पृथ्वी का संभावित अंत अगले 5000 वर्षों में
पर ऐसा नहीं कि हम सर्व-शक्तिमान प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। प्रकृति ने हमें जन्मा है और हमसे जुड़े सभी अधिकार उसके पास ही सुरक्षित हैं। जिस गति से अपने लाभ के लिए हम प्रकृतिक स्रोतों का दोहन कर रहे हैं और अपने विकास का झूठा और दिखावटी दम भर रहे हैं। प्रकृति हमसे चार हाथ आगे अपने अपमान का बदला लेने के लिए तत्परता से और मूक होकर कार्य कर रही है।
जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ प्राकृतिक चक्रों की। उस उथल-पुथल की जिसने कभी पृथ्वी को पानी में डबो दिया और कभी हिम की परतों में समस्त जीव-मण्डल को जीवाश्म बनाकर रख दिया। जाने कितनी बार ऐसा हुआ और इस सौर मण्डल के अंत तक जाने ऐसा कितनी बार होता रहेगा?
आज तक पृथ्वी के अंत की बहुत सी धारणाएँ प्रस्तुत की गयीं हैं लेकिन सत्य का ज्ञान तो सिर्फ़ अंत ही करा पायेगा। पृथ्वी के अंत में सबसे बड़ा हाथ रहेगा पृथ्वी के अपने चुम्बकीय क्षेत्र का जो पृथ्वी के मध्य भाग में उपस्थित कोर के चारों ओर चक्कर काटते मैग्मा के कारण उत्पन्न होता है। वैसे तो 16,00,000 वर्षों में यह मैग्मा अपने घूर्णन की दिशा बदल देता है लेकिन पृथ्वी के अंदरूनी ढाँचों में बदलाव या अन्य किन्हीं के कारणों से ऐसा नहीं हो पाया है और 26,00,000 वर्षों से सभी अधिक समय बीत चुका है। मुझे तो यह सोचकर भी घबराहट हो जाती है कि कहीं अगला पल पृथ्वी का अंत तो नहीं। आपको ज़रा और सचेत कर दूँ कि वैज्ञानिकों ने परीक्षण शुरु कर दिये हैं और निष्कर्ष काफ़ी भयजनक है। कहा जा रहा है कि अगले 5,000 वर्षों के अंदर ही पृथ्वी का अंत हो जायेगा। अब आप शायद यह समझ रहे हों कि मैं बड़बोला बन रहा हूँ लेकिन आपको आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि कोर के चारों ओर घूमते हुए गर्म लावे 'मैग्मा' ने अपनी दिशा बदलनी शुरु कर दी है और यह लगभग 16 अंश घूम चुका है। जैसे जैसे यह घूमता जायेगा पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र क्षीण (कमज़ोर) होता जायेगा और पृथ्वी पर पर चार क्षीण चुम्बकीय ध्रुव बन जायेंगे जिससे पराबैंगनी किरणें पृथ्वी तक आसानी से आने लगेंगी। इसका एक कारण यह भी होगा कि चुम्बकीय क्षेत्र का यह परिवर्तन ओज़ोन की परत को प्रभाव मुक्त कर देगा। इससे तरह-तरह की बीमारियाँ फैलेंगे जिनमें त्वचा सम्बंधित रोग प्रमुख रहेंगे। अब जिनकी त्वचा का रंग गहरा है या काला है उन पर इसका सबसे कम प्रभाव पड़ेगा। इस क्षीण होते चुम्बकीय क्षेत्र का असर प्रारम्भ हो चुका है और अब ज़रूरत है सजग और सचेत रहने की क्योंकि भूकम्प और ध्रुवों पर बर्फ़ पिघलने की प्रक्रिया किसी भी क्षण प्रारम्भ हो सकती है। आज-अभी या 5000 वर्षों के बीच किसी भी पल, सो सावधान बुद्धिजीवियों!
अंतत: जब मैग्मा पूरी तरह से अपने घूमने की दिशा को बदल देगा तो आज का उत्तर ध्रुव दक्षिण ध्रुव हो जायेगा और इसी प्रकार से दक्षिण ध्रुव उत्तर ध्रुव हो जायेगा। ध्रुव बदलाव की यह प्रक्रिया बहुत ही विनाशकारी है। आज वैज्ञानिक इस सत्य से मुँह नहीं फेर पा रहे हैं इसीलिए चाँद और मंगल पर आवास की कल्पना करने लगे हैं।
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