साईं बाबा का जीवन.
१८३८ – यह उनकी एक मानी हुई जन्म साल है,क्यूंकि बाबा ने कभी किसी को बताया नहीं की उनका जन्म कब और कहाँ हुआ था और उनके माँ बाप कौन थे.
१८५३ – पहली बार उन्हें शिर्डी में देखा गया जब वे एक नीम के पेड़ के नीचे बैठे रहते थे और तकिया में जा कर सोते थे.तकिया जानवरों के कतलखाने को कहते थे.1853 के पहले के उनके जीवनकाल के बारे में जो भी लिखा गया है वे सब काल्पनिक कहानियां हैं.क्यूंकि बाबा से जब भी उनके भूतकाल के बारे में पूछा जाता था वे टाल देते थे या फिर बहुत क्रोधित हो जाते थे.
१८५७ – वे एक दिन अचानक गायब हो गए.
१८५८ – वे चाँद पाटिल के भांजे की बारात के साथ वापस शिर्डी आये.उसकी वेशभूषा देखकर मल्सापति ने उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया तो वह जाकर एक पुरानी टूटी मस्जिद में जाकर रहने लगे और भीख मांगकर आपना गुजारा करने लगे.
१८५८-१८७८ – गाँव के लोग इन्हें पागल कह कर बुलाते थे क्यूंकि यह दिनभर गाँव में घूम घूमकर भीख माँगते थे और लकड़ियाँ इकठा करते थे ताकि ठण्ड और जानवरों से बचने के लिए मस्जिद में आग जला सके.इन्हें जली हुई तीलियाँ इकठा करने का शोक था और मस्जिद में जोर जोर से चिल्लाते थे इसलिए गाँव के बच्चे इन्हें पागल कहकर चिढाकर इनके ऊपर पत्थर फैकते थे बाबा भी उनके ऊपर पत्थर फेंकते थे और उन्हें खूब गन्दी गन्दी गलियां देते थे.
१८५३ – पहली बार उन्हें शिर्डी में देखा गया जब वे एक नीम के पेड़ के नीचे बैठे रहते थे और तकिया में जा कर सोते थे.तकिया जानवरों के कतलखाने को कहते थे.1853 के पहले के उनके जीवनकाल के बारे में जो भी लिखा गया है वे सब काल्पनिक कहानियां हैं.क्यूंकि बाबा से जब भी उनके भूतकाल के बारे में पूछा जाता था वे टाल देते थे या फिर बहुत क्रोधित हो जाते थे.
१८५७ – वे एक दिन अचानक गायब हो गए.
१८५८ – वे चाँद पाटिल के भांजे की बारात के साथ वापस शिर्डी आये.उसकी वेशभूषा देखकर मल्सापति ने उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया तो वह जाकर एक पुरानी टूटी मस्जिद में जाकर रहने लगे और भीख मांगकर आपना गुजारा करने लगे.
१८५८-१८७८ – गाँव के लोग इन्हें पागल कह कर बुलाते थे क्यूंकि यह दिनभर गाँव में घूम घूमकर भीख माँगते थे और लकड़ियाँ इकठा करते थे ताकि ठण्ड और जानवरों से बचने के लिए मस्जिद में आग जला सके.इन्हें जली हुई तीलियाँ इकठा करने का शोक था और मस्जिद में जोर जोर से चिल्लाते थे इसलिए गाँव के बच्चे इन्हें पागल कहकर चिढाकर इनके ऊपर पत्थर फैकते थे बाबा भी उनके ऊपर पत्थर फेंकते थे और उन्हें खूब गन्दी गन्दी गलियां देते थे.
१८७६ में शिर्डी में भयंकर सुखा भी पड़ा था.
१८७९ – ईस साल उन्होंने कमीज और लुंगी छोड़कर कफनी पहनना शुरू कर दिया.
१८८० – गाँव के कुछ बेरोजगार लोगों ने साईं का प्रचार कबीर के अवतार के रूप में करना शुरू किया,और उनके शुरू के जीवन की कहानी कबीर के जीवन जैसी बनायीं.जिस प्रकार कबीर का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था और उनको पालन पोषण एक मुस्लमान जोड़े ने किया एवं उनके गुरु एक हिन्दू थे. साई के बारे में भी यही कहानी प्रचलित की गयी.
१८८६ – बाबा को अस्थमा का जबरदस्त अटैक हुआ और तीन दिन तक वे बहुत बीमार रहे.इसे कहानी बनायीं गयी की तीन दिन तक बाबा ने शरीर त्याग दिया था.
