The secret of Telia kand
एक दिव्य औषधी तेलिया कंद
सृष्टिकर्त्ता ने प्रकृति रूपी प्रयोगशाला में औषधी रूपी रसायनों की उपस्थिति का अद्भुत सर्जन किया है । सुष्टा की इस रचना की एक प्रतिकृति अर्थात तेलिया कन्द, एक विलुप्त प्रायः वनस्पति यानि तेलिया कंन्द । सर्व प्रथम मुझे श्री नारायण दत्त श्रीमालीजी द्वारा लिखित पुस्तक में से तेलिया कन्द के विषय में विस्तृत ज्ञान प्राप्त हुआ । तत्पश्चात् मैने इस वनस्पति के विषय में अनुसन्धान कार्य प्रारम्भ किया । तेलिया कंद के विषय में अनेक भ्रामक किंवदन्तियाँ सुनने में आती है । किसी का मत है कि, तेलिया कन्द दुर्गम पहाड़ों के मध्य उत्पन्न होता है । तो कुछ लोग कहते है कि, तेलिया कन्द नाम की वनस्पति पृथ्वी से नामशेष हो गई है । इस प्रकार तेलिया कन्द क्या है, उसका वास्तविक प्राप्ति स्थान कहाँ है इस सन्दर्भ में लोग अन्धेरे में भटक रहे है । मेरे पन्द्रह वर्ष की तेलिया कन्द के विषय के अनुसन्धान के समय मुझे इस कन्द के विषय में अनेक कथन सुनने को मिले । एक महात्मा के बताने के अनुसार तेलिया कन्द लोहे को गला सकता है । एक लोहे के सरिये को लेकर जो उसे कंद के अन्दर डालकर थोड़े समय पश्चात बाहर निकालकर उसे मोड़ने पर वह आसानी से मुड़ जायेगा और कोई इसे जोगिया कन्द भी कहते है । लोग कहते है कि केन्सर के लिए यह कन्द अत्यन्त उपयोगी है । एक महात्मा के अनुसार हिमालय में साधु – महात्मा अपने शरीर की ठंड से रक्षा हेतु तेलिया कंद को चिलम में भर कर पीते है । इसके अतिरिक्त एक महात्मा ने तेलिया कन्द के द्वारा पारा एवं तांबे में से सोना (सुवर्ण) बनाया था । इसके अनेक उदाहरण हमें पढ़ने हेतु मिलते है । कई राज्यों में अनेक वनस्पतियों के मूल को लोग तेलिया कन्द नाम से जानते है । तो इस स्थिति में यहा निर्णय करना कठिन है कि वास्तविक तेलिया कंद कौन है । तो इस अनुसन्धान में यथोचित प्रयास किया है । मेरी जानकारी में इस कन्द के अनेक भाषाओं में नाम उल्लिखित है किन्तु गुरुदेव की अनुमति न होने से प्रकाशित नहीं कर सकता हूँ । प्राप्ति स्थानः- इसके प्राप्ति स्थान के विषय में किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में उल्लेख प्राप्त नहीं होता है इसके नाम और गुणधर्मों का उल्लेख प्राप्त होता है । जैसे कि राजनिघण्टु में तेलिया कन्द का उल्लेख प्राप्त होता है- अर्शारि पत्र संकाशं तिल बिन्दु समन्वितः सस्निग्धारस्थ भूमिस्थ तिल कन्दोति विस्तृत। इसी प्रकार का उल्लेख रसेन्द्र चूड़ामणी में भी दृष्टिगत होता है-तिलकन्देति
व्याख्याता तिलवत् पत्रीणी, लता क्षीरवती सुत निबंधनात्यातये खरे) । लोहद्रावीतैलकन्दं कटुष्णो वातापस्मार हारी विषारिः शोफध्नः स्याबन्धकारी रसस्य दागेवासो देहसिद्धि विद्यते । (निघण्टु भूषण) इस अतिरिक्त शब्दकल्पद्रुम के द्वितीय भाग के ८३ वें पृष्ठ पर इसका उल्लेख प्राप्त होता है । रशशास्त्र के एक ग्रन्थ सुवर्ण तंत्र (परमेश्वर परशुराम संवाद) नाम के एक ग्रन्थ में उल्लेख प्राप्त होता है कि, एक कमल कन्द जैसा कन्द होता है पानी में उत्पन्न