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Sunday, August 18, 2013


औंछा,मैनपुरी (राकेश रागी)। श्रंगी ऋषि टीले के समतलीकरण में चोट लगी तो वहां से इतिहास झांकने लगा है। वहां मंगलवार को निकली मूर्तियों और ताम्रपत्र ऐतिहासिक हैं। यहां मंगलवार को मिला नर कंकाल सामान्य से बहुत बड़ा है। एक बार तो इसके आकार को देखने के बाद विश्वास ही नहीं होता कि यह नर कंकाल होगा लेकिन जब गर्दन सहित पूरा शरीर देखा जाता है तो मानने को मजबूर होना पड़ता है कि यह नरकंकाल है।

वैसे स्थानीय स्तर पर इस कंकाल को किसी ऋषि से देखकर जोड़ा जा रहा है। जागरण की टीम ने बुधवार को मौके का निरीक्षण किया। इस दौरान राज्य पुरातत्व विभाग में सहायक शोध प्रवक्ता मृत्युंजय मंडल को भी अपने साथ लिया।
उन्होंने वहां निकली साम‌र्ग्री का बारीकी से परीक्षण किया। पुरातत्वविद का मानना है कि श्रंगी ऋषि के टीले से निकली छोटी-छोटी मूर्तियां और ताम्रपत्र अत्यंत प्राचीन हैं। ये सब ऋषि ने जिस दौरान तपस्या आरंभ की थी, उसी समय के मालूम हो रहे हैं। वह मानते हैं कि मूर्तियों और पत्थरों पर जिस तरह की आकृतियां बनाई गई हैं, वह सभी ऋषि परंपरा से जुड़ी हुई हैं।
वहीं सबसे ज्यादा जिज्ञासा नर कंकाल को लेकर है। यह नर कंकाल आज के मनुष्य के आकार से पांच गुना अधिक मोटा और दोगुना लंबा प्रतीत हो रहा है। पुरातत्वविद् श्री मंडल का मानना है कि ये नर कंकाल किसी ऋषि का हो सकता है, जो तपस्या के दौरान मिट्टी में दब गए हों। ये भी हो सकता है कि किसी ऋषि द्वारा समाधि ली गई हो। यदि इस नर कंकाल की फोरेंसिक जांच कराई जाए तो ये भी पता चल सकता है कि यह कंकाल कितना पुराना है।
अभी बहुत हैं अवशेष
औंछा के आसपास श्रंगी ऋषि के अलावा मार्कण्डेय, मयन, ओम ऋषि द्वारा की गई तपस्या के टीले भी अभी अवशेष के रूप में बचे हुए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इन टीलों में ऋषियों की समाधियां, धूनी, तप चबूतरे, त्रिशूल, फरसा, तांबे के कमंडल, पूजा केबर्तन मिलने के साथ ही उस युग में प्रचलित मुद्रा के खजाने भी मिल सकते हैं।
88 हजार ऋषियों ने की थी तपस्या
इतिहासकारों का मानना है कि औंछा ऋषि-मुनि की तपोस्थली रही है। युद्ध में भाग लेने के लिए यहां से गुजरने वाले राजा भी यहां पड़ाव डालते थे। जानकारों के अनुसार, हजारों वर्ष पूर्व द्वापर युग में औंछा में सबसे पहले च्यवन ऋषि, मयन ऋषि आदि 88 हजार ऋषियों ने तपस्या की थी। उसी दौरान श्रंगी ऋषि,ओम ऋषि ने भी तपस्या के लिए इसी स्थान को चुना था। सभी ऋषियों ने लगभग 84 वर्ष तक औंछा में तपस्या की थी।
किंवदंती यह भी
भागवत वक्ता आचार्य जयहिंद का कहना है कि श्रीमदभगवत पुराण के अनुसार औंछा ऋषियों की तपोस्थली है। जब च्यवन ऋषि यहां तपस्या में लीन थे, तभी राजा शर्याद की पुत्री सुकन्या ने उनके मिट्टी में दबे शरीर से चमक रही आंखों को नुकीली लकड़ी से फोड़ दिया था। महर्षि ने सूर्य पुत्र अश्रि्वनी कुमार का आह्वान कर औषधियां मंगाईं। वहां मौजूद कुंड में च्यवनप्राश तैयार कर उसका सेवन किया तो वह नौजवान हो गए थे। तभी राजा शर्याद ने अपनी पुत्री सुकन्या का विवाह च्यवन ऋषि के साथ कर दिया।
ठीक हो जाते हैं चर्मरोग
ग्रामीण कृष्ण गोपाल, रामनाथ राठौर, महावीर सिंह, मंदिर के पुजारी चेतनानंद आदि का कहना है कि यहां स्थित च्यवन ऋषि कुंड में नहाने से आज भी चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। इसके अलावा मंदिर के मुख्य द्वार पर कोतवाल साहब की मूर्ति स्थापित है। इसके सामने से जो व्यक्ति घमंड से सिर ऊंचा कर गुजरता है तो उसे उसी दिन किसी न किसी घटना के चलते सिर झुकाना पड़ता है।
मैनपुरी जिले में पुरावशेष मिलने की जानकारी मिली है। इस संबंध में आगरा से एक टीम मैनपुरी भेजी जा रही है, जो पुरावशेषों का परीक्षण करेगी।


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INDIA-RUSSIA, India
Researcher of Yog-Tantra with the help of Mercury. Working since 1988 in this field.Have own library n a good collection of mysterious things. you can send me e-mail at alon291@yahoo.com Занимаюсь изучением Тантра,йоги с помощью Меркурий. В этой области работаю с 1988 года. За это время собрал внушительную библиотеку и коллекцию магических вещей. Всегда рад общению: alon291@yahoo.com