१८९० – अब्दुल्ला बाबा की एंट्री हुई,जो बाबा को जीवनपर्यंत रोज कुरान पढ़कर सुनाते थे और उनके मरने बाद १९५४ तक बाद उनकी कब्र की देखरेख करते थे कब्र के पास कुरान पढ़ते थे अब्दुल्ला बाबा के मरने के बाद ही १९५४ में बाबा की मूर्ति स्थापित की गयी.
१८९०-१९१० – बाबा के प्रचारक चारों तरफ घूम कर उनका प्रचार करते और लोगों को पकड़ पकड़कर शिर्डी लाते थे. कोशिश यही रहती थी ज्यादा हिन्दू ही आयें.ईस समय तक बाबा ने किसी भी तरह की हिन्दू गतिविधियों को मस्जिद में नहीं होने दिया.
१९१२ – बाबा एक बार फिर बहुत बुरी तरह बीमार पड़ गए और बहुत कमजोर हो गए,इसका फायदा उठाकर बाबा के आसपास के लोगों ने हिन्दू गतिविधियाँ तेज कर दी बाबा भी विरोध करने की स्तिथि में नहीं थे, क्यूंकि ईस समय तक बाबा की आमदनी लगभग ४००-५०० रुपये रोज की थी जिसे आज के दौर में कहा जाय तो लगभग ७-८ लाख रुपये रोज.
१९१८ – दिनांक २८ सितम्बर को बाबा बहुत बीमार हो गए उन्होंने खाना पीना सब छोड़ दिया और १५ अक्टूबर को वे मर गए.उनके कहे अनुसार उन्हें दफनाया गया.
१९२९ – श्री दाभोलकर ने श्री साईं सत्चारिता का मराठी में प्रकाशन किया,लेकिन अब तक जो कबीर के अवतार थे वे अब भगवान दत्तात्रेय के अवतार हो गए और दाभोलकर साहब और उनके दल के लोगों ने जो बाबा अब तक मुस्लिम फ़क़ीर के रूप में प्रसिद्ध थे उन्हें ब्राह्मण सिद्ध करना शुरू कर दिया.
१९३६ – नार्सिम्हास्वामी ने साईं के भक्तों के इंटरव्यू लेकर एक किताब लिखी DEVOTEES EXPERIENCE और इस बात की पूरी सावधानी राखी की बाबा को एक हिन्दू ब्राह्मण के रूप में पेश किया जाये.
१९४० – सत्य साईं बाबा ने अपने आपको साईं बाबा का अवतार बोलकर शिर्डी साईं बाबा का प्रचार जोर शोर से किया ताकि उनके भक्तों की संख्या बढे और उन्होंने बाबा के जन्म से लेकर शिर्डी आने तक की एक मनगढ़ंत कहानी बनायीं जो आजकल साईं भक्त दोहराते हुए दीखते हैं.
१९४४ – श्री न.व्.गुनाजी ने धाबोलकर साहब की पुस्तक के आधार पर उसी नाम से इंग्लिश में श्री साईं सत्चारिता लिखी और पूरी तरह से बाबा को हिन्दू सिद्ध कर दिया.यह पुस्तक को साईं संसथान द्वारा साईं बाबा के बारे में सबसे AUTHENTIC पुस्तक कही जाती है.
१८८० – गाँव के कुछ बेरोजगार लोगों ने साईं का प्रचार कबीर के अवतार के रूप में करना शुरू किया,और उनके शुरू के जीवन की कहानी कबीर के जीवन जैसी बनायीं.जिस प्रकार कबीर का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था और उनको पालन पोषण एक मुस्लमान जोड़े ने किया एवं उनके गुरु एक हिन्दू थे. साई के बारे में भी यही कहानी प्रचलित की गयी.
१८८६ – बाबा को अस्थमा का जबरदस्त अटैक हुआ और तीन दिन तक वे बहुत बीमार रहे.इसे कहानी बनायीं गयी की तीन दिन तक बाबा ने शरीर त्याग दिया था.
१८९० – अब्दुल्ला बाबा की एंट्री हुई,जो बाबा को जीवनपर्यंत रोज कुरान पढ़कर सुनाते थे और उनके मरने बाद १९५४ तक बाद उनकी कब्र की देखरेख करते थे कब्र के पास कुरान पढ़ते थे अब्दुल्ला बाबा के मरने के बाद ही १९५४ में बाबा की मूर्ति स्थापित की गयी.
