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Wednesday, August 31, 2022

क्या प्राचीन ऋषियों को समानांतर ब्रह्माण्डों (Parallel Universe) का ज्ञान था ?



भारत की पुरानी धार्मिक परंपरा के तहत दुनिया को मायाजाल बताया गया है, किसी का रचा हुआ करतब या कोई जादू जैसा। इस तरह के मायाजाल या जादू की बात पर एक लोकप्रिय अंग्रेजी किताब की बात भी ध्यान में आती है। लुइस कैरल की 'ऐलिसिज ऐडवैंचर्ज इन वन्डरलैंड', की नायिका ऐलिस एक दर्पण में से गुजरती है और उस पार उसका सामना एक समांतर दुनिया से होता है, जहाँ किताबों के शीर्षक उलटे हैं, जहाँ उस समय सर्दी का मौसम है, जबकि बाहर ऐलिस की अपनी असली दुनिया में गर्मी के दिन हैं। सन 1871 में क्या गजब कल्पना के मालिक थे, किताब के लेखक कैरल, जिन्होंने एक समानांतर दुनिया का नजारा देखा ही नहीं, अपने पाठकों को भी दिखाकर खूब लुभाया।

 

ग्रीन के अनुसार जिस 'बिग बैंग' या महाविस्फोट के बारे में हम जानते हैं, वह कोई इकलौती घटना नहीं है, 'गणित से संकेत मिलता है कि एक कहीं अधिक बड़ी सृष्टि में अलग-अलग दूर स्थलों पर कई महाविस्फोट होने चाहिए। हर विस्फोट से एक फैलते बुलबुले का जन्म हुआ होना चाहिए और हमारा ब्रह्मांड उनमें से एक विस्फोट की उपज। तो, इससे इस बात की एक ठोस तस्वीर मिलती है कि हमारा ब्रह्मांड, कैसे, अनेकों में से एक होना चाहिए।'

 

कहीं आपका भी है संस्करण : ग्रीन के अनुसार, पदार्थ यानी मैटर का संयोजन कई अलग-अलग तरह से हो सकता है, लेकिन कुल मिलाकर पदार्थ के इन संयोजनों की गिनती सीमित होनी चाहिए। जाहिर है कि ये संयोजन अंतरिक्ष के लगातार फैलते विस्तार में किसी किसी मुकाम पर दोहराए जाएँगे।

 

इसीलिए हूबहू या लगभग हूबहू समानांतर ब्रह्मांडों की कल्पना की जाती है, जिनमें हमारी दुनिया के, और हमारे भी बकायदा प्रतिरूप होंगे, 'यह ब्रह्मांड की हमारी आधुनिक गणितीय जाँच पड़ताल से मिलने वाले विचारों में से एक है। अगर अंतरिक्ष अनिश्चित रूप से दूर, और दूर चलता चला जा रहा है, जो एक वास्तविक संभावना है, तो गणित से पता चलता है कि सृष्टि में हमारे और संस्करण भी होंगे, जो इसी तरह, यही बातचीत कर रहे होंगे।'

 

ग्रीन अनिश्चित सीमा वाले बहुब्रह्मांड की, मल्टीवर्स की तुलना, मोटे तौर पर डबलरोटी से करते हैं, और उसमें मौजूद ब्रह्मांडों की उसके स्लाइसों से। उनका कहना है कि जारी परीक्षणों से शायद अनेक ब्रह्मांडों की धारणा की पुष्टि हो पाएगी, 'स्विट्जरलैंड में स्थित विशाल ऐक्सलरेटर लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर में प्रोटॉन से प्रोटॉन भारी गति से टकराए जाते हैं, और 'स्ट्रिंग सिद्धांत' कहलाने वाली धारणा से संकेत मिलता है कि उससे पैदा होने वाला कुछ मलबा शायद हमारे ब्रह्मांड से बाहर जा छिटके और यह बात तब साबित होगी, अगर कोलाइडर में ऊर्जा की कुल मात्रा टक्कर से पहले की मात्रा के मुकाबले कम हो जाए। ऐसा हो तो यह प्रमाणित हो सकता है कि और ब्रह्मांड मौजूद हैं।'

 

लेकिन अगर समानांतर ब्रह्मांड की यह कल्पना वास्तव में एक सच हो तो? शायद ऐसे ब्रह्मांड में दर्पण के रास्ते दाखिल नहीं हुआ जा सकता। शायद उसके लिए गणित के किसी समीकरण की जरूरत हो। क्या गणित यह बता कर सकता है कि हमारा ब्रह्मांड बार बार और ब्रह्मांडों के रूप में प्रतिबिंबित होता है, ऐसे ब्रह्मांडों के रूप में जहाँ हम अभी तक पहुँच नहीं पाए हैं? जाहिर है, उनका होना हमारी समझ में समा भी कैसे सकता है।

