बनारस की वेधशाला और इक्विनौक्स
सम्राट यंत्र
राजा जयसिंह द्वारा स्थापित वेधशालाओं में एक के स्थापित होने का गौरव बनारस को भी प्राप्त है। बनारस के प्रसिद्ध घाटों में एक मानघाट पर राजा मानसिंह द्वारा लगभग 1600 ई. में मानमहल का निर्माण कराया गया. सवाई राजा जयसिंह II द्वारा इसी के एक भाग में वेधशाला का निर्माण 1710 ई. में कराया गया. पुनः इसका जीर्णोद्धार 1911 ई. में महाराजा सवाई माधोसिंह द्वारा कराया गया.
राजा जयसिंह द्वारा स्थापित वेधशालाओं में एक के स्थापित होने का गौरव बनारस को भी प्राप्त है। बनारस के प्रसिद्ध घाटों में एक मानघाट पर राजा मानसिंह द्वारा लगभग 1600 ई. में मानमहल का निर्माण कराया गया. सवाई राजा जयसिंह II द्वारा इसी के एक भाग में वेधशाला का निर्माण 1710 ई. में कराया गया. पुनः इसका जीर्णोद्धार 1911 ई. में महाराजा सवाई माधोसिंह द्वारा कराया गया.
इस वेधशाला के मुख्य यंत्र हैं-(i) सम्राट यंत्र (ii) लघु सम्राट यंत्र (iii) दक्षिणोत्तरभित्ती यंत्र (iv) चक्र यंत्र तथा(v) दिगंश यंत्र .
इस विषुव के अवसर पर इस वेधशाला का भ्रमण एक प्रयोग के ही समान था, क्योंकि इन यंत्रों के उपयोग सम्बन्धी प्रमाणिक जानकारी हमारे पास अप्राप्य थी। फिर भी मैं यहाँ 'दिगंश यंत्र' से जुड़े अपने अनुभव का उल्लेख करना प्रासंगिक समझूंगा।
दिगंश यंत्र एक गोलाकार संरचना है, जिसकी छत आकाश की ओर खुली हुई है। प्रवेश द्वार के सामने दीवार के दूसरी छोर पर एक छोटा झरोखा है, और इनके मध्य एक गोल प्रस्तर खंड पर लोहे की एक छड़ ऊर्ध्वाधर खड़ी है। सूर्योदय होते ही एक अद्द्भुत खगोलीय दृश्य उपस्थित होता है जबकि प्रवेशद्वार पर खड़े आप, छड़ ओर झरोखे में सूर्य एक सीधी रेखा (alignment) में होते हैं।
दिगंश यंत्र
स्पष्ट है कि 'विषुव' के बाद उत्तरायण या दक्षिणायन गति के अनुसार सूर्य का उस झरोखे से दिखना समाप्त हो जाएगा और 'अयनांत' (Solstice) के बाद सूर्य उसी स्थिती की ओर वापस लौटता प्रतीत होगा। ऐसे में इस यंत्र का Equinox से सम्बंध की मेरी अवधारणा एक वास्तविकता भी हो सकती है।
हाँ,यहाँ एक बात का जिक्र करना उल्लेखनीय हो सकता है कि 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' (Archaeological Survey of India) ने वर्त्तमान 5 वेधशालाओं और नालंदा विश्वविद्यालय के ध्वन्शावशेसों को 'विश्व-विरासत स्थल' घोषित करने के प्रयास आरम्भ कर दिए हैं।
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