होता है और जहाँ पर यह कन्द होता है उसमें से तेल स्रवित होकर निकटवर्ती दस फिट के घेरे में पानी के ऊपर फैला रहता है और उस कन्द के आस-पास भयंकर सर्प रहते है । इसके अतिरिक्त सामलसा गौर द्वारा लिखित जंगल की जंडी बूटी में भी पृष्ठ संख्या २२३ में भी इस कन्द का उल्लेख दृष्टिगोचर होता है। तेलिया कन्द के विषय में कहा जाता है कि यह कन्द विन्ध्याचल, आबु, गिरनार, अमरनाथ, नर्मदा नदी के किनारे, हिमालय, काश्मीर आदि स्थानों में प्राप्त होता है । मध्यभारत में छतींसगढ़, रांगाखार, भोपालपय्नम के पहाड़ों में तेलिया कन्द होतां है । उसके नाम से असके मूल बजार में बेचे जाते है । वहाँ के वृद्धों का ऐसा मत है कि जो तेलिया कन्द के रस में तांबा को गलाकर डालने पर वह(ताँबा) सोना बन जाता है । और यदि कोई व्यक्ति इस रस का सेवन करता है तो उसे बुढापा जन्दी नहीं आता है । पूज्य श्रीमालीजी ने भी इस बात का उल्लेख अपनी पुस्तक में किया है । भारतवर्ष के वे ऋषि-गण धन्य है जिन्हों ने देश को ऐसा दिव्य ज्ञान देकर देश को सोने की चिड़ियाँ की उपमा दिलाई है ।
तेलीया कंद के उपयोगः- तेलीया कंद जहरी औषधि है उसका उपयोग सावधानी पुर्वक करना, संघिवा, फोडा, जख्म दाद, भयंकर, चर्मरोग, रतवा, कंठमाल, पीडा शामक गर्भनिरोधक गर्भस्थापक शुक्रोत्पादक, शुक्रस्थंभक, धनुर अपस्मार, सर्पविष, जलोदर कफ, क्षय, श्वास खासी, किसी भी प्रकार का के´शर, पेटशुल आचकी, अस्थिभंग मसा, किल, कृमी तेलीया कंद इन तमाम बीमारीयो मे रामबाण जैसा कार्य करता है, और उसका अर्क जंतुध्न केल्शीयम कि खामी, स्वाद कडवा, स्वेदध्न सोथहर और स्फुर्ति दायक हैं तेलीया कंद को कोयले मे जला के उसकी राख को द्याव, चर्मरोग, किल वगेरे बिमारीओ मे काम करता है । अन्न नली कि सुजन मे इसके बीज को निमक के साथ मिलाकर सेवन करना, इके फूल पीले सफेद ओर खुशबु दार होते है ।
सावधानीयाः- तेलीया कंद एक जहरी-औषधी है इस लीये उसका उपयोग सावधानी पूर्वक करना, तेलीया कंद के भीतर तीन प्रकार के जहरी रसायन होते है .... जो ज्यादा मात्रा मे लेने से गले मे सुजन आना, चककर, किडनी का फेल होना या ज्यादा मात्रा मे लेने से मृत्यु तक हो सकती है इसलिए इसका पुराने कंद का हि उपयोग करना यातो कंद को रातभर पानी मे भीगोने से या पानी मे नमक डाल के ऊबालने से उसका जहर निकल जाता है ।
तेलीया कंद कि बुआईः- तेलीया कंद की खेती बीज से और कंद बोहने से होती है । पहले बीज को एमरी पेपर से धीस कर रातभर पानी मे भिगोये रखे उसके बाद गमले मे या गड्डे मे बोहना । जगा हंमेशा सडी हुई गीली अनुकुल आती है । उसके उपर ज्यादा द्युप नहि होनी चाहिए । यह प्लान्ट को ग्रिन हाउस ज्यादा अनुकुल आता हैं । मीटी थोडी क्षार वाली काली मीटी रेत और चुना मिला के इसके कंद का या बीज को रोपण करना ।
तेलीया कंद से काया कल्पः- गाय के दुध मे तेलीया कंद के चुर्ण को पंदरा दिन तक सेवन करने से व्यक्ति का काया कल्प हो जाता है । चूर्ण को दुध मे मिलाकर सेवन करना ।
