स्नेही स्वजनों,स्वागत एवं सुमंग; संध्या~~~~~~~~~~~^~~~~~~~~~~~~~
ईसाई धर्मावलम्बी, हिन्दू देवी-देवताओं को, किन गंदी नज़रों से देखते हैं ?
किसी ने आपको सिखा दिया है कि 'बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत कहो'
और आपने उसे अपना 'कवच' जैसा बना लिया है
आप न बुरा देखते हैं, न बुरा सुनते हैं,न बुरा मानते हैं।
क्या कभी आपने सोचा है कि स्वाभिमान जैसी भी कोई चीज होती है ?
सिआटल (Seattle अमरीका) की एक कंपनी सिटिन प्रेटी (Sittin Pretty) कोमोड
(toilet seat) बेचनी शुरू की श्री गणेश एवं माँ काली की तस्वीरों के साथ।
अपने चहेते ईसा मसीह की तस्वीर उन्होंने वहाँ न दी।
पैगम्बर मुहम्मद की तस्वीर देने की बात सोच कर वे अपने ही पैंट में टट्टी कर देते,
हलाल कर दिये जाने के डर से।
यदि साधारण ईसाई दूध के धुले भलेमानुस थे,तो उन्हें इन टट्टी करने के स्थानों का
बहिष्कार करना चाहिये था,जो उन्होंने नहीं किया,बल्कि उन्हे बड़े चाव के साथ खरीदा
और उनको अपने घरों में लगाया,ताकि वे श्री गणेश व माँ काली के साथ हग सकें।
कई हिंदू संस्थाओं ने इस पर आपत्ति उठाई।
हजारों की संख्या मे ईमेल गए, फैक्स एवं टेलीफोन किए गए। कोशिशें ज़ारी रहीं।
काफी लम्बा चला यह आन्दोलन।
अंत में कंपनी ने इन डिज़ाइनों को बजार से वापस लेना स्वीकार किया।
उनकी नजर में हिन्दू धर्म एक नारकीय/राक्षसी धर्म है, असभ्य लोगों का धर्म है,
केवल ईसाई बनाकर हिंदुओं को सुसभ्य बनाया जा सकता है।
अमरीका के ईसाई धर्माध्यक्षों के परिवार में जन्मे डॉ डेविड फ़्रावले (वामदेव शास्त्री)
अपनी आत्मकथा स्वरूप पुस्तक में लिखते हैं -
"वे हमेशा धन माँगते हैं अमरीकी जनसमुदाय से कि हम भारतवर्ष में जाकर हिंदुओं
का धर्म परिवर्तन करना चाहते हैं।
हम यह देखते हैं नित्य विभिन्न टेलिविज़न चैनेलों पर।
पैट रॉबर्टसन जो उनके मुख्य धार्मिक नेताओं में से एक हैं उन्होंने कहा है कि हिंदू धर्म
एक नारकीय/राक्षसी धर्म है ।
वे हिंदू देवताओं को जानवरों के सिरों के साथ दिखाते हैं और कहते हैं जरा देखो इन्हें
कितने असभ्य हैं ये लोग।
वे भारतवर्ष के राज नैतिक एवं सामाजिक समस्याओं को अमरीकी जन समुदाय के
समक्ष रख कर कहते हैं यह सब हिंदू धर्म के कारण हैं।
वे अमरीकी जन समुदाय से कहते हैं कि हमें धन दीजिए ताकि हम भारतवर्ष जाकर
उन्हें इस भयावह हिंदू धर्म के चंगुल से छुड़ाएँ और उन्हें ईसाई बना सकें।"
पश्चिमी देशों में लाखों-करोड़ों व्यक्ति, हिंदूधर्म के बारे में, इन धारणाओं के साथ
जीते हैं
आप अमरीका में रहते होंगे,पर सैकड़ों में से उन्हीं पाँच-सात चैनलों को देखते होंगे
जिनमें आपकी रुचि है।
अतः आप न तो बुरा देखते हैं,न बुरा सुनते हैं,न आपको बुरा लगता है।
पर अमरीका और कैनेडा में ऐसे लाखों गोरी चमड़ी वाले होंगे जो उन चैनलों को देखते
हैं और हिंदुओं के बारे में ऐसी-ही धारणाओं के साथ जीते हैं।
आप भारतवर्ष में रहते हैं,आपको वे अमरीकी चैनल देखने को मिलते नहीं।
