भारतीय देवालयाः ........हिन्दू मंदिरों की लूट
हिन्दुओ के मंदिरों और उनकी सम्पदाओं को पर कैसे एकाधिकार किया
जाये इसके लिये छद्म धर्म निरपेक्ष नेताओं के दिमाग में एक शैतानी
कीड़ा कुलबुला रहा था, इसी को ध्यान में रखते हुए इस पर एकाधिकार
करने के उद्देश्य से सन १९५१ में एक अधिनियम बना - "The Hindu
Religious and Charitable Endowment Act १९५१ "
इस अधिनियम के अंतर्गत राज्य सरकारों को मंदिरों की परिसंपत्तियों
का पूर्ण नियंत्रण प्राप्त हो गया, जिसके अंतर्गत वे मंदिरों की जमीन ,
धन आदि मूल्यवान् सामग्री को कभी भी कैसे भी बेच सकते है जिसे
कोई रोक-टोक नहीं सकता, और जैसे भी चाहे उसका उपयोग कर सकते
है, इसमें कहीं से कोई भी मनाही नहीं होगी.
हिन्दुस्तान में हो रहे मंदिरों की संपत्ति के सरकारी लूट का
रहस्योद्घाटन अपने देश में ही नहीं बल्कि इसकी गूँज एक विदेशी
लेखक "स्टीफन नाप" ने भी अपनी एक पुस्तक में किया. उन्होंने इस
विषय में एक पुस्तक लिखी -"Crimes Against India and the Need
to Protect Ancient Vedic Tradition"
इस पुस्तक में उन्होंने अनेक हिन्दू मंदिरों के सरकारी लूट जैसे तथ्यों
को उजागर किया है.
इतिहास साक्षी है कि भारत में अति प्राचीन काल से अनेक धार्मिक
राजाओं ने असंख्य मंदिरों का निर्माण किया, और श्रद्धालुओं ने इन
मंदिरों में यथा शक्ति दान देकर उन्हें आर्थिक-सामाजिक रूप से संपन्न
किया परन्तु भारत की अनेक राज सरकारों ने श्रद्धालुओं के इस धन का
अर्थात मंदिरों की संपत्तियों का भरपूर शोषण किया, अनेक गैर हिंदू
तत्वों के लिए इसका उपयोग किया गया, यहां तक कि मंदिरों का पैसा
मदरसों में भी लगाया जाता रहा, वहां के मुल्ला मौलवियों को हर महीने
तनख्वाह के रूप में बाकायदे मंदिरों में भक्तों के चढ़ावा का ही पैसा
उन्हें दिया जाता है। और, यह बात सबको पता है कि इन मदरसों से ही
आतंकवाद की पौध तैयार की जाती है। यूं कह ले कि हिन्दू श्रद्धालु अपने
पैसे से ही अपने मरने का भी बंदोबस्त करता है, यह एक प्रकार से
सेकुलर सरकार का हिन्दू जनता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है।
इस हिन्दुओं के प्रति अन्याय वाले कानून के अंतर्गत श्रद्धालुओं-भक्तों
की संपत्ति का किस तरह भारी मात्रा में दुरुपयोग हो रहा है इसका
विस्तृत वर्णन दिया गया है -
मंदिर अधिकारिता अधिनियम के अंतर्गत आंध्र प्रदेश में ४३००० मंदिरों
के संपत्ति से केवल १८ % दान मंदिरों को अपने खर्चो के लिए दिया
गया और बचा हुआ ८२ प्रतिशत कहाँ खर्च हुआ इसका कहीं भी कोई
जिक्र नहीं है।
और तो और विश्व प्रसिद्ध तिरूमाला तिरूपति मंदिर भी पूरी तरह से
सरकार ने लूट लिया है, हर साल यहां आने वाले भक्तों के दान से इस
मंदिर में लगभग १३०० करोड रुपये आते है जिसमें से ८५ प्रतिशत
सीधे राज्य सरकार के राजकोष में चले जाता है। अब निर्णय स्वयं हिन्दू
भक्त करें कि क्या हिंदू दर्शनार्थी इसलिए इन मंदिरों में दान करते हैं
कि उनका पैसा मुल्लों को मदरसों में माहवारी तनख्वाह या हज में जाने
के लिये दिया जाये।
यही नही लेखक स्टीफन एक और गंभीर आरोप आंध्र प्रदेश सरकार पर
लगाते हैं, उनके अनुसार कम से कम १० मंदिरों को सरकारी आदेश पर
अपनी जमीन देनी पड़ी , .......गोल्फ के मैदानों को बनाने के लिए !!!