तेलीया कंद से सुवर्ण निर्माणः- तेलीया कंद के रसको हरताल मे मिलाकर इकीस दिन तक द्युटाई करने पर हरताल निद्युम हो जाती है । वो आग मे डालने पर धुआ नहि देती । कहते है फिर वो हरताल ताम्र या चाँदि को गलाकर ऊसमे डालने पर वो सोना बन जाता है, पारें को तेलीया कंद के रस मे घोटने से वो बध्ध हो जाता हैं और ताम्र और चाँदि का वेद्य करता है ।
तेलीया कंद के द्वारा पारद भस्म निर्माणः- कंद को अच्छी तरह से घोट के ऊसकि लुब्दी बनाओ और ऊसी के रसमे द्योटा हुआ पारा ऊस लुब्दी के बीच मे रख शराब संपुट कर पुट देने से भस्म हो जाती है । तेलीया कंद का सर्प के साथ संबंधः- ऊसके पुष्प का आकार सर्प जेसा होता है । संस्कृत नाम सर्पपुष्पी और सर्पिणी है । इसको सर्प कंद भी कहते है । तेलीया कंद का कंद सर्प विष निवारक है । ऊस कंद के निचे सर्प रहता हैं । क्युकी ऊस कंद मे बकरी के मखन जेसी गंद्य वाला रसायन कि वजह सर्प ऊसके तरफ आकर्षित रहते है । तेलीया कंद के कांड मे सर्प के शरीर जैसा निशान होता है । जैसे कोब्रा सर्प का शरीर तेल जैसा चमकता है वैसा यह पोद्या भी तेली होता है । इस प्रकार तेलीया कंद का सर्प के साथ संबंध है । किसी किसी जगह पर कंद को ऊखाडने मे सर्प अडचन भी खडी करते हैं ।
तेलीया कंद की जातीः- तेलीया कंद एकलींगी औषधि है । उसके स्त्री और पुरुष जाती के कंद अलग-अलग होते है और एक काला तेलीया कंद भी होता है । तेलीया कंद की अनेक प्रजातिया होती हैं । ऊसमे यहा दर्शाई गई प्रख्यात है ।
तेलीया कंद की दालः- जरुरी मटेरीयलः- ऊबाले हुई तेलीया कंद के पते ऊबाली हुई चने की दाल लशुन लाल मिर्च नमक तेल, दाल की रीत, तेल को एक फ्राय पान मे डाल के सब मसाले डालकर पानी जबतक ऊबलने लगे तब तक ऊबाली इस दाल को भात के साथ खाने से पुरे साल भर कोई बिमारी नही लगती अगर शरीर के किसी भाग मे पिडा होती हैं तो वोभी ठिक हो जाती है ।
तेलीया कंद की चीप्स (वेफर)- तेलीया कंद कि छोटी-छोटी वेफर बनाके सुखा दो बाद मे वेफर को फ्राय करके ऊसमे थोडा निमक मिर्च डालके खाने से अच्छा स्वाद लगता है,
गर्भनिरोधक के रूप में तेलीया कंद का उपयोगः- तेलीया कंद के एक चमच चुर्ण को पानी के साथ एक बार लेने से एक सप्ताह तक गर्भ स्थापन नहि होता । तेलीया कंद लुप्त होने के कारनः- भारत वर्ष मेसे तेलीया कंद लुप्त होने का एक यहि कारन रहा है कि यहा के लोगो की मानसिकता अगर किसी ने यह पौधा देख लिया तो वो ऊखाड देते है । दुसरा तेलीया कंद
एकलींगी औषधि है और ऊसके स्त्री और पुरुष जाती के कंद अलग अलग होते है इस लिए उसको फलीभुत होने के लिए दोनो पोंधो का आजु बाजु होना जरुरी हो जाता है । तिशरा कारन हैं इस कंद को लाल चिटीया नष्ट कर देती है और इस कंद को छाव वाली और गीली जगह ज्यादा अनुकुल आती है वो ना मिलने पर पौधा नष्ट हो जाता है ।
