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Saturday, October 1, 2011

The great ancient Indian epic, the Mahabharata, contains numerous legends about the powerful force of a mysterious weapon.

The archaeological expedition, which carried out excavations near the Indian settlement of Mohenjo-Daro in the beginning of the 1900s, uncovered the ruins of a big ancient town. The town belonged to one of the most developed civilizations in the world. The ancient civilization existed for two or three thousand years. However, scientists were a lot more interested in the death of the town, rather than in its prosperity.
Researchers tried to explain the reason of the town's destruction with various theories. However, scientists did not find any indications of a monstrous flood, skeletons were not numerous, there were no fragments of weapons, or anything else that could testify either to a natural disaster or a war. Archaeologists were perplexed: according to their analysis the catastrophe in the town had occurred very unexpectedly and it did hot last long.
Scientists Davneport and Vincenti put forward an amazing theory. They stated the ancient town had been ruined with a nuclear blast. They found big stratums of clay and green glass. Apparently, archaeologists supposed, high temperature melted clay and sand and they hardened immediately afterwards. Similar stratums of green glass can also found in Nevada deserts after every nuclear explosion.
A hundred years have passed since the excavations in Mohenjo-Daro. The modern analysis showed, the fragments of the ancient town had been melted with extremely high temperature – not less than 1,500 degrees centigrade. Researchers also found the strictly outlined epicenter, where all houses were leveled. Destructions lessened towards the outskirts. Dozens of skeletons were found in the area of Mohenjo-Daro – their radioactivity exceeded the norm almost 50 times.
The great ancient Indian epic, the Mahabharata, contains numerous legends about the powerful force of amysterious weapon. One of the chapters tells of a shell, which sparkled like fire, but had no smoke. “When the shell hit the ground, the darkness covered the sky, twisters and storms leveled the towns. A horrible blast burnt thousands of animals and people to ashes. Peasants, townspeople and warriors dived in the river to wash away the poisonous dust.”
Astounding mysteries of India's ancient times can be found in the town of Shivapur. There are two enigmatic stones resting opposite the local shrine. One of them weighs 55 kilograms, the other one is 41 kilograms. If eleven men touch the bigger stone, and nine men touch the smaller stone, if they all chant the magic phrase, which is carved on one of the walls of the shrine, the two stones will raise two meters up in the air and will hang there for two seconds, as if there is no gravitation at all. A lot of European and Asian scientists and researchers have studied the phenomenon of levitating stones of Shivapur.
Modern people divide the day into 24 hours, the hour – into 60 minutes, the minute - into 60 seconds. Ancient Hindus divided the day in 60 periods, lasting 24 minutes each, and so on and so forth. The shortest time period of ancient Hindus made up one-three-hundred-millionth of a second.

3 comments:

MAHAVAZRA said...

भारत में विज्ञान,परमाणु बम

आधुनिक भारत में अंग्रेजों के समय से जो इतिहास पढाया जाता है वह चन्द्रगुप्त मौर्य के वंश से आरम्भ होता है। उस से पूर्व के इतिहास को ‘ प्रमाण-रहित’ कह कर नकार दिया जाता है। हमारे ‘देसी अंग्रेजों’ को यदि सर जान मार्शल प्रमाणित नहीं करते तो हमारे ’बुद्धिजीवियों’ को विशवास ही नहीं होना था कि हडप्पा और मोइन जोदडो स्थल ईसा से लग भग 5000 वर्ष पूर्व के समय के हैं और वहाँ पर ही विश्व की प्रथम सभ्यता ने जन्म लिया था।

विदेशी इतिहासकारों के उल्लेख

विश्व की प्राचीनतम् सिन्धु घाटी सभ्यता मोइन जोदडो के बारे में पाये गये उल्लेखों को सुलझाने के प्रयत्न अभी भी चल रहे हैं। जब पुरातत्व शास्त्रियों ने पिछली शताब्दी में मोइन जोदडो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था तो उन्हों ने देखा कि वहाँ की गलियों में नर-कंकाल पडे थे। कई अस्थि पिंजर चित अवस्था में लेटे थे और कई अस्थि पिंजरों ने एक दूसरे के हाथ इस तरह पकड रखे थे मानों किसी विपत्ति नें उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुँचा दिया था।