आप न बुरा देखते हैं, न बुरा सुनते हैं, न बुरा मानते हैं।
अधिकांशतः हिंदू धर्मगुरू इन समस्यायों के प्रति जागरूक नहीं हैं और इसकी 'तोड़'
के बारे में प्रयत्नशील नहीं दिखायी देते हैं
अमरीका में आप अपने गुरु के पास जाते हैं,उनका अपना एक सम्प्रदाय जैसा होता है।
वहाँ पाँच-सौ हिंदुओं में दो-तीन गोरी चमड़ी वाले भी होते हैं।
अनुयायी उनके पाँव छूते हैं,उनका पंथ अपने पर फैला रहा होता है।
आप भी खुश,आप के गुरू भी खुश।
किसी को क्या पड़ी है कि सार्वजनिक रूप से विरोध करें कि हिन्दू धर्म का अपमान
हम नहीं सह सकते।
किसी ने आपको सिखा दिया है कि 'बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत कहो' और
आपने उसे अपना 'कवच' जैसा बना लिया है
आप भारतवर्ष में रहते हैं, अपनी पसन्द की दो-चार चैनलों को देखते हैं।
उन चैनलों को आप देखते नहीं जिनमें हिन्दूओं के विरुद्ध उट-पटांग बातें दिखायी जाती हैं।
इस प्रकार आप न बुरा देखते हैं,न बुरा सुनते हैं,न बुरा मानते हैं।
वे मुट्ठीभर जो आपको लगातार सचेत किये रखना चाहते हैं,उनसे आपको 'परहेज' है।
ऐसी पत्र-पत्रिकायें जो आपको हिन्दू धर्म के विरुद्ध हो रहे अभियानों के बारे में सचेत
करते रहते हैं उन्हें आप पढ़ना नहीं चाहते क्योंकि आपकी दृष्टि में वे सब उग्रवादी हैं, साम्प्रदायिक हैं,धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं।
(उदाहरण के लिए 'हिन्दू वॉइस' एवं 'सनातन प्रभात')।
स्वाभिमान को तजकर आप उदार बनने की चेष्टा में लगे हैं
आपकी सोच कुछ ऐसी बन चुकी है कि यदि कोई आपको कहता है कि 'मेरे भाई,तुमने
तो मुझे केवल एक थप्पड़ मारा है,एक और मार दो' तो आप उसे महान आत्मा घोषित
कर देंगे।
मानसिक नपुंसकता की महिमा आपके दिलो-दिमाग पर इस तरह छा चुकी है कि
स्वाभिमान जैसा शब्द आपके शब्दकोश से कोसों दूर जा चुका है।
क्षात्रधर्म तो आप भुला बैठे और गीता को जाने क्या समझ लिया है
क्षात्रधर्म तो आपने भुला दिया है क्योंकि आपके दिग्दर्शकों ने आपको समझाया कि
भगवद्गीता आपको त्याग का सन्देश देती है,आपको अन्तर्मुखी बन कर ईश्वर की
साधना में लीन होने को कहती है।
महाभारत तो एक पारिवारिक कलह एवं अनावश्यक रक्तपात की कहानी है,
अतः उसमें सीख लेने जैसी कोई बात नहीं है।
कोई आपसे यह नहीं कहता कि भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश कुरुक्षेत्र
की रणभूमि में ही क्यों दिया,त्याग और ईश्वर प्राप्ति की बातें करनी थीं तो अर्जुन को
लेकर किसी वन में क्यों न चले गए?
भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि एक समय आयेगा जब मानव-जीवन अपने आप में एक
रणक्षेत्र बन जायेगा और आज हम उसी स्थिति में पहुँच गए हैं।
आज गीता के संदेश को एक बार फिर से समझने की आवश्यकता है,और वह भी एक नई
दृष्टि से।
उन विधर्मियों के शब्दों में अमरनाथ की यात्रा का उद्देश्य है विनाश के देवता शिव के
कामवासना के अंगों की पूजा !!
