तिलक
सनातन परम्परा मे उत्सवो,त्यौहारो मे ओर किसी को सम्मान देने के लिए तिलक लगाया जाता है|
तिलक का महत्व
हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे
सात्विकता का प्रतीक माना जाता है
विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली,
हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक या कार्य
की महत्ता को ध्यान में रखकर,
इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे
तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष
अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्देश्य से
भी लगाया जाता है ।
मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर
टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र
है । शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल
ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब
पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं,
तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश
की अनुभूति होती है । इसे
प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात
को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के
उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन
होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-
उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-
बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में
स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें । इस आसान
तरीके से सर्वसाधारण
की रुचि धार्मिकता की ओर,
आत्मिकता की ओर, तृतीय नेत्र जानकर
इसके उन्मीलन की दिशा में
किया गयचा प्रयास जिससे आज्ञाचक्र को नियमित
उत्तेजना मिलती रहती है ।
अन्य देशो मे भी पहले तिलक लगाने की परम्परा थी क्युकि मतान्तरो के उदय होने से पूर्व सर्वत्र ही वैदिक सनातन धर्म था लेकिन लोगो ने अपने अपने मत बना लिये ओर अन्य देशो से सनातन ओर वैदिक धर्म का लोप हो गया |इस सम्बन्ध मे अधिक जानकारी है तु आप पी एन ओक जी की वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास १,२,३,४ अवश्य पढे|
यहा कुछ तिलक रोम,ओर इजिप्ट,आस्ट्रेलिया से है जिसमे इन लोगो ने तिलक लगा रखा है
चित्र१ ओर चित्र५ इजिप्ट से है जिसमे वहा के राजा ओर सन्यासी ने शरीर ओर माथे पर तिलक लगा रखा है| ये तिलक वैष्णव सम्प्रदायो के अनुयायियो से मिलता जुलता है | इस तरह का तिलक आपने तुलसीदास जी को लगाते देखा होगा (चित्र मे तिलक ओर तुलसीदास जी)
चित्र २ओर४ रोमन का है जिसमे रोमन शासको ने भारतीय जैसा पौशाक धोती पहन रखी है ओर माथे पर तिलक लगा रखा है दूसरी जो खडे व्यक्ति का चित्र है उसके गले ओर माथे दोनो पर तिलक है
चित्र नं३ आस्ट्रेलियन बुस मैन (आस्ट्रेलिया के मूल निवासी) का है जिसके भी माथे पर तिलक है|
इन चित्रो से आप ये स्पष्ट समझ गए होगे कि पहले सम्पूर्ण विश्व सनातन धर्म की छत्र छाया मे था| इसी तरह अन्य जगहो पर तिलक के अलावा गौ ओर नंदी पूजन की भी परम्परा थी जिसके बारे मे आप को आगे बताया जाएगा लेकिन इस्लाम,इसाई जैसे मतो की शुरूवात के बाद ये सब धीरे धीरे वहा लुप्त हो गया|
सनातन परम्परा मे उत्सवो,त्यौहारो मे ओर किसी को सम्मान देने के लिए तिलक लगाया जाता है|
तिलक का महत्व
हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे
सात्विकता का प्रतीक माना जाता है
विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली,
हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक या कार्य
की महत्ता को ध्यान में रखकर,
इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे
तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष
अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्देश्य से
भी लगाया जाता है ।
मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर
टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र
है । शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल
ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब
पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं,
तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश
की अनुभूति होती है । इसे
प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात
को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के
उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन
होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-
उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-
बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में
स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें । इस आसान
तरीके से सर्वसाधारण
की रुचि धार्मिकता की ओर,
आत्मिकता की ओर, तृतीय नेत्र जानकर
इसके उन्मीलन की दिशा में
किया गयचा प्रयास जिससे आज्ञाचक्र को नियमित
उत्तेजना मिलती रहती है ।
अन्य देशो मे भी पहले तिलक लगाने की परम्परा थी क्युकि मतान्तरो के उदय होने से पूर्व सर्वत्र ही वैदिक सनातन धर्म था लेकिन लोगो ने अपने अपने मत बना लिये ओर अन्य देशो से सनातन ओर वैदिक धर्म का लोप हो गया |इस सम्बन्ध मे अधिक जानकारी है तु आप पी एन ओक जी की वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास १,२,३,४ अवश्य पढे|
यहा कुछ तिलक रोम,ओर इजिप्ट,आस्ट्रेलिया से है जिसमे इन लोगो ने तिलक लगा रखा है
चित्र१ ओर चित्र५ इजिप्ट से है जिसमे वहा के राजा ओर सन्यासी ने शरीर ओर माथे पर तिलक लगा रखा है| ये तिलक वैष्णव सम्प्रदायो के अनुयायियो से मिलता जुलता है | इस तरह का तिलक आपने तुलसीदास जी को लगाते देखा होगा (चित्र मे तिलक ओर तुलसीदास जी)
चित्र २ओर४ रोमन का है जिसमे रोमन शासको ने भारतीय जैसा पौशाक धोती पहन रखी है ओर माथे पर तिलक लगा रखा है दूसरी जो खडे व्यक्ति का चित्र है उसके गले ओर माथे दोनो पर तिलक है
चित्र नं३ आस्ट्रेलियन बुस मैन (आस्ट्रेलिया के मूल निवासी) का है जिसके भी माथे पर तिलक है|
इन चित्रो से आप ये स्पष्ट समझ गए होगे कि पहले सम्पूर्ण विश्व सनातन धर्म की छत्र छाया मे था| इसी तरह अन्य जगहो पर तिलक के अलावा गौ ओर नंदी पूजन की भी परम्परा थी जिसके बारे मे आप को आगे बताया जाएगा लेकिन इस्लाम,इसाई जैसे मतो की शुरूवात के बाद ये सब धीरे धीरे वहा लुप्त हो गया|
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