तेलीया कंद का परिक्षणः- एक लोहे कि किल लेकर उस कंद के भीतर गाडदो दुसरे दिन वो किल पर अगर जंग लग जाता है तो वो सही तेलीया कंद दुसरा परिक्षण यह है कि अगर कपुर को इस कंद के ऊपर रखने पर वो गल जाता है । तेलीया कंद के नाम का विश्लेषणः- लोह द्रावक के दो अर्थ निकलते है इसके कंद का रस धातु को गला देता है । दुसरा अर्थ है अष्ट लोह मेसे किसी भी धातु को गलाते समय ऊसमें इस कंद कि मात्रा डालने पर ऊसको वो द्रवित कर देता है वो है लोहद्रावक । दुसरा करविरकंद, तेलीया कंद की एक जाती के पत्र कनेर जेसे होते हैं इसलिए इसको करविरकंद कहते है, पत्र और कांड पर रहे तिल जैसे निशान कि वजह से इसको तिलचित्रपत्रक भी कहते है । तेल जेसा द्रव स्त्रवित करता हैं इसलीए तैलकन्द इसका कंद जहरी होने से ऊसको विषकंद भी कहते है और देहसिद्धि और लोहसिद्धि प्रदाता होने की वजह से सिद्धिकंद और विशाल कंद होने की वजह से इसको कंदसंज्ञ भी कहते है ।
वाचस्पत्य
तैलकन्द-
तिलस्यायम् अण् तैलः तिलसम्बन्धो कन्द द्रव कन्दोऽडस्य । तिलचित्तपत्रके वृक्षभेदे ‘‘तैलकन्दः कटूष्णश्च लौहद्रावकरोमतः । मारुतापस्मार विषशोफनाशकरश्र्च सः ।
रसस्य बन्धकारी च देहशुद्धिकरस्तथा’’ राजनिघण्टुः । (वाचस्पत्यम् चतुर्थभाग, पृ.३३५१)
शब्दकल्पद्रुमः
तैलप्रधानः कन्दः । कन्दविशेषः । तत्पर्यायः । द्रावककन्दः । तिलाङ्कितदलः । करवीरकन्द संज्ञ। तिलचित्रपत्रकः । अस्य गुणाः । लोहद्रावित्वम् । कटुत्मम् । उष्णत्वम् । वातापस्मारविषशोफनाशि्त्वम् । रसस्य बन्धकारित्वम् । स्नेहसिद्धिकारित्वञ्च ।
इति राजनिघण्टुः।
अर्शारिः पत्र संकाशं तिलबिन्दु समन्वितः सस्निग्धारस्यः भूमिस्थ तिलकन्दोतिविस्तृत, (राजनिघण्टुः)
तिलकन्देति व्याख्याता तिलवत् पत्रिणी, लता क्षीखती सुतनिबंधनात्यातये खरे (रसेन्द्र चुड़ामणी) लोहद्रावी तैलकन्द कटुष्णो वातापस्मार हारी विषादिः, शोफध्न स्याबन्धकारी रसस्य दागेवासो देहसिद्धिः विद्यते । अथ तैलकन्द उक्तो द्रावक कंदस्तिलांकितदलक्ष करवीर कंद संज्ञों ज्ञेय तिलचित्रपत्रको बाणै। (निघण्टु भूषण) ।
मर्म कला बोधिनी
पुस्तिका- मर्मकला बोधिनी लेखक- हयात बी. शास्त्री प्रकाशक- भारत ज्योतिष विद्यालय, कर्णाटक
प्रमुख वनस्पति प्रयोग- तेलिया गन्ध यह एक पौधा है, यह तीन फिट तक (१ यार्ड, १ गज) ऊँचा होता है । इसकी जड़ गाजर जैसे गोल एवं लम्बी होती है । यदि परिपुष्ट (सुविकशित) पौधे को उखाड़ कर तोला जाय तो उसका वजन लगभग ५ सेर होगा (१ पक्व सेर-८० तोला) यह पौधा जहाँ उगता है उसके आसपास धास आदि कुछ भी नही पैदा होता है । इस पौधे के नीचे वाली भूमि कृष्ण वर्ण, अत्यन्त चिकनी और मजबूत होती है । उस पौधे की नीचली भूमि पर देखने से तेल गिराया गया हो ऐसा दृष्टिगोचर होता है । उसके पत्ते आम के पत्ते जैसे किन्तु थोड़े छोटे होते है । यह पौधा नदी के किनारे, तालाब के किनारे होता है । इसकी सूखी हुई लकड़ी से पारद का मर्दन करने से उसका बन्धन हो जाता है । इस पौधे को लोहे के सरिये से खोदने से सरिया टूट जाता है । इसलिए इसको हिरण के सींग से खोदना चाहिए । इसके फल पीले रंग के होते है ।
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The secret of telia kand
एक दिव्य औषधी तेलिया कंद zalakiratsinh@hotmail.com
Mo.9924344121