डॉ डेविड फ़्रावले (वामदेव शास्त्री) लिखते हैं -
"न्यूयॉर्क टाइम्स अमरनाथ की तीर्थयात्रा के बारे में लिखता है कि हिंदू जा रहे हैं विनाश
के देवता शिव के कामवासना के अंगों की पूजा के लिए।"
न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे ख्याति प्राप्त समचार पत्र,जो अमरीकी जनमत तैयार करते हैं
न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे ख्याति प्राप्त समचार पत्र, जो अमरीकी जनमत तैयार करते हैं,
वे अपने पाठकों को बताते हैं शिव हैं विनाश के देवता और उनके कामवासना के अंगों
की पूजा है अमरनाथ तीर्थ यात्रा का मुख्य उद्देश्य।
जरा सोच कर देखिए क्या प्रभाव पड़ता होगा विश्व जनमत पर हिंदू धर्म के बारे में।
कब तक इस भ्रम में जीयेंगे कि हिंदू धर्म की क्या साख है सारे विश्व में
आप में से अनेक हैं जो फूले नहीं समाते जब देखते हैं मुट्ठी भर गोरी चमड़ी वालों को हिंदू
धर्म अपनाते।
आप इसी खुशफ़हमी में जीते हैं कि देखो हिंदू धर्म की क्या साख है सारे विश्व में,
जो इन गोरी चमड़ी वालों को भी प्रेरित करती है हिंदू धर्म को अपनाने।
कुछ तो यहाँ तक छाप देते हैं कि आज सारा विश्व हिंदू धर्म की महत्ता को मानता है
पर हमारे अपने हिंदू उस महत्ता को नहीं समझते।
ये अति ज्ञानी लोग उन मुट्ठी भर गोरी चमड़ी वालों को सारे विश्व का प्रतिनिधि मान
बैठते हैं।
क्या ऐसा नहीं लगता कि आप अपनी ही नज़रों में इतना गिर चुके हैं कि कोई जरा सा
आपकी पीठ थपथपाता और आप फूल कर कुप्पा बन जाते हैं।
आपने खो दी अपनी शिक्षा, अपनी संस्कृति, अपनी पहचान !!
यही तो चाहा था उस टीबी मॅकॉले ने जो 'टी-बी' की तरह घुन लगा गया हमारे स्वाभिमान
को,जब वह लेकर आया ईसाई मिशनरियों की बटालियन सन 1835 में, हमें ईसाई-अँग्रेज़ी
शिक्षा पद्धति के साँचे में ढालने के उद्देश्य से।
वह तो सफल हो गया अपने उद्देश्य में और उसका मूल्य चुकाया आपने।
आपने खो दी अपनी शिक्षा, अपनी संस्कृति, अपनी पहचान।
उन विधर्मियों के शब्दों में शिव नशे में धुत्त गाँव-गाँव में नंगा घूमता है,शिव मंदिरों में
पाओगे एक खड़ा जननांग जो है शिव की निरंकुश कामुकता का प्रतीक,
शिव की पत्नि 'शक्ति' मद्यपान,व्यभिचार,लाम्पट्य,मंदिरों में वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहित
करती है,
'काली' दुष्ट, डरावनी, ख़ून की प्यासी है।
क्या ये रक्तबीज जैसे किसी असुर की ही संतानें हैं?
माँ काली ने रक्तबीज नामक असुर का संहार किया था,जिसके खून का एक कतरा धरती
पर गिरने से एक और वैसा ही असुर पैदा हो जाता था।
अतः स्वाभविक है कि कोई भी ऐसा असुर माँ काली को श्रद्धा की दृष्टि से नहीं देखेगा।
ईसाई भी माँ काली को श्रद्धा की दृष्टि से नहीं देखते।
क्या इसका मतलब यह हुआ कि ये ईसाई भी उसी रक्तबीज जैसे किसी असुर की ही
संतानें हैं?
प्रतिदिन पैंतीस हज़ार लोगों के मन में हिंदू धर्म के प्रति कैसा विष बोया जाता है
आज इंटरनेट का बोलबाला है।
विश्व के कोने कोने तक अपनी बात पहुँचाने का यह सबसे सस्ता एवं द्रुतगामी माध्यम है।
वेब साइट पर एक काउंटर होता है।
यह काउंटर गिनता रहता है कितने लोग अब तक इस साइट पर आए हैं।
जब भी कोई व्यक्ति विश्व के किसी भी कोने से कंप्यूटर के द्वारा उस साइट पर जाता है
तो तत्काल काउंटर उसे रेकॉर्ड कर लेता है।
डॉ जेरोमे का दावा है कि इस साइट को विश्व भर से पैंतीस हज़ार लोग प्रतिदिन देखते हैं।
अब सुनिए उनकी जबानी हिंदू धर्म की कहानी।
http://religion-cults.com/Eastern/Hinduism/hindu11.htm
भगवान शिव एवं माँ शक्ति की आज यह छवि प्रस्तुत की जाती है !!
"हिन्दू धर्म है जमघट विभिन्न पंथों का जिसे कहा जा सकता है धार्मिक अराजकता का
ज्वलंत उदाहरण।
शिव उनमें से सबसे अधिक लोकप्रिय है।
उसके सबसे अधिक भक्त मिलेंगे आपको।
नटराज के रूप में वह चार हाथों के साथ नाचता है।
चारों ओर नंगा घूमता है गाँव गाँव में,नंदी नामक एक सफ़ेद साँड़ के पीठ पर चढ़ कर।
नशे में धुत्त, भूखे रहने और अपने शरीर को विकृत करने की शिक्षा देता वह।
भैरव के रूप में अपने पिता की हत्या करने वाला,अपने बाप की खोपड़ी को एक कटोरे के
रूप में प्रयोग करने वाला है वह।
अर्धनारीश्वर के रूप में स्त्री व पुरुष के काम वासना की छवि है वह।
उसके मंदिरों में सदा पाओगे एक बड़ा लिंगपुरुष,रूढ़ शैली का एक खड़ा जननांग जो है
शिव की निरंकुश कामुकता का प्रतीक है।
(Erect Penis symbolizing his rampant Sexuality)
शिव की पत्नियाँ बड़ी लोकप्रिय हैं।
शक्ति रहस्यानुष्ठान,मद्यपान-उत्सव,व्यभिचार,लाम्पट्य,मंदिरों में वेश्यावृत्ति एवं
बलि देने की प्रथा को प्रोत्साहित करती है।
शक्ति ने आरम्भ किया सती प्रथा का जिसमें विधवा आग में कूद जाती है अपने पति
की चिता में।
शक्ति काली के रूप में दुष्ट, डरावनी और ख़ून की प्यासी और सबसे अधिक लोकप्रिय है।
वह खड़ी होती है एक छिन्न-मस्तक शरीर के ऊपर,गले में मनुष्यों के कटे सरों की माला
डाले।
ख़बरों के अनुसार प्रति वर्ष सौ व्यक्तियों का ख़ून किया जाता है,बलि के लिए,भारतवर्ष
में काली के सम्मान में।
हिंदू धर्म के जंगल में न घुसो, निकल भागो इस जंगल से जब यह तुम्हारे बस में हो।"http://religion-cults.com/Eastern/Hinduism/hindu11.htm''
उस ईसाई धर्माध्यक्ष ने क्या सोच कर अपने अंग्रेजी मूल में erect penis शब्द का
'चयन' किया, genital का क्यों नहीं ?
आप स्वयं सोच कर देखें कि इस ईसाई धर्माध्यक्ष ने genital (जननेन्द्रिय) शब्द का
प्रयोग नहीं किया।
उसने erect (खड़ा, तना हुआ) विशेषण का प्रयोग किया है genital के साथ नहीं बल्कि
penis के साथ।
जब penis erect होता है तब पुरुष के मन में कामुकता की भावना प्रबल होती है।
इसी बात पर जोर देते हुए ईसाई धर्माध्यक्ष हमारे भगवान शिव की rampant (निरंकुश) sexuality (कामुकता) का वर्णन करते हुए उन्हें काम वासना की छवि बताया।
अतः erect penis की बात करते हुए उनकी भावना स्पष्टतः कामुकता से उद्वेलित खड़े
जननांग की ओर संकेत करती है,किसी जननेन्द्रिय (सृजन प्रक्रिया का एक अंग) अथवा
किसी लिंग (gender जैसे स्त्रीलिंग या पुलिंग) की नहीं।
दो हिंदू संस्थाओं के द्वारा किये गए घोर आपत्ति के बावज़ूद उस ईसाई धर्म गुरु ने अपने वेबसाइट पर कोई भी परिवर्तन करना स्वीकार नहीं किया
भगवान शिव ने कामुकता पर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली थी।
उसी भगवान शिव के बारे में,अश्लील भावना का प्रदर्शन करते हुए,उस प्रख्यात ईसाई
धर्माध्यक्ष ने अपने शब्दों का चयन किया था बहुत ही सोच-समझ कर।
अमरीका में दो हिंदू संस्थाओं ने घोर आपत्ति की,भगवान शिव के लिए erect penis एवं rampant sexuality जैसे शब्दों के प्रयोग पर।
पर उस ईसाई धर्म गुरु ने अपने वेबसाइट पर कोई भी परिवर्तन करना स्वीकार नहीं किया।
ऐसा क्यों?