१८९०-१९१० – बाबा के प्रचारक चारों तरफ घूम कर उनका प्रचार करते और लोगों को पकड़ पकड़कर शिर्डी लाते थे. कोशिश यही रहती थी ज्यादा हिन्दू ही आयें.ईस समय तक बाबा ने किसी भी तरह की हिन्दू गतिविधियों को मस्जिद में नहीं होने दिया.
१९१२ – बाबा एक बार फिर बहुत बुरी तरह बीमार पड़ गए और बहुत कमजोर हो गए,इसका फायदा उठाकर बाबा के आसपास के लोगों ने हिन्दू गतिविधियाँ तेज कर दी बाबा भी विरोध करने की स्तिथि में नहीं थे, क्यूंकि ईस समय तक बाबा की आमदनी लगभग ४००-५०० रुपये रोज की थी जिसे आज के दौर में कहा जाय तो लगभग ७-८ लाख रुपये रोज.
१९१८ – दिनांक २८ सितम्बर को बाबा बहुत बीमार हो गए उन्होंने खाना पीना सब छोड़ दिया और १५ अक्टूबर को वे मर गए.उनके कहे अनुसार उन्हें दफनाया गया.
१९२९ – श्री दाभोलकर ने श्री साईं सत्चारिता का मराठी में प्रकाशन किया,लेकिन अब तक जो कबीर के अवतार थे वे अब भगवान दत्तात्रेय के अवतार हो गए और दाभोलकर साहब और उनके दल के लोगों ने जो बाबा अब तक मुस्लिम फ़क़ीर के रूप में प्रसिद्ध थे उन्हें ब्राह्मण सिद्ध करना शुरू कर दिया.
१९३६ – नार्सिम्हास्वामी ने साईं के भक्तों के इंटरव्यू लेकर एक किताब लिखी DEVOTEES EXPERIENCE और इस बात की पूरी सावधानी राखी की बाबा को एक हिन्दू ब्राह्मण के रूप में पेश किया जाये.
१९४० – सत्य साईं बाबा ने अपने आपको साईं बाबा का अवतार बोलकर शिर्डी साईं बाबा का प्रचार जोर शोर से किया ताकि उनके भक्तों की संख्या बढे और उन्होंने बाबा के जन्म से लेकर शिर्डी आने तक की एक मनगढ़ंत कहानी बनायीं जो आजकल साईं भक्त दोहराते हुए दीखते हैं.
१९४४ – श्री न.व्.गुनाजी ने धाबोलकर साहब की पुस्तक के आधार पर उसी नाम से इंग्लिश में श्री साईं सत्चारिता लिखी और पूरी तरह से बाबा को हिन्दू सिद्ध कर दिया.यह पुस्तक को साईं संसथान द्वारा साईं बाबा के बारे में सबसे AUTHENTIC पुस्तक कही जाती है.
१९७७ – सत्य साईं बाबा ने “जय संतोषी माँ” फिल्म की अपार सफलता देवी की बढती पूजा देखकर और उससे प्रभावित होकर प्रसिद्ध प्रोडूसर डायरेक्टर मनोज कुमार को शिर्डी साईं बाबा पर फिल्म बनाने के लिए बोला और फिल्म को फिनांस भी किया.इस फिल्म में उस समय के बहुत से प्रचलित फिल्म स्टारों ने मोटा पैसा लेकर काम किया.
१९७८- फिल्म “अमर अकबर अन्थोनी” में मनमोहन देसाई को साईं बाबा का गाने डलवाने के लिए बहुत सारा पैसे सत्य साईं बाबा ने दिए.
२०१३ – साई बाबा आज की तिथि में हिन्दुओं के सबसे बड़े भगवान हो गए हैं.और इनके भक्तों को उनके बारे में जो भी झूठ बोला गया है उस पर इतना ज्यादा विश्वास है की अब हमारा सच उन्हें झूठ लगता है.किसी ने कहा है “सत्य परेशां हो सकता है लकिन पराजित नहीं”.