 

क्या ऐसा मुमकिन है? कोई नहीं जानता। लेकिन यदि ऐसी दुनियाएँ हैं, तो उन तक पहुँचने का रास्ता अगर कोई अच्छी तरह दिखा या समझा सकता है, तो वह हैं ब्रायन ग्रीन। न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय के ग्रीन दुनिया के जाने माने भौतिकीविदों में से एक हैं। इस ब्रह्मांड के पार के ब्रह्मांडों की पहेली की चर्चा उन्होंने अपनी नई पुस्तक में की है। पुस्तक का नाम है 'हिडन रियैलिटी, पैरेलल यूनिवर्सिज ऐंड डीप लॉ ऑव कॉस्मोज।'

 

वास्तविकता के अनेक रूप : ब्रायन ग्रीन का कहना है कि विज्ञान में समांतर ब्रह्मांडों की चर्चा कोई नई बात नहीं है, 'हमारा ब्रह्मांड अनेक ब्रह्मांडों में से एक है, इस धारणा का इतिहास 1950 के दशक से शुरू होता है, क्वांटम मैकैनिक्स कहे जाने वाले विषय से। तब गणित में किए गए काम से ये संकेत मिला कि दरअसल एक से अधिक वास्तविकताओं का होना संभव है, जिनमें से एक वास्तविकता हमारी हो सकती है।'

 

ग्रीन कहते हैं कि परंपरा से हमारा ब्रह्मांड हमारे लिए उस सब कुछ का जोड़ रहा है, जो मौजूद है, लेकिन पिछले दशकों के शोध और अनुसंधान से पता चलता है कि सभी सितारों, आकाशगंगाओं और सभी कुछ का यह जोड़, कहीं अधिक बड़े, ऐसे वजूद का एक हिस्सा मात्र है, जिसमें और ब्रह्मांड शामिल हो सकते हैं। ग्रीन स्वीकार करते हैं कि फिलहाल हम यह नहीं कह सकते कि यह विचार सही है, 'हम नहीं जानते कि ये धारणाएं सच हैं या नहीं। हम पड़ताल के एक भारी महत्व वाले छोर पर हैं। मुद्दा यह है कि ये, होश खो बैठे वैज्ञानिकों की कोरी कल्पनाएँ नहीं हैं। हम वास्तविकता तक पहुँचने के लिए गणित के सिद्धांतों का अध्ययन करते हैं। फिर गणित हमें चाहे जहाँ भी ले जाए और गणित के कुछ सिद्धांतों से इस अजीबोगरीब संभावना का पता चलता है कि और ब्रह्मांड हो सकते हैं। हालाँकि हम इस पर तब तक विश्वास नहीं करेंगे, जब तक परीक्षणों से प्रमाण नहीं मिल जाता। यह बात गहरे महत्व की है।'

 

'हिडन रिएलिटी' के अलावा ग्रीन की अन्य पुस्तकें हैं, ' ऐलिगैंट यूनिवर्स' और ' फैब्रिक ऑव कॉस्मोज।' वह 'सुपरस्ट्रिंग थ्योरी' पर अपने काम की विशेषज्ञता के लिए जाने जाते हैं। 'सुपर स्ट्रिंग थ्योरी' यानी यह धारणा कि सभी कुछ ऊर्जा के सूक्ष्म, स्पंदित धागों से निर्मित है।

 

ग्रीन कहते हैं कि वह एक से अधिक ब्रह्मांडों या समानांतर ब्रह्मांडों या बहुब्रह्मांड की जो बात करते हैं, वह मनगढ़ंत कल्पना पर आधारित नहीं है, बल्कि वह यह बात तर्क के एक ढाँचे के भीतर करते हैं। वह कहते हैं, 'प्रतिदिन की सामान्यता से बाहर निकलकर, ब्रह्मांड को उसके भव्यतम रूप में गणित के नियमों के अधीन देखना मेरे लिए बेहद, बेहद रोमांचक है। '

 

आज के आधुनिक ब्रह्माण्ड विज्ञान की नींव डाली महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) ने और उनका भरपूर साथ दिया मैक्स प्लांक (Max Plank), श्रोडिन्गर (Schrodinger), पॉल डिराक (Paul Dirac) आदि वैज्ञानिकों ने | आइंस्टीन के सापेक्षिकता के सिद्धांत (Theory Of Relativity) ने आधुनिक विज्ञान को आध्यात्म से जोड़ने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | जिस समय आइंस्टीन ने दुनिया को सापेक्षिकता के सिद्धांत के बारे में बताया, तत्कालीन वैज्ञानिकों को ये स्वीकार करने में कठिनाई महसूस हुई कि ये दुनिया, ब्रह्माण्ड सिर्फ न्यूटन के बताये सिद्धांतो पर नहीं चलती |