विवरण - http://www.IndiaCause.com/
अब तक एक करोड़ लोग देख चुके होंगे उस वेबसाइट को - क्या प्रभाव पड़ता होगा सारे
विश्व पर हिंदू धर्म के प्रति?
हिंदू धर्म के प्रति अपनी वह कुत्सित भावना,उस ईसाई धर्माध्यक्ष ने,विश्व भर के लाखों
लोगों के मन में भरी।
क्या प्रभाव पड़ता होगा सारे विश्व पर जब पैंतीस हज़ार लोग प्रतिदिन पढ़ते होंगे इसको?
आपके सामने आपके धर्म का बलात्कार हो रहा है और आपकी आत्मा को यह स्वीकार भी है
यह सब जानकर भी यदि आपका खून नहीं खौलता तो जान लीजिए कि आप का खून
ठंडा पड़ चुका है और आप स्वाभिमान के साथ जीने के हकदार नहीं हैं।
जरा सोचकर देखिए जैसे आपकी माँ अपने दूध से आपके शरीर को सींचती है ठीक
उसी प्रकार आपका धर्म आपकी आत्मा को सींचता है।
कल्पना कीजिए, आपके सामने आपकी माँ का बलात्कार हो रहा है।
उसी प्रकार आज आपके धर्म का बलात्कार हो रहा है।
आपकी आत्मा को यह स्वीकार भी है।
आपकी सोच - हमारा हिंदू धर्म विश्व भर में कितने आदर के साथ देखा जाता है
और आप हैं कि मुट्ठी भर सफेद चमड़ी वालों को हिंदू धर्म अपनाते देख,फूले नहीं समाते।
यह सोच कर खुश हो लेते हैं कि हमारा हिंदू धर्म विश्व भर में कितने आदर के साथ देखा
जाता है।
अब तो कम से कम अपने मन को बहलाना बंद कीजिए।
ईसाई ऐसा क्यों करते है ? क्या छुपा है उनकी शिक्षा एवं उनके चरित्र में ?
मैं स्वयं अनगिनत बार भगवान शिव शंकर के द्वार पर गया पर मुझे तो वहाँ कभी वह न
दिखा जो ईसाइयोंको दिखा।
मेरे मन में वैसी भावना कभी जगी तक नहीं।
उस भावना के अस्तित्व को मैंने तभी जाना जब उसके बारे में पुस्तकों में पढ़ा या दूसरों
से सुना और फिर भी मेरे मन में वह भावना कभी घर न कर पायी।
ऐसा क्या है उन ईसाइयों की सोच में जो उन्हें सदा खड़ा लंड ही दिखाई देता है ?
आगे चलकर इसी रहस्य को समझने की चेष्टा करेंगे।
यह समझने की भूल न करें कि ये सारे हथकण्डे केवल ईसाई धर्मगुरुओं और चंद कलाकारों
के ही हैं - बाकी साधारण ईसाई दूध के धुले हुए हैं.
अमेरीकन ईगल आउटफिटर्स (American Eagle Outfitters) नामक कम्पनी ने देवी
देवताओं के चित्र वाले चप्पलों को 12.50 डॉलर (500 रुपये उन दिनों) में बेचना शुरू किया
जिन पर हमारे पूजनीय श्री गणेश की मूर्ति अंकित थी।
इस कंपनी के लगभग 750 स्टोर्स मिलेंगे आपको, अमरीका एवं कैनेडा में।
यदि साधारण ईसाई दूध के धुले भलेमानुस थे,तो उन्हें इन चप्पलों का बहिष्कार करना
चाहिये था,जो उन्होंने नहीं किया, बल्कि उन्हे बड़े चाव के साथ खरीदा और पहना,
ताकि वे हमारे परम पूज्य श्री गणेश को अपने पैरों तले प्रतिदिन रौंद सकें।
अमरीका की IndiaCause नामक हिंदू संस्था ने इस पर आपत्ति करते हुए कम्पनी
को लिखा।
कम्पनी के वाइस-प्रेसिडेन्ट नील बुलमैन जूनियर ने क्षमायाचना करते हुए IndiaCause
को फैक्स भेजा इस आश्वासन के साथ कि वे उन सारी चप्पलों को अपनी दुकानों से
वापस मंगा लेंगे।
विवरण - www.indiacause.com
इस संस्था ने चेष्टा की। इस चेष्टा का फल भी मिला।