उन नर कंकालों पर उसी प्रकार की रेडियो -ऐक्टीविटी के चिन्ह थे जैसे कि जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गये थे। मोइन जोदडो स्थल के अवशेषों पर नाईट्रिफिकेशन के जो चिन्ह पाये गये थे उस का कोई स्पष्ट कारण नहीं था क्यों कि ऐसी अवस्था केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही हो सकती है।

MAHAVAZRA said...

भारत में विज्ञान,परमाणु बम

आधुनिक भारत में अंग्रेजों के समय से जो इतिहास पढाया जाता है वह चन्द्रगुप्त मौर्य के वंश से आरम्भ होता है। उस से पूर्व के इतिहास को ‘ प्रमाण-रहित’ कह कर नकार दिया जाता है। हमारे ‘देसी अंग्रेजों’ को यदि सर जान मार्शल प्रमाणित नहीं करते तो हमारे ’बुद्धिजीवियों’ को विशवास ही नहीं होना था कि हडप्पा और मोइन जोदडो स्थल ईसा से लग भग 5000 वर्ष पूर्व के समय के हैं और वहाँ पर ही विश्व की प्रथम सभ्यता ने जन्म लिया था।

विदेशी इतिहासकारों के उल्लेख

विश्व की प्राचीनतम् सिन्धु घाटी सभ्यता मोइन जोदडो के बारे में पाये गये उल्लेखों को सुलझाने के प्रयत्न अभी भी चल रहे हैं। जब पुरातत्व शास्त्रियों ने पिछली शताब्दी में मोइन जोदडो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था तो उन्हों ने देखा कि वहाँ की गलियों में नर-कंकाल पडे थे। कई अस्थि पिंजर चित अवस्था में लेटे थे और कई अस्थि पिंजरों ने एक दूसरे के हाथ इस तरह पकड रखे थे मानों किसी विपत्ति नें उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुँचा दिया था।

उन नर कंकालों पर उसी प्रकार की रेडियो -ऐक्टीविटी के चिन्ह थे जैसे कि जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गये थे। मोइन जोदडो स्थल के अवशेषों पर नाईट्रिफिकेशन के जो चिन्ह पाये गये थे उस का कोई स्पष्ट कारण नहीं था क्यों कि ऐसी अवस्था केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही हो सकती है।

मोइनजोदडो की भूगोलिक स्थिति

मोइन जोदडो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है। उस के चारों ओर दो किलोमीटर के क्षेत्र में तीन प्रकार की तबाही देखी जा सकती है जो मध्य केन्द्र से आरम्भ हो कर बाहर की तरफ गोलाकार फैल गयी थी। पुरात्तव विशेषज्ञ्यों ने पाया कि मिट्टी चूने के बर्तनों के अवशेष किसी ऊष्णता के कारण पिघल कर ऐक दूसरे के साथ जुड गये थे। हजारों की संख्या में वहां पर पाये गये ढेरों को पुरात्तव विशेषज्ञ्यों ने काले पत्थरों ‘बलैक -स्टोन्स’ की संज्ञा दी। वैसी दशा किसी ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे की राख के सूख जाने के कारण होती है। किन्तु मोइन जोदडो स्थल के आस पास कहीं भी कोई ज्वालामुखी की राख जमी हुयी नहीं पाई गयी।

निशकर्ष यही हो सकता है कि किसी कारण अचानक ऊष्णता 2000 डिग्री तक पहुँची जिस में चीनी मिट्टी के पके हुये बर्तन भी पिघल गये । अगर ज्वालामुखी नहीं था तो इस प्रकार की घटना अणु बम के विस्फोट पश्चात ही घटती है।

MAHAVAZRA said...

