सामवेद में ऒजोन परत का विवरण
हमारी धरती का वातावरण ,धरती के चारों और एक गिलाफ (आवरण) की तरह चढ़ा हुआ है जो सबसे नीचे धरती की सतह से ,१० कि.मी तक टोपोस्फीअर, १० से ५० किमी तक स्ट्रेटोस्फीअर व ऊपर आयेनो स्फीअर कहलाता है| स्ट्रेटो स्फीअर में ओजोन गैस की सतह होती है जो धरती का एक तरह से सुरक्षा कवच है और सूर्य की घातक अल्ट्रा -वायलेट किरणों से हमारी रक्षा करता है । इसी को धरती की ओजोन छतरी कहा जाता है।
ओजोन गैस(O ३) , प्राण-वायु आक्सीजन का (O २ ) का एक अपर-रूप है जो सारी प्रथ्वी का लगभग ९३% ओजोन सतह में पाई जाती है एवं स्वयं शरीर के लिए आक्सीजन की तरह लाभकारी नहीं है। यह गैस स्ट्रेटो स्फीअर में उपस्थित ऑक्सीजन के सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणों की क्रिया से बनती है ---O2 -+-अ -वा किरणें = 0+0 ;0 + 02 =03- -, यह एक अस्थिर गैस है, इस प्रकार , ओजोन-आक्सीजन चक्र बना रहता है।
अल्ट्रा वायलेट किरणें शरीर के लिए घातक होतीं है , ये सन-बर्न , मोतिया-बिन्दु, त्वचा के रोग व केंसर तथा आनुवंसिक हानियाँ पहुचातीं हैं। नाइट्रस आक्साइड ,क्लोराइड-ब्रोमाइड आदि ओर्गानो-हेलोजन ,जो मुख्यतः री फ्रिरेटर ,ऐ सी ,यूरोसोल पदार्थ ,कोल्ड-स्तोराज से निस्रत सी ऍफ़ सी ( क्लोरो-फ्लोरो कार्बन) के रेडिकल हैं ;ओजोन गैस को केटालाइज करके ओजोन सतह को नष्ट करते हैं और इस सुरक्षा छतरी में छिद्र का कारण बनते हैं। अति-भौतिकता की आधुनिक जीवन शैली के कारण आज उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों के ऊपर बड़े -बड़े छिद्र बन चुके हैं जो मानव जीवन व प्राणी, वनस्पति जीवन के लिए भी घातक हैं। हमें समय रहते अपने पर्यावरण को बछाने हेतु चेतना होगा। इस रक्षक आवरण के बारे में सदियों पूर्व वैदिक -विज्ञान द्वारा चेतावनी दी जा चुकी है। इस ओजोन-छतरी का वर्णन साम-वेद की इस ऋचा में देखिये--
"इमं भ्रूर्णायु वरुणस्य नाभिं ,त्वचं पशूनां द्विपदा चतुश्पदायाँ । त्वस्तुं
-प्रजानां प्रथमं जानित्रमाने मां हिंसी परमे व्योमन॥"---साम वेद १३/५०।
अर्थात --यह प्रथ्वी के चारों और रक्षक आवरण जो स्रष्टि में सर्वप्रथम उत्पन्न वरुणस्य नाभि रूप (उत्पत्ति स्थल -जल ) तथा त्वचा की तरह रहकर, छन्ने की तरह अन्तरिक्ष कणों को प्रविष्ट न होने देकर प्राणियों की रक्षा करता है; उसे ऊर्जा के अनियमित व अति उपयोग से नष्ट न करें ।
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