हमारे देश के धर्मान्तरित ईसाई तो विदेशियों से भी एक कदम आगे गाँव में जिस शिवलिंग
की नियमित पूजा होती थी उसी पर ये ईसाई टट्टी कर जाते हैं -
उस ईसाई धर्मगुरु की शह पर जिसने उनका धर्मान्तरण किया
ग्राम कोविलनचेरी जिला कांची प्रदेश तमिलनाडु - यह केवल अमरीका की बात ही नहीं,
हमारे अपने भारतवर्ष में भी ऐसा होता है पर आपकी समाचार एजेंसियाँ इन्हें आपसे
छुपा जाती हैं।
अंतर केवल इतना है कि यहाँ आज माँ काली की फ़ोटो के साथ नहीं,बल्कि उससे एक
कदम बढ़ कर,साक्षात शिवलिंग के ऊपर टट्टी करते हैं,उसे कोमोड मान कर।
वह शिवलिंग जिसकी,तब भी गाँव में, नियमित पूजा होती थी।
सम्पूर्ण विवरण - हिंदू वॉइस (अँग्रेजी संस्करण),
रिपोर्ट एस वी बादरी, सितम्बर 2003, पृ 40-41
कब तक आप सत्य से भागते फिरेंगे?
आपको सदा से सिखाया जाता रहा है कि अपने गरेबान में झाँक कर देखो
(अपने अंदर झाँक कर देखो)। और आपने भी सदा अपने ही गरेबान में झाँकना सीखा है।
इस प्रक्रिया में आपने इतनी महारथ हासिल कर ली है कि आप अपनी ही नज़रों में बहुत
छोटे बन गए हैं।
अपने हिंदुओं में ही सर्वदा दोष खोजने के आदी बन चुके हैं।
यह उन भगोड़ों की विशेषता है जो समस्या के समाधान हेतु 'समस्या को पैदा' करने वालों
के विरुद्ध खड़े होने का सत्साहस नहीं रखते।
क्या आपने कभी दूसरों के गरेबान में भी झाँक कर देखने की चेष्टा की है? इसलिए नहीं
कि आप उनकी गलतियाँ निकालें।
बल्कि इसलिए कि वे सदा से आपको छोटा दिखाते आये हैं। एक बार उनकी खामियों की
ओर भी नजर डाल कर देखें, केवल अपनों को हीन मानने के बजाय !
क्या कभी आपने सोचा है कि स्वाभिमान जैसी भी कोई चीज होती है ?
क्या आपने जाना है कि आत्मरक्षा का हमारी जीवन प्रक्रिया में कोई महत्व होता है ?
आत्मरक्षा की बात करें तो केवल यह न सोचिए--आपके शरीर पर हमला हो रहा है।
हमला आपकी आत्मा पर भी हो सकता है।
हमला आपकी आस्थाओं पर भी हो सकता है।
हमले का उद्देश्य आपकी सोच को एक नया जामा पहनाने का भी हो सकता है।
हमला एक षड़यंत्र के रूप में भी हो सकता है जिसके पीछे एक निहित स्वार्थ हो।
और वह यह कि आपको अपनी जड़ों से उखाड़ कर अलग करना। जब आप अपनी जड़ों
से ही कट जायेंगे तो आप अपनी पहचान को भी भूल जायेंगे।
क्या यही नहीं हो रहा है आज के युवा वर्ग के साथ ?
ऐसा क्या है ईसाइयों की सोच में,उनकी शिक्षा में, उनके संस्कारों में और उनके छुपे हुए
अतीत में,जो उन्हें इस रूप में ढालता है ?
क्या वे ऐसा केवल आज ही कर रहे हैं? नहीं, केवल आज ही नहीं,वे सदा से ही ऐसा करते
आए हैं।
वे सदा से ऐसा क्यों करते आए हैं ?
ऐसा क्या छुपा है उनके अतीत में ?
क्या हिंदू धर्म भी उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करता है? कभी नहीं।
वे किस मिट्टी के बनें हैं जो उनमें इतनी घृणा है हमारे प्रति ?
--कट्टर हिंदू
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जागो हिंदू जागो !!
जयति हिंदू सनातन संस्कृति,,,जयति पुण्य भूमि भारत,,
सदा सुमंगल,,वंदेमातरम,,,
जय श्री राम
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