विश्वविख्यात खजुराहो के मंदिर मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में है। खजुराहो खर्जुरवाहक का परिवर्तित रूप माना गया है। कनिंघम के अनुसार खर्जुर वाटिका से खजुवाटिका और फिर खजुराहो हो गया।
खजुराहो के मंदिर अपनी आकृति सौंदर्य के लिए ही नहीं, वरन् अपने जीवंत शिल्प के कारण विश्रुत है। बिना परकोटा के सभी मंदिर ऊंचे चबूतरे पर निर्मित है। बहुत-से मंदिरों में गर्भगृह के बाहर तथा दीवारों पर मूर्तियों की दो-तीन पंक्तियां है। इनमें मुख्य देवी-देवताओं की मूर्तियां, आलिंगनबद्ध युगल, नाग, शार्दूल और शाल-भंजिका तथा अनुपम नारी-सौंदर्य की प्रतिमाएं उत्कीर्ण है। दैनन्दिन मानवीय जीवन के उल्लास, पीड़ा-व्यथा, संगीत-गायन तथा नृत्य की मुद्राओं में ये पाषाण प्रतिमाएं तत्कालीन शिल्पियों के कला-कौशल की चिर स्मारक है। मुखर, मांसल, लावण्य की स्पन्दमयी चरम सीमाओं को मूर्त करते हुए खजुराहो के पाषाणी उभार दर्शकों की आंखों में घर कर लेते है।
पाषाण जैसे कठोर फलक पर उत्कीर्ण खजुराहो कला की जान अप्सराओं एवं सुर-सुन्दरियों की मूर्तियां, कोमल भावनाओं की अन्यतम् अभिव्यक्तियां है। सौंदर्य की जितनी भी मृदु-मधुर अभिव्यक्तियां हो सकती है, वह वैभिन्य एवं मोहकता के साथ पत्थर पर ढाल दी गई हैं। देवी-देवताओं, पशु-पक्षियों की अपेक्षा नारी-सौंदर्य का अंकन अनुपम एवं विलक्षण है। देवीय गुणों से युक्त नारी तथा उसकी सामाजिक स्थिति खजुराहो में अपने सुंदरतम रूप में अभिव्यक्ति हुई है। खजुराहो की नारी सर्वाग सुंदर है- बाहर से भी और भीतर से भी। वह सुशिक्षित है, नृत्य-संगीत की पंडिता है, चित्रकला प्रवीणा है, खेल-कूद में रुचि रखने वाली है। वह गेंद लिए अनेक स्थानों पर मूर्तित है। विभिन्न प्रकार से अपने जूड़ों को संवारते हुए, ललाट पर तिलक लगाते हुए, नेत्रों में अंजन लगाते हुए, अधरों पर लाली लगाते हुए और चरणों में मेंहदी रचाती हुई नारी-मूर्तियों को देखकर श्रृंगार प्रसाधन संबंधी रुचियों का पता लगता है। आभूषणों, पुष्प-मालाओं एवं पुष्पों से आभूषित नारी के अनेक रूप यहां उत्कीर्ण है।
घरेलू नारी का मूर्तिकरण भी यहां द्रष्टव्य है। जल भरते हुए, ईश्वर की आराधना करते हुए, पुत्र को प्यार करते हुए नारी के रूप मनोहर है। सद्य:स्नाता तथा केश प्रच्छालन करती नारी की मूर्ति अत्यन्त कमनीय है और दर्शक को अभिभूत कर देती है। मूर्तियों को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि खजुराहो की मध्यकालीन नारी वस्त्रों का उपयोग कम ही करती थी। कटि के नीचे धोती है पर सिर पर ओढ़नी नहीं। वक्ष पर कंचुकी है पर उत्तारीय नहीं। ऐसा लगता है- रूप सौंदर्य के प्रदर्शन में तत्कालीन नारी लज्जा का अनुभव नहीं करती थी।
नारी मूर्तियों के अंग-प्रत्यंग की रचना देखते ही बनती है। नारी के खड़े होने, चलने-फिरने सभी में एक विशेष सौंदर्य योजना है। उसके प्रत्येक हाव-भाव में कोमलता, क्रिया विदग्धता और कटाक्ष है। हाव-भाव की संरचना में कलाकार ने अंगुलियों एवं आंखों की क्रियाशीलता का विशेष ध्यान रखा है। यही बात वक्ष एवं पृष्ठभाग के विषय में भी कही जा सकती है। श्रोणि भाग को सामने लाने के लिए कहीं-कहीं शरीर में इतना मरोड़ लाया गया है कि स्वाभाविकता नष्ट हो गई है। अतिक्षीण, कोमल एवं लचीली कमर यौवन-भार को संभालने में असमर्थ-सी लगती है।
युग्मभाव को मूर्तित करने वाली नारी-मूर्तियां प्रेम और प्रसंग के व्यापार में पुरुष की तरह सचेष्ट एवं आनंदित प्रतीत होती है। वे यौवन के उत्ताल तरंगों पर दोलायमान है। खजुराहो का पुरुष लम्पट और व्यभिचारी नहीं। वह प्रेम और स्त्री-प्रसंग को पवित्र यज्ञ-सा समझता हुआ प्रतीत होता है। उसके पीछे एक धार्मिक भावना अन्तर्निहित-सी प्रतीत होती है।
कामिनी की कमनीय देह वल्लरी हर लोच और लचक को रेखांकित करती है मूर्तियां। स्त्री-चरणों के नुपूर, पायल, पैजनी तथा तोडल, मध्य भाग के कटिबंध मणि झालर तथा स्वर्णपट्टिका, वक्ष की दो लड़ी से सात लड़ तक की मणिमाला, वैजयंतीमाला, मोहनमाला, हार विदानी और बीजक पूरक, हाथों के स्वर्ण वलय, मणिकंठान, भुजबंध, गजरा, बधमुंहा, चूड़ा बंगरी तथा बबूल फली, बोहटा आदि माथे की बिंदिया, दामिनी, शीश फूल और सिर की पुष्पमाला, पुष्पमुकुट, जटामुकुट, मुक्तादाम तथा स्वर्ण श्रृंखलाओं का अंकन भी कुशलता के साथ किया गया है।
प्रिय-पत्र में लवलीन प्रोषित पतिका, पगतल में आलक्तक रमाती हुई कामिनी, नेत्रों को अंजन-शलाका का स्पर्श देती हुई सुलोचना, बालक को पयपान कराती स्नेह वत्सला जननी तथा पैर से कंटक मोचन करती विपगथा तथा नुपूर बांधती हुई नृत्योद्धत किन्नर बाला की विख्यात प्रतिमाएं अपनी जीवंत कला को समाहित कर रही है।
आभरण, अलंकार, आयुध और परिकर के अतिरिक्त खजुराहो की विशेषता तो इन प्रतिमाओं के आनन पर विभिन्न मनोभावों का ऐसा सजीव चित्रण है, जिसके आधार पर यह कहने का मन होता है कि यहां के कलाकारों ने स्थूल शरीर का निर्माण कर विराम नहीं लिया, वरन् उनमें प्राण-संचार भी किया है।
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- MAHAVAZRA
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- Researcher of Yog-Tantra with the help of Mercury. Working since 1988 in this field.Have own library n a good collection of mysterious things. you can send me e-mail at alon291@yahoo.com Занимаюсь изучением Тантра,йоги с помощью Меркурий. В этой области работаю с 1988 года. За это время собрал внушительную библиотеку и коллекцию магических вещей. Всегда рад общению: alon291@yahoo.com
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