 

आइंस्टीन ने अपने सापेक्षिकता के सिद्धांत में बताया कि समय और स्थान (Time and Space) एक दूसरे से अलग नहीं है | जैसे-जैसे समय बीतता गया, आइंस्टीन के सिद्धांतो की प्रयोगों द्वारा पुष्टि होती गयी | वर्तमान समय में जेनेवा में, लार्ज हेड्रान कोलाईडर (Large Hadron Collider) मशीन पर होने वाले नित नए प्रयोगों के परिणाम विस्मयकारी आंकड़े प्रस्तुत कर रहे हैं |

 

लेकिन वैज्ञानिको के लिए जो सबसे ज्यादे चकित करने वाली बात है वो ये है की ये आंकड़े, वैज्ञानिकों को जिन निष्कर्षों पर पहुंचा रहे हैं वो आज से हज़ारों वर्ष पहले लिखे गये हिन्दू धर्म ग्रंथों में बहुत विस्तार से समझाया गया है | इस लेख में हम आपको ऐसी ही एक घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमे ब्रह्माण्ड के समय और स्थान के परस्पर संबंधों की व्याख्या की गयी है |

 

योगवशिष्ठ में एक बहुत महत्वपूर्ण वर्णन आता है। यह घटना जीवन के उद्देश्य, रहस्यों और मृत्यु के बाद की जीवन श्रंखला पर भी प्रकाश डालता है इसलिये विद्वान इसे योगवशिष्ठ की सर्वाधिक उपयोगी आख्यायिकाओं में से एक मानते हैं। वर्णन इस प्रकार है-

 

किसी समय आर्यावर्त क्षेत्र में पद्म नाम का राजा राज्य करता था लीला नाम की उसकी धर्मशील धर्मपत्नी उसे बहुत प्यार करती थी जब कभी वह अपने पति की मृत्यु की बात सोचती तो वियोग की कल्पना से घबरा उठती अंत में कोई उपाय देखकर उसने भगवती सरस्वती की उपासना की और यह वरदान प्राप्त कर लिया कि यदि उसके पति की मृत्यु पहले हो जाती है, तो पति की अंतःचेतना राजमहल से बाहर जाये माँ सरस्वती ने यह भी आशीर्वाद दिया कि तुम जब चाहोगी अपने पति से भेट भी कर सकोगी कुछ दिन बाद दुर्योग से पद्म का देहान्त हो गया लीला ने पति का शव महल में ही सुरक्षित रखवा कर भगवती सरस्वती का ध्यान किया | सरस्वती ने उपस्थित होकर कहा-भद्रे ! दुःख करो तुम्हारे पति इस समय यहीं है पर वे दूसरी सृष्टि (दूसरे लोक) में है | उनसे भेट करने के लिए तुम्हें उसी सृष्टि वाले शरीर (मानसिक ध्यान द्वारा) में प्रवेश करना चाहिए।

 

लीला ने अपने मन को एकाग्र किया, अपने पति की याद की, उनका ध्यान किया और उस लोक में प्रवेश किया जिसमें पद्म की अंतर्चेतना विद्यमान थी लीला ने वहां जा कर, कुछ क्षणों तक जो कुछ दृश्य देखा उससे बड़ी आश्चर्यचकित हुई उस समय सम्राट पद्म इस लोक (यानी इस सृष्टि) के 16 वर्ष के महाराज थे और एक विस्तृत क्षेत्र में शासन कर रहे थे लीला को अपने ही कमरे में इतना बड़ा साम्राज्य और एक ही दिन के भीतर 16 वर्ष व्यतीत हो गये ये देखकर बड़ा विस्मय हुआ उस समय भगवती सरस्वती उनके साथ थी उन्होंने समझाया पुत्री

सर्गे सर्गे पृथग्रुपं सर्गान्तराण्यपि तेष्पन्सन्तः स्थसर्गोधाः कदलीदल पीठवत्। योगवशिष्ठ 4181677

आकाशे परमाण्वन्तर्द्र व्यादेरगुकेअपि जीवाणुर्यत्र तत्रेदं जगद्वेत्ति निजं वपुः योगवशिष्ठ 3443435

 

अर्थात्- “हे लीला ! जिस प्रकार केले के तने के अन्दर एक के बाद एक परतें निकलती चली आती है उसी प्रकार प्रत्येक सृष्टि क्रम विद्यमान है इस प्रकार एक के अन्दर अनेक सृष्टियों का क्रम चलता है। संसार में व्याप्त चेतना के प्रत्येक परमाणु में जिस प्रकार स्वप्न लोक विद्यमान है उसी प्रकार जगत में अनंत द्रव्य के अनंत परमाणुओं के भीतर अनेक प्रकार के जीव और उनके जगत विद्यमान है

 