सृष्टिकर्त्ता ने प्रकृति रूपी प्रयोगशाला में औषधी रूपी रसायनों की उपस्थिति का अद्भुत सर्जन किया है । सुष्टा की इस रचना की एक प्रतिकृति अर्थात तेलिया कन्द, एक विलुप्त प्रायः वनस्पति यानि तेलिया कंन्द । सर्व प्रथम मुझे श्री नारायण दत्त श्रीमालीजी द्वारा लिखित पुस्तक में से तेलिया कन्द के विषय में विस्तृत ज्ञान प्राप्त हुआ । तत्पश्चात् मैने इस वनस्पति के विषय में अनुसन्धान कार्य प्रारम्भ किया । तेलिया कंद के विषय में अनेक भ्रामक किंवदन्तियाँ सुनने में आती है । किसी का मत है कि, तेलिया कन्द दुर्गम पहाड़ों के मध्य उत्पन्न होता है । तो कुछ लोग कहते है कि, तेलिया कन्द नाम की वनस्पति पृथ्वी से नामशेष हो गई है । इस प्रकार तेलिया कन्द क्या है, उसका वास्तविक प्राप्ति स्थान कहाँ है इस सन्दर्भ में लोग अन्धेरे में भटक रहे है । मेरे पन्द्रह वर्ष की तेलिया कन्द के विषय के अनुसन्धान के समय मुझे इस कन्द के विषय में अनेक कथन सुनने को मिले । एक महात्मा के बताने के अनुसार तेलिया कन्द लोहे को गला सकता है । एक लोहे के सरिये को लेकर जो उसे कंद के अन्दर डालकर थोड़े समय पश्चात बाहर निकालकर उसे मोड़ने पर वह आसानी से मुड़ जायेगा और कोई इसे जोगिया कन्द भी कहते है । लोग कहते है कि केन्सर के लिए यह कन्द अत्यन्त उपयोगी है । एक महात्मा के अनुसार हिमालय में साधु – महात्मा अपने शरीर की ठंड से रक्षा हेतु तेलिया कंद को चिलम में भर कर पीते है । इसके अतिरिक्त एक महात्मा ने तेलिया कन्द के द्वारा पारा एवं तांबे में से सोना (सुवर्ण) बनाया था । इसके अनेक उदाहरण हमें पढ़ने हेतु मिलते है । कई राज्यों में अनेक वनस्पतियों के मूल को लोग तेलिया कन्द नाम से जानते है । तो इस स्थिति में यहा निर्णय करना कठिन है कि वास्तविक तेलिया कंद कौन है । तो इस अनुसन्धान में यथोचित प्रयास किया है । मेरी जानकारी में इस कन्द के अनेक भाषाओं में नाम उल्लिखित है किन्तु गुरुदेव की अनुमति न होने से प्रकाशित नहीं कर सकता हूँ । प्राप्ति स्थानः- इसके प्राप्ति स्थान के विषय में किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में उल्लेख प्राप्त नहीं होता है इसके नाम और गुणधर्मों का उल्लेख प्राप्त होता है । जैसे कि राजनिघण्टु में तेलिया कन्द का उल्लेख प्राप्त होता है- अर्शारि पत्र संकाशं तिल बिन्दु समन्वितः सस्निग्धारस्थ भूमिस्थ तिल कन्दोति विस्तृत। इसी प्रकार का उल्लेख रसेन्द्र चूड़ामणी में भी दृष्टिगत होता है-तिलकन्देति
30 October 2012 18:09
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व्याख्याता तिलवत् पत्रीणी, लता क्षीरवती सुत निबंधनात्यातये खरे) । लोहद्रावीतैलकन्दं कटुष्णो वातापस्मार हारी विषारिः शोफध्नः स्याबन्धकारी रसस्य दागेवासो देहसिद्धि विद्यते । (निघण्टु भूषण) इस अतिरिक्त शब्दकल्पद्रुम के द्वितीय भाग के ८३ वें पृष्ठ पर इसका उल्लेख प्राप्त होता है । रशशास्त्र के एक ग्रन्थ सुवर्ण तंत्र (परमेश्वर परशुराम संवाद) नाम के एक ग्रन्थ में उल्लेख प्राप्त होता है कि, एक कमल कन्द जैसा कन्द होता है पानी में उत्पन्न होता है और जहाँ पर यह कन्द होता है उसमें से तेल स्रवित होकर निकटवर्ती दस फिट के घेरे में पानी के ऊपर फैला रहता है और उस कन्द के