क्या साईं भक्तो की बुध्दि इतनी भ्रस्थ हो गयी है की उन्हें अच्छे बुरे मई फर्क दिखाई नही देता जो करुणामयी भगवान जो मागो हमको सब कुछ दे सकता है क्या वो मासाहार या अन्य कुकर्म करेगा एवं ईश्वर के बारे मई अटल सत्य है जितने भी अवतार हुए है भगवान बाल , किशोर होते है एवं कभी युवा और ब्रद्धा नही होते क्योकि भगवन कालातीत है उन पर काल का असर नही होता क्या आपने कभी भगवान राम कृष्णा की ब्रध्धावस्था की फोटो देखि है भगवन को पीड़ा नही होती क्योकि वो तो सबकी पीड़ा हारते है और आपका साईं जो शक्ल से ही भिखारी , बीमार लगता है वो आपको क्या सुख देगा इसकी खुद की मृत्यु कफ ( जिसे लोग T.B. बोलते है ) से हुयी थी आप मन मई विचार करो ऐसा आदमी भगवन हो सकता है
भगवान कृष्णा ने अपने जीवन मै पूतना , सक्तासुर, त्रनावार्त , केसी , अघासुर , वकासुर , धेनुक , कंश , सिसुपाल , दन्तवक्र , भोमसुर , आदि लाखो राक्षसों को मारकर प्रथ्वी के पाप को दूर किया साईं ने अपने जीवन मै कुछ किया ओह मई भूल गया किया तो था १ बार
१९७८- फिल्म “अमर अकबर अन्थोनी” में मनमोहन देसाई को साईं बाबा का गाने डलवाने के लिए बहुत सारा पैसे सत्य साईं बाबा ने दिए.
२०१३ – साई बाबा आज की तिथि में हिन्दुओं के सबसे बड़े भगवान हो गए हैं.और इनके भक्तों को उनके बारे में जो भी झूठ बोला गया है उस पर इतना ज्यादा विश्वास है की अब हमारा सच उन्हें झूठ लगता है.किसी ने कहा है “सत्य परेशां हो सकता है लकिन पराजित नहीं”.
क्या साईं भक्तो की बुध्दि इतनी भ्रस्थ हो गयी है की उन्हें अच्छे बुरे मई फर्क दिखाई नही देता जो करुणामयी भगवान जो मागो हमको सब कुछ दे सकता है क्या वो मासाहार या अन्य कुकर्म करेगा एवं ईश्वर के बारे मई अटल सत्य है जितने भी अवतार हुए है भगवान बाल , किशोर होते है एवं कभी युवा और ब्रद्धा नही होते क्योकि भगवन कालातीत है उन पर काल का असर नही होता क्या आपने कभी भगवान राम कृष्णा की ब्रध्धावस्था की फोटो देखि है भगवन को पीड़ा नही होती क्योकि वो तो सबकी पीड़ा हारते है और आपका साईं जो शक्ल से ही भिखारी , बीमार लगता है वो आपको क्या सुख देगा इसकी खुद की मृत्यु कफ ( जिसे लोग T.B. बोलते है ) से हुयी थी आप मन मई विचार करो ऐसा आदमी भगवन हो सकता है
भगवान कृष्णा ने अपने जीवन मै पूतना , सक्तासुर, त्रनावार्त , केसी , अघासुर , वकासुर , धेनुक , कंश , सिसुपाल , दन्तवक्र , भोमसुर , आदि लाखो राक्षसों को मारकर प्रथ्वी के पाप को दूर किया साईं ने अपने जीवन मै कुछ किया ओह मई भूल गया किया तो था १ बार
“””शिरडी में पहलवान रहता था…जिसका नाम मोहिद्दीन तम्बोली था |बाबा को उससे किसी बात पे मतभेद हो गया|फलस्वरूप दोनों में कुशीत का युद्ध हुआ जिस में साईं बाबा बुरी तरह हार गए..इसके पश्चात उन्होंने अपने खान पान और रहन-सहन मे बहुत बदलाब किये … अध्याय ५ ‘
अच्छा और बात साईं को भगवन का अंश कहने वालो के लिए ग्रंथो मई लिखा है ” ईश्वर अंश जीव अभिनाशी ” मतलब सभी जीव ईश्वर के अंश है इसका मतलब आप भगवान नही हो केवल अंश हो भगवान शिव ने समुद्र मै से निकले करोडो टन जहर को पी लिया वो ईश्वर थे आप उनके अंश हो थोडा सा आप भी चख लो पता चल जायेगा अंश और ईश्वर मई कितना फर्क है अगर आपको पूजा ही करनी है तो भगवान राम , कृष्ण, शिव जी , हनुमान जी
अच्छा और बात साईं को भगवन का अंश कहने वालो के लिए ग्रंथो मई लिखा है ” ईश्वर अंश जीव अभिनाशी ” मतलब सभी जीव ईश्वर के अंश है इसका मतलब आप भगवान नही हो केवल अंश हो भगवान शिव ने समुद्र मै से निकले करोडो टन जहर को पी लिया वो ईश्वर थे आप उनके अंश हो थोडा सा आप भी चख लो पता चल जायेगा अंश और ईश्वर मई कितना फर्क है अगर आपको पूजा ही करनी है तो भगवान राम , कृष्ण, शिव जी , हनुमान जी
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