अपने कथन की पुष्टि करने के लिए, एक जगत (सृष्टि) दिखाने के बाद उन्होंने लीला से कहादेवी तुम्हारे पति की मृत्यु 70 वर्ष की आयु में हुई है ऐसा तुम मानती हो (क्योकि इस जन्म और लोक में यह सत्य भी है), इससे पहले तुम्हारे पति एक ब्राह्मण थे और तुम उनकी पत्नी ब्राह्मण की कुटिया में उसका मरा हुआ शव अभी भी विद्यमान है चलो तुम्हे दिखाती हूँ, यह कहकर भगवती सरस्वती लीला को और भी सूक्ष्म जगत में ले गई और लीला ने वहाँ अपने पति का मृत शरीर देखा -उनकी उस जीवन की स्मृतियाँ भी याद हो आई और उससे भी बड़ा आश्चर्य लीला को यह हुआ कि जिसे वह 70 वर्षों की आयु समझे हुये थी वह और इतने जीवन काल में घटित सारी घटना उस सृष्टि (जिसमे उनके पति ब्राह्मण थे और वो उनकी पत्नी) के कुल 7 दिनों के बराबर थी।

 

लीला ने यह भी देखा कि उस समय उनका नाम अरुन्धती था- एक दिन एक राजा की सवारी निकली उसे देखते ही उनको राजसी भोग भोगने की इच्छा हुई। उसी सांसारिक इच्छा के फलस्वरूप ही उसने लीला का शरीर प्राप्त किया और राजा पद्म को प्राप्त हुई इसी समय भगवती सरस्वती की प्रेरणा से राजा पद्म जो कि दूसरी सृष्टि में थे उन्हें अंत समय (वहां की सृष्टि के अनुसार) में फिर से पद्म के रूप में राज्य-भोग की इच्छा जाग उठी, लीला को उसी समय फिर पूर्ववर्ती भोग की इच्छा ने प्रेरित किया और फलस्वरूप वह भी अपने व्यक्त शरीर में गई और राजा पद्म भी अपने शव में प्रविष्ट होकर जी उठे फिर कुछ दिन तक उन्होंने राज्य-भोग भोगे और अन्त में पुनः मृत्यु को प्राप्त हुए।

 

इस कथानक में महर्षि वशिष्ठ ने मन की अनंत इच्छाओं के अनुसार जीवन की अनवरत यात्रा, मनुष्येत्तर योनियों में भ्रमण, समय तथा स्थान से निर्मित ब्रह्माण्ड (टाइम एण्ड स्पेश) में चेतना के अभ्युदय और अस्तित्व तथा प्राण विद्या के गूढ रहस्यों पर बड़ा ही रोचक और बोधगम्य प्रकाश डाला है पढ़ने सुनने में यह कथानक परियों की सी कथा या जादुई चिराग जैसी लग सकती है लेकिन ये वो विज्ञान है जिसकी सहायता से पूरे ब्रह्माण्ड की व्याख्या की जा सकती है |

 

आज के आधुनिक वैज्ञानिकों के सामने दोहरी समस्या है, पहली ये की वो ये स्वीकार करने में कठिनाई महसूस करते है की हिन्दू धर्म के प्राचीन ऋषि-महर्षि, समय-स्थान, ब्रह्माण्ड (Universe), समानांतर ब्रह्माण्ड (Parallel Universe) आदि की गुत्थी सुलझा चुके थे (क्योकि ये स्वीकार करने में इतिहास और दर्शन की सभी प्राचीन मान्यताये छिन्न-भिन्न होने का खतरा है), और दूसरी समस्या ये है कि अगर वो ये मान भी लें की ऐसा था तो उन प्राचीन ऋषि-महर्षि के ज्ञान को, उनके आधुनिक विज्ञान की भाषा में उनको समझाएगा कौन ?

 

यहाँ यक्ष प्रश्न यह भी है कि हमारे ही पूर्वजों द्वारा अर्जित ज्ञान और हम ही इसका महत्व नहीं समझते |

मानवेतर सत्ता का विस्तार असीम है | उसकी तुलना में बहुत ही सीमित क्षेत्र (Dimension) की दुनिया में हम अपने दैनिक जीवन के क्रिया-कलाप को अंजाम दे रहे हैं | इसके परे जो दुनिया है उसे समझने के लिए हमें अपने, स्वयं का विस्तार करना पड़ेगा तभी हम उसे समझ पायेंगे |

                                               
 

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INDIA-RUSSIA, India
Researcher of Yog-Tantra with the help of Mercury. Working since 1988 in this field.Have own library n a good collection of mysterious things. you can send me e-mail at alon291@yahoo.com Занимаюсь изучением Тантра,йоги с помощью Меркурий. В этой области работаю с 1988 года. За это время собрал внушительную библиотеку и коллекцию магических вещей. Всегда рад общению: alon291@yahoo.com