आस-पास भयंकर सर्प रहते है । इसके अतिरिक्त सामलसा गौर द्वारा लिखित जंगल की जंडी बूटी में भी पृष्ठ संख्या २२३ में भी इस कन्द का उल्लेख दृष्टिगोचर होता है। तेलिया कन्द के विषय में कहा जाता है कि यह कन्द विन्ध्याचल, आबु, गिरनार, अमरनाथ, नर्मदा नदी के किनारे, हिमालय, काश्मीर आदि स्थानों में प्राप्त होता है । मध्यभारत में छतींसगढ़, रांगाखार, भोपालपय्नम के पहाड़ों में तेलिया कन्द होतां है । उसके नाम से असके मूल बजार में बेचे जाते है । वहाँ के वृद्धों का ऐसा मत है कि जो तेलिया कन्द के रस में तांबा को गलाकर डालने पर वह(ताँबा) सोना बन जाता है । और यदि कोई व्यक्ति इस रस का सेवन करता है तो उसे बुढापा जन्दी नहीं आता है । पूज्य श्रीमालीजी ने भी इस बात का उल्लेख अपनी पुस्तक में किया है । भारतवर्ष के वे ऋषि-गण धन्य है जिन्हों ने देश को ऐसा दिव्य ज्ञान देकर देश को सोने की चिड़ियाँ की उपमा दिलाई है । वनस्पति विशेषज्ञ झाला किरत सिंह (मोरबी-पीपलीं) किसी व्यक्ति के पास इस कन्द के विषय में अधिक जानकारी और साहित्य – प्रयोग हो तो संपर्क करने की विनम्र प्रार्थना है । मो. ९८२४१६०६६९ ई-मेल- zalakiratsinh@yahoo.com
तेलीया कंद के उपयोगः- तेलीया कंद जहरी औषधि है उसका उपयोग सावधानी पुर्वक करना, संघिवा, फोडा, जख्म दाद, भयंकर, चर्मरोग, रतवा, कंठमाल, पीडा शामक गर्भनिरोधक गर्भस्थापक शुक्रोत्पादक, शुक्रस्थंभक, धनुर अपस्मार, सर्पविष, जलोदर कफ, क्षय, श्वास खासी, किसी भी प्रकार का के´शर, पेटशुल आचकी, अस्थिभंग मसा, किल, कृमी तेलीया कंद इन तमाम बीमारीयो मे रामबाण जैसा कार्य करता है, और उसका अर्क जंतुध्न केल्शीयम कि खामी, स्वाद कडवा, स्वेदध्न सोथहर और स्फुर्ति दायक हैं तेलीया कंद को कोयले मे जला के उसकी राख को द्याव, चर्मरोग, किल वगेरे बिमारीओ मे काम करता है । अन्न नली कि सुजन मे इसके बीज को निमक के साथ मिलाकर सेवन करना, इके फूल पीले सफेद ओर खुशबु दार होते है ।
सावधानीयाः- तेलीया कंद एक जहरी-औषधी है इस लीये उसका उपयोग सावधानी पूर्वक करना, तेलीया कंद के भीतर तीन प्रकार के जहरी रसायन होते है .... जो ज्यादा मात्रा मे लेने से गले मे सुजन आना, चककर, किडनी का फेल होना या ज्यादा मात्रा मे लेने से मृत्यु तक हो सकती है इसलिए इसका पुराने कंद का हि उपयोग करना यातो कंद को रातभर पानी मे भीगोने से या पानी मे नमक डाल के ऊबालने से उसका जहर निकल जाता है ।
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तेलीया कंद कि बुआईः- तेलीया कंद की खेती बीज से और कंद बोहने से होती है । पहले बीज को एमरी पेपर से धीस कर रातभर पानी मे भिगोये रखे उसके बाद गमले मे या गड्डे मे बोहना । जगा हंमेशा सडी हुई गीली अनुकुल आती है । उसके उपर ज्यादा द्युप नहि होनी चाहिए । यह प्लान्ट को ग्रिन हाउस ज्यादा अनुकुल आता हैं । मीटी थोडी क्षार वाली काली मीटी रेत और चुना मिला के इसके कंद का या बीज को रोपण करना ।
तेलीया कंद से काया कल्पः- गाय के दुध मे तेलीया कंद के चुर्ण को पंदरा दिन तक सेवन करने से व्यक्ति का काया कल्प हो जाता है । चूर्ण को दुध मे मिलाकर सेवन करना ।
