ध्वनी या लिपि की उत्पत्ति और चक्रों का रहस्य
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किसी भी भाषा के लिए उसके मूल अक्षरों का ध्वनि स्पष्ट और उसके उच्चारण करने वाले के लिए कल्याणकारी होना चाहिए। यही बात संस्कृत के अक्षरों पर भी लागू होता है। तब आखिर शब्द बने कैसे? और उनका मानव शरीर पर क्या असर होता है? जब मैंने इसे जानने की कोशिश की तो जो जानकारी मुझे मिला वो मैं अब लिखने जा रहा हूँ।
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किसी भी भाषा के लिए उसके मूल अक्षरों का ध्वनि स्पष्ट और उसके उच्चारण करने वाले के लिए कल्याणकारी होना चाहिए। यही बात संस्कृत के अक्षरों पर भी लागू होता है। तब आखिर शब्द बने कैसे? और उनका मानव शरीर पर क्या असर होता है? जब मैंने इसे जानने की कोशिश की तो जो जानकारी मुझे मिला वो मैं अब लिखने जा रहा हूँ।
मानव शरीर की उत्पत्ति सम्पूर्ण सृष्टि में अद्भुत और दुर्लभ है क्योंकि इसी योनि में मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा खुद का मित्र या खुद का शत्रु बन जाता है {श्रीमद्भगवतगीता, आत्मसंयमयोग, अध्याय ६ , श्लोक ५}। मन द्वारा धारण किया गया सृष्टि कल्याण का संकल्प पूर्ण हो पाता है। मानव शरीर में सात चक्रों का समावेश होता है। जब मनुष्य योग में स्थित हो कर अपने प्राण शक्तियों को उर्ध्वगामी कर लेता है उस दशा में वो सातो चक्रों से गुजरता हुआ ब्रह्मलीन विचरता है। मानव शरीर का आध्यात्मिक यात्रा इन्हीं चक्रों पर आधारित है। ध्वनि की उत्पत्ति इन चक्रों से ही होती है। सभी चक्र भिन्न-भिन्न धातुओं से बने हैं। जिन से ध्वनि का धातु रूप उत्पन्न होता है, स्वर कण्ठ से और व्याकरण मुख से निकलता है। मानव शरीर में ७२००० नाड़ियाँ इन्हीं चक्रों से जुड़ी हुई हैं जिन नाड़ियों द्वारा प्राणवायु का संचार पूर्ण शरीर में होता है। इन चक्रों द्वारा जब हवा के दबाव से ध्वनि का उच्चारण होता है तो उसी हवा द्वारा मस्तिष्क में बुद्घि और शरीर के भीतरी अंगों की उर्जा धाराएं खुलती हैं और मानव अपनी बुद्धि के उल्टे व सीधे भाग में उर्जा का बहाव बढ़ा पाता है।
इन्ही सातों चक्रों द्वारा मानव शरीर ५६ प्रकार की ध्वनियों का उच्चारण कर पाता है।
इन्ही सातों चक्रों द्वारा मानव शरीर ५६ प्रकार की ध्वनियों का उच्चारण कर पाता है।
मूलधारा चक्र - व; श; ष; स; ल
स्वाधिष्ठान चक्र - ब, भ, म, थ, र, ल, व
मणिपुर चक्र - ड, ढ, ण, त, द, ध, न, प, य, फ, र
अनाहत चक्र - क, ख, ग, घ, ड़, च, छ, ज, झ, त्र, ट, ठ, य
स्वाधिष्ठान चक्र - ब, भ, म, थ, र, ल, व
मणिपुर चक्र - ड, ढ, ण, त, द, ध, न, प, य, फ, र
अनाहत चक्र - क, ख, ग, घ, ड़, च, छ, ज, झ, त्र, ट, ठ, य
विशुद्धि चक्र - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ज्ञ, लृ; ए, ऐ, ओ, अं; अः ह
आज्ञा चक्र - ह, क्ष, ॐ
सहस्रार चक्र - सभी दल के अक्षर
आज्ञा चक्र - ह, क्ष, ॐ
सहस्रार चक्र - सभी दल के अक्षर
एकमात्र संस्कृत भाषा के शब्द ही इन सभी ध्वनियों का शुद्ध रूप से उच्चारण कर पाते हैं। मानव संस्कृत भाषा के उच्चारण से दूर होने के कारण भी रोगी हो गया है, क्योंकि अन्य भाषाओं में कटी हुई ध्वनियों का उच्चारण होता है जिसकि वजह से चक्र पूर्ण रूप से नहीं घूम पाते और प्राण वायु (उर्जा) का संचार शरीर के अंगो में नहीं हो पाता। इसी की वजह से शरीर के अंग ४० से ६० साल की आयु तक के समय में रोगों को धारण करते चले जाते हैं। इसी संस्कृत भाषा से दूर होने के कारण मानव की बुद्धि- उर्जा धाराएं गहराई तक नहीं खुल पाती जिस कि वजह से किसी भी विचार पर बुद्घी पूर्णरूप से नहीं सोच पाती। मानव के पास यही एकमात्र साधन ऐसा है जिससे सुषुम्ना नाड़ी में उर्जा के बहाव से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है। मानव शरीर की चक्र प्रणाली वायु तत्वों और उर्जा द्वारा संचालित होने के कारण वैज्ञानीक उपकरणों से देखी नहीं जा सकती है।
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