स्टीफन अब यहां यह प्रश्न करते हैं कि "क्या हिन्दुस्तान में १०
मस्जिदों के साथ ऐसा होने की कल्पना की जा सकती है? सेकुलर
सरकार में दम है तो वह ऐसा करके दिखाये।"
इसी प्रकार कर्नाटक में कुल २ लाख मंदिरों से ७९ करोड़ रुपया सरकार
ने लूट लिया जिसमे से केवल ७ करोड रुपयों मंदिर कार्यकारिणियो को
दिए गए. इसी दौरान मदरसों और हज सब्सिडी के नाम पर ५९ करोड
खर्च हुआ और चर्च जीर्णोद्धार के लिए १३ लाख का अनुदान दिया गया.
सरकार के इस घृणित कार्य पर अपनी बात कहते हुए स्टीफन नाप
लिखते है "ये सब इसलिए भारत में होता होता रहा क्योंकि हिन्दुओ में
इस के विरुद्ध खड़े रहने की या आवाज उठाने की शक्ति इच्छा नहीं थी,
यहां के हिन्दू कायर और स्वार्थी थे, उनके अंदर का जमीर मर गया है,
वहां के हिंदू संगठन नपुंसक हो गये हैं, उन्हें अपने से ही लड़ने की
फुर्सत नही है"।
इन तथ्यों को रहस्योद्घाटन करते हुए स्टीफन केरल के गुरुवायुर मंदिर
का दृष्टांत देते हैं,
इस मंदिर के अनुदान से दूसरे ४५ मंदिरों का जीर्णोद्धार करने की बात
गुरुवायुर मंदिर कार्यकारिणी ने रखी थी, जिसको ठुकराते हुए मंदिर का
सारा पैसा सरकारी प्रोजेक्ट पर खर्च किया गया!
स्टीफन के अनुसार इन सबसे ज्यादा महा कुकर्म ओडिसा सरकार के है
जिसने जगन्नाथ मंदिर की ७०००० एकड़ जमीन बेचने के लिये निकाली है जिससे सरकार को इतनी आय होना संभव हो की जिसके उपयोग से वे अपने वित्तीय कुप्रबंधानो से हुए नुक्सान को भर सके.
ये बरसो से अनवरत होता आया है, इसका प्रकाशन न होने की
महत्वपूर्ण कारण है - "भारतीय की हिन्दु विरोधी प्रवृत्ति"
भारतीय मिडिया (जिसमें अंग्रेजियत कूट-कूट के भरी है ) इन तथ्यों का
रहस्योद्घाटन करने में किसी भी प्रकार की रूचि ही नही रखता.
इसलिये इस प्रकार का सरकारी लूट हमेंशा लगातार चलता रहेगा।
इस छद्म धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रित देश में हिन्दुओ की इन प्राचीन
सम्पदाओं के को दोनों हाथो से जेहादी तत्वों को लुटाया जा रहा है,
क्योंकि राज्य सरकारें हिन्दुओ की अपने धर्म के प्रति उदासीनता को
और उनकी अनंत सहिष्णुता को अच्छी तरह जानती है ... जिसका
भरपूर दोहन व शोषण हो रहा है, ये सरकारें मस्जिदों, चर्चों की
संपत्तियों को लेकर दिखायें, इनकी सरकार ही बदल जायेगी।
परन्तु अब हिन्दू समाज का धीरज समाप्त हो गया है की कोई
हिंदू, छद्म सरकार के विरूद्ध जो भारी लूटमार रूपी दुराचार में लिप्त है,
के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद करे, जनता के धन का (जो की उन्होंने
इश्वर के कार्यों में दान किया है), इस तरह से होता सरकारी दुरुपयोग
रोकने के लिए सरकार से जवाब मांगे!
जरा एक गैर-हिंदू विदेशी लेखक की भावना को देखें उसे हिन्दुओं के
उपर हो रहे इस जुल्मो-सितम को सहन नही कर पाया, उससे यह
भ्रष्टाचार देखा नहीं गया, और उसने इन तथ्यों को पूरी तरह से
पर्दाफाश किया वो भी सार्वजनिक तौर पर, परन्तु लाखों हिंदू इस
धार्मिक उत्पीड़न को प्रत्यक्ष सहन करते आ रहे हैं ....क्यों, क्या सचमुच
उनकी आत्मा मर गयी है ??? क्या अब हिन्दुओं का स्वयंभू ठेकेदार
कोई संघ जैसा संगठन हिन्दुओं के इस जुल्म के प्रति आवाज नही
उठायेगा.....क्योंकि उनकी आत्माए मर चुकी है !!
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