महाभारत के आलेख

इतिहास मौन है परन्तु महाभारत युद्ध में महा संहारक क्षमता वाले अस्त्र शस्त्रों और विमान रथों के साथ ऐक एटामिक प्रकार के युद्ध का उल्लेख भी मिलता है। महाभारत में उल्लेख है कि मय दानव के विमान रथ का परिवृत 12 क्यूबिट था और उस में चार पहिये लगे थे। देव दानवों के इस युद्ध का वर्णन स्वरूप इतना विशाल है जैसे कि हम आधुनिक अस्त्र शस्त्रों से लैस सैनाओं के मध्य परिकल्पना कर सकते हैं। इस युद्ध के वृतान्त से बहुत महत्व शाली जानकारी प्राप्त होती है। केवल संहारक शस्त्रों का ही प्रयोग नहीं अपितु इन्द्र के वज्र अपने चक्रदार रफलेक्टर के माध्यम से संहारक रूप में प्रगट होता है। उस अस्त्र को जब दाग़ा गया तो ऐक विशालकाय अग्नि पुंज की तरह उस ने अपने लक्ष्य को निगल लिया था। वह विनाश कितना भयावह था इसका अनुमान महाभारत के निम्न स्पष्ट वर्णन से लगाया जा सकता हैः-

“अत्यन्त शक्तिशाली विमान से ऐक शक्ति – युक्त अस्त्र प्रक्षेपित किया गया…धुएँ के साथ अत्यन्त चमकदार ज्वाला, जिस की चमक दस हजार सूर्यों के चमक के बराबर थी, का अत्यन्त भव्य स्तम्भ उठा…वह वज्र के समान अज्ञात अस्त्र साक्षात् मृत्यु का भीमकाय दूत था जिसने वृष्ण और अंधक के समस्त वंश को भस्म करके राख बना दिया…उनके शव इस प्रकार से जल गए थे कि पहचानने योग्य नहीं थे. उनके बाल और नाखून अलग होकर गिर गए थे…बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के बर्तन टूट गए थे और पक्षी सफेद पड़ चुके थे…कुछ ही घण्टों में समस्त खाद्य पदार्थ संक्रमित होकर विषैले हो गए…उस अग्नि से बचने के लिए योद्धाओं ने स्वयं को अपने अस्त्र-शस्त्रों सहित जलधाराओं में डुबा लिया…”

उपरोक्त वर्णन दृश्य रूप में हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु विस्फोट के दृश्य जैसा दृष्टिगत होता है।

ऐक अन्य वृतान्त में श्री कृष्ण अपने प्रतिदून्दी शल्व का आकाश में पीछा करते हैं। उसी समय आकाश में शल्व का विमान ‘शुभः’ अदृष्य हो जाता है। उस को नष्ट करने के विचार से श्री कृष्ण नें ऐक ऐसा अस्त्र छोडा जो आवाज के माध्यम से शत्रु को खोज कर उसे लक्ष्य कर सकता था। आजकल ऐसे मिस्साईल्स को हीट-सीकिंग और साऊड-सीकरस कहते हैं और आधुनिक सैनाओं दूारा प्रयोग किये जाते हैं।

राजस्थान से भी…
प्राचीन भारत में परमाणु विस्फोट के अन्य और भी अनेक साक्ष्य मिलते हैं। राजस्थान में जोधपुर से पश्चिम दिशा में लगभग दस मील की दूरी पर तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर रेडियोएक्टिव राख की मोटी सतह पाई जाती है, वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे।

‘लक्ष्मण-रेखा’ प्रकार की अदृष्य ‘इलेक्ट्रानिक फैंस’ तो कोठियों में आज कल पालतु जानवरों को सीमित रखने के लिये प्रयोग की जातीं हैं, अपने आप खुलने और बन्द होजाने वाले दरवाजे किसी भी माल में जा कर देखे जा सकते हