भोगोलिक मानचित्र: वेद व्यास द्वारा
यदि पृथ्वी के भोगोलिक मानचित्र की बात की जाये तो माना जाता है की क्रिस्टोफ़र कोलंबस (31 अक्टूबर 1451 – 20 मई 1506) ने पृथ्वी का प्रथम भोगोलिक मानचित्र बनाया अर्थात लगभग 525 वर्ष पूर्व ।
अब में मुद्दे पर आता हूँ । महाभारत का समय कम से कम 5000 वर्ष ईसा पूर्व अर्थात आज से कम से कम 7000 वर्ष पूर्व का माना जाता है उसी समय महान दिव्यद्रष्टा ऋषि वेद व्यास ने महाभारत नामक धार्मिक व एतिहासिक ग्रन्थ की रचना की । जिसमे उन्होंने स्पष्ट रूप से पृथ्वी की भोगोलिक स्थति का उल्लेख किया ।
उन्होंने लिखा :
सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।
—वेद व्यास, भीष्म पर्व, महाभारत
अर्थात: हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे महान शश(खरगोश) दिखायी देता है। अब यदि उपरोक्त संरचना को कागज पर बनाकर व्यवस्थित करे तो हमारी पृथ्वी का मानचित्र बन जाता है, जो हमारी पृथ्वी के वास्तविक मानचित्र से बहुत समानता दिखाता है|
उपरोक्त मानचित्र ११वीं शताब्दी में रामानुजचार्य द्वारा महाभारत के उपरोक्त श्लोक को पढ्ने के बाद बनाया गया था|
इसके अतिरिक्त श्री विष्णुपुराण में सम्पूर्ण पृथ्वी का विस्तार से उल्लेख मिलता है
यदि पृथ्वी के भोगोलिक मानचित्र की बात की जाये तो माना जाता है की क्रिस्टोफ़र कोलंबस (31 अक्टूबर 1451 – 20 मई 1506) ने पृथ्वी का प्रथम भोगोलिक मानचित्र बनाया अर्थात लगभग 525 वर्ष पूर्व ।
अब में मुद्दे पर आता हूँ । महाभारत का समय कम से कम 5000 वर्ष ईसा पूर्व अर्थात आज से कम से कम 7000 वर्ष पूर्व का माना जाता है उसी समय महान दिव्यद्रष्टा ऋषि वेद व्यास ने महाभारत नामक धार्मिक व एतिहासिक ग्रन्थ की रचना की । जिसमे उन्होंने स्पष्ट रूप से पृथ्वी की भोगोलिक स्थति का उल्लेख किया ।
उन्होंने लिखा :
सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।
—वेद व्यास, भीष्म पर्व, महाभारत
अर्थात: हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे महान शश(खरगोश) दिखायी देता है। अब यदि उपरोक्त संरचना को कागज पर बनाकर व्यवस्थित करे तो हमारी पृथ्वी का मानचित्र बन जाता है, जो हमारी पृथ्वी के वास्तविक मानचित्र से बहुत समानता दिखाता है|
उपरोक्त मानचित्र ११वीं शताब्दी में रामानुजचार्य द्वारा महाभारत के उपरोक्त श्लोक को पढ्ने के बाद बनाया गया था|
इसके अतिरिक्त श्री विष्णुपुराण में सम्पूर्ण पृथ्वी का विस्तार से उल्लेख मिलता है
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