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Tuesday, May 27, 2014




प्रमुख गणितीय सिद्धांत भारत की देन
आर्यभटट ने पाई रेशो का मान 14 वीं शताब्दी में निकाला कि पाई का मान 3.14159256 होता है आर्यभटीय के दूसरे भाग (गणितपाद 10) में, वे लिखते हैं:
चतुराधिकम सतमासअगु अमद्वासास इस्त्तथा सहस्रं अयुतादवायाविसकमभाष्यसन्नोवृत्तापरी अहा.
"१०० में चार जोड़ें, आठ से गुणा करें और फिर ६२००० जोड़ें. इस नियम से २०००० परिधि के एक वृत्त का व्यास ज्ञात किया जा सकता है. "
इसके अनुसार व्यास और परिधि का अनुपात ((४ + १०० ) × ८ + ६२००० ) / २०००० = ३.१४१६ है,
दुनिया का सबसे बड़ा समय गणना तंत्र ये सब भी हमारी संस्कृति कि देन है
1 क्रति = सेकंड का ३४००० वा भाग
1त्रुति = सेकंड का ३०० वॉ भाग
2 त्रुति = 1 लव
2 लव = 1 क्षण
30 क्षण = विपल
60 विपल = 1 पल या निमिष
60 पल = 1 घडी (२४ मिनट )
2.5 घडी = 1 हीरा (घंटा )
24 हीरा = 1 दिवस ( दिन या वार )
7 दिवस = 1 सप्ताह
4 सप्ताह = 1 माह
2 माह = 1ऋतु
6 ऋतु = 1 वर्ष
100वर्ष = 1 शताब्दी
10 शताब्दी = 1 सह्शताब्दी
432 सह्शताब्दी = 1 युग
1 युग = कल युग
2 युग = द्वापुर युग
3 युग = त्रेता युग
2 युग = सतयुग
सतयुग + त्रेता युग + द्वापुर युग + कल युग = 1 महायुग
76 महायुग = 1 मनवन्तर
1000 महायुग = 1 कल्प
एक नियत प्रलय = १ महायुग ( धरती पर जीवन अन्त और फिर प्रारम्भ )
1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प (देवो का अंत और पुनर्जन्म )
1 महाप्रलय = ७३० कल्प ( ब्रह्मा का अन्त और पुनर्जन्म )
आर्यभटट ने पाई का मान ही नहीं बल्कि पृथ्वी कि गति का भी वर्णन किया है ।
इसका विवरण निम्न प्रकार से दिया :-
अनुलोमगतिनौंस्थ: पश्यत्यचलम्‌
विलोमंग यद्वत्‌।
अचलानि भानि तद्वत्‌ सम
पश्चिमगानि लंकायाम्‌॥
आर्यभट्टीय गोलपाद-९
अर्थात्‌
नाव में यात्रा करने वाला जिस प्रकार किनारे पर स्थिर रहने वाली चट्टान, पेड़ इत्यादि को विरुद्ध दिशा में भागते देखता है, उसी प्रकार अचल नक्षत्र लंका में सीधे पूर्व से पश्चिम की ओर सरकते देखे जा सकते हैं।
भ पंजर: स्थिरो भू रेवावृत्यावृत्य प्राति दैविसिकौ।
उदयास्तमयौ संपादयति नक्षत्रग्रहाणाम्‌॥
अर्थात्‌
तारा मंडल स्थिर है और पृथ्वी अपनी दैनिक घूमने की गति से नक्षत्रों तथा ग्रहों का उदय और अस्त करती है।
भूमि गोलाकार होने के कारण विविध नगरों में रेखांतर होने के कारण अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग समय पर सूर्योदय व सूर्यास्त होते हैं। इसे आर्यभट्ट ने ज्ञात कर लिया था |
उदयो यो लंकायां सोस्तमय:
सवितुरेव सिद्धपुरे।
मध्याह्नो यवकोट्यां रोमक
विषयेऽर्धरात्र: स्यात्‌॥
(आर्यभट्टीय गोलपाद-१३)
अर्थात्‌
जब लंका में सूर्योदय होता है तब सिद्धपुर में सूर्यास्त हो जाता है। यवकोटि में मध्याह्न तथा रोमक प्रदेश में अर्धरात्रि होती है।
आर्यभट्ट ने सूर्य से विविध ग्रहों की दूरी के बारे में बताया है। वह आजकल के माप से मिलता-जुलता है।
आज पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर मानी जाती है। इसे AU ( Astronomical unit) कहा जाता है।

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INDIA-RUSSIA, India
Researcher of Yog-Tantra with the help of Mercury. Working since 1988 in this field.Have own library n a good collection of mysterious things. you can send me e-mail at alon291@yahoo.com Занимаюсь изучением Тантра,йоги с помощью Меркурий. В этой области работаю с 1988 года. За это время собрал внушительную библиотеку и коллекцию магических вещей. Всегда рад общению: alon291@yahoo.com