तेलीया कंद से सुवर्ण निर्माणः- तेलीया कंद के रसको हरताल मे मिलाकर इकीस दिन तक द्युटाई करने पर हरताल निद्युम हो जाती है । वो आग मे डालने पर धुआ नहि देती । कहते है फिर वो हरताल ताम्र या चाँदि को गलाकर ऊसमे डालने पर वो सोना बन जाता है, पारें को तेलीया कंद के रस मे घोटने से वो बध्ध हो जाता हैं और ताम्र और चाँदि का वेद्य करता है ।
तेलीया कंद के द्वारा पारद भस्म निर्माणः- कंद को अच्छी तरह से घोट के ऊसकि लुब्दी बनाओ और ऊसी के रसमे द्योटा हुआ पारा ऊस लुब्दी के बीच मे रख शराब संपुट कर पुट देने से भस्म हो जाती है । तेलीया कंद का सर्प के साथ संबंधः- ऊसके पुष्प का आकार सर्प जेसा होता है । संस्कृत नाम सर्पपुष्पी और सर्पिणी है । इसको सर्प कंद भी कहते है । तेलीया कंद का कंद सर्प विष निवारक है । ऊस कंद के निचे सर्प रहता हैं । क्युकी ऊस कंद मे बकरी के मखन जेसी गंद्य वाला रसायन कि वजह सर्प ऊसके तरफ आकर्षित रहते है । तेलीया कंद के कांड मे सर्प के शरीर जैसा निशान होता है । जैसे कोब्रा सर्प का शरीर तेल जैसा चमकता है वैसा यह पोद्या भी तेली होता है । इस प्रकार तेलीया कंद का सर्प के साथ संबंध है । किसी किसी जगह पर कंद को ऊखाडने मे सर्प अडचन भी खडी करते हैं ।
तेलीया कंद की जातीः- तेलीया कंद एकलींगी औषधि है । उसके स्त्री और पुरुष जाती के कंद अलग-अलग होते है और एक काला तेलीया कंद भी होता है । तेलीया कंद की अनेक प्रजातिया होती हैं । ऊसमे यहा दर्शाई गई प्रख्यात है ।
तेलीया कंद की दालः- जरुरी मटेरीयलः- ऊबाले हुई तेलीया कंद के पते ऊबाली हुई चने की दाल लशुन लाल मिर्च नमक तेल, दाल की रीत, तेल को एक फ्राय पान मे डाल के सब मसाले डालकर पानी जबतक ऊबलने लगे तब तक ऊबाली इस दाल को भात के साथ खाने से पुरे साल भर कोई बिमारी नही लगती अगर शरीर के किसी भाग मे पिडा होती हैं तो वोभी ठिक हो जाती है ।
तेलीया कंद की चीप्स (वेफर)- तेलीया कंद कि छोटी-छोटी वेफर बनाके सुखा दो बाद मे वेफर को फ्राय करके ऊसमे थोडा निमक मिर्च डालके खाने से अच्छा स्वाद लगता है,
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गर्भनिरोधक के रूप में तेलीया कंद का उपयोगः- तेलीया कंद के एक चमच चुर्ण को पानी के साथ एक बार लेने से एक सप्ताह तक गर्भ स्थापन नहि होता । तेलीया कंद लुप्त होने के कारनः- भारत वर्ष मेसे तेलीया कंद लुप्त होने का एक यहि कारन रहा है कि यहा के लोगो की मानसिकता अगर किसी ने यह पौधा देख लिया तो वो ऊखाड देते है । दुसरा तेलीया कंद
एकलींगी औषधि है और ऊसके स्त्री और पुरुष जाती के कंद अलग अलग होते है इस लिए उसको फलीभुत होने के लिए दोनो पोंधो का आजु बाजु होना जरुरी हो जाता है । तिशरा कारन हैं इस कंद को लाल चिटीया नष्ट कर देती है और इस कंद को छाव वाली और गीली जगह ज्यादा अनुकुल आती है वो ना मिलने पर पौधा नष्ट हो जाता है ।
तेलीया कंद का परिक्षणः- एक लोहे कि किल लेकर उस कंद के भीतर गाडदो दुसरे दिन वो किल पर अगर जंग लग जाता है तो वो सही तेलीया कंद दुसरा परिक्षण यह है कि अगर कपुर को इस कंद के ऊपर रखने पर वो गल जाता है । तेलीया कंद के नाम का विश्लेषणः- लोह द्रावक के दो अर्थ निकलते है इसके कंद का रस धातु को गला देता है । दुसरा अर्थ है अष्ट लोह मेसे किसी भी धातु को गलाते समय ऊसमें इस कंद कि मात्रा डालने पर ऊसको वो द्रवित कर देता है वो है लोहद्रावक । दुसरा करविरकंद, तेलीया कंद की एक जाती के पत्र कनेर जेसे होते हैं इसलिए इसको करविरकंद कहते है, पत्र और कांड पर रहे तिल जैसे निशान कि वजह से इसको तिलचित्रपत्रक भी कहते है । तेल जेसा द्रव स्त्रवित करता हैं इसलीए तैलकन्द इसका कंद जहरी होने से ऊसको विषकंद भी कहते है और देहसिद्धि और लोहसिद्धि प्रदाता होने की वजह से सिद्धिकंद और विशाल कंद होने की वजह से इसको कंदसंज्ञ भी कहते है ।
वाचस्पत्य
तैलकन्द-
तिलस्यायम् अण् तैलः तिलसम्बन्धो कन्द द्रव कन्दोऽडस्य । तिलचित्तपत्रके वृक्षभेदे ‘‘तैलकन्दः कटूष्णश्च लौहद्रावकरोमतः । मारुतापस्मार विषशोफनाशकरश्र्च सः ।
रसस्य बन्धकारी च देहशुद्धिकरस्तथा’’ राजनिघण्टुः । (वाचस्पत्यम् चतुर्थभाग, पृ.३३५१)
शब्दकल्पद्रुमः
तैलप्रधानः कन्दः । कन्दविशेषः । तत्पर्यायः । द्रावककन्दः । तिलाङ्कितदलः । करवीरकन्द संज्ञ। तिलचित्रपत्रकः । अस्य गुणाः । लोहद्रावित्वम् । कटुत्मम् । उष्णत्वम् । वातापस्मारविषशोफनाशि्त्वम् । रसस्य बन्धकारित्वम् । स्नेहसिद्धिकारित्वञ्च ।
इति राजनिघण्टुः।
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अर्शारिः पत्र संकाशं तिलबिन्दु समन्वितः सस्निग्धारस्यः भूमिस्थ तिलकन्दोतिविस्तृत, (राजनिघण्टुः)
तिलकन्देति व्याख्याता तिलवत् पत्रिणी, लता क्षीखती सुतनिबंधनात्यातये खरे (रसेन्द्र चुड़ामणी) लोहद्रावी तैलकन्द कटुष्णो वातापस्मार हारी विषादिः, शोफध्न स्याबन्धकारी रसस्य दागेवासो देहसिद्धिः विद्यते । अथ तैलकन्द उक्तो द्रावक कंदस्तिलांकितदलक्ष करवीर कंद संज्ञों ज्ञेय तिलचित्रपत्रको बाणै। (निघण्टु भूषण) ।
मर्म कला बोधिनी
पुस्तिका- मर्मकला बोधिनी लेखक- हयात बी. शास्त्री प्रकाशक- भारत ज्योतिष विद्यालय, कर्णाटक
प्रमुख वनस्पति प्रयोग- तेलिया गन्ध यह एक पौधा है, यह तीन फिट तक (१ यार्ड, १ गज) ऊँचा होता है । इसकी जड़ गाजर जैसे गोल एवं लम्बी होती है । यदि परिपुष्ट (सुविकशित) पौधे को उखाड़ कर तोला जाय तो उसका वजन लगभग ५ सेर होगा (१ पक्व सेर-८० तोला) यह पौधा जहाँ उगता है उसके आसपास धास आदि कुछ भी नही पैदा होता है । इस पौधे के नीचे वाली भूमि कृष्ण वर्ण, अत्यन्त चिकनी और मजबूत होती है । उस पौधे की नीचली भूमि पर देखने से तेल गिराया गया हो ऐसा दृष्टिगोचर होता है । उसके पत्ते आम के पत्ते जैसे किन्तु थोड़े छोटे होते है । यह पौधा नदी के किनारे, तालाब के किनारे होता है । इसकी सूखी हुई लकड़ी से पारद का मर्दन करने से उसका बन्धन हो जाता है । इस पौधे को लोहे के सरिये से खोदने से सरिया टूट जाता है । इसलिए इसको हिरण के सींग से खोदना चाहिए । इसके फल पीले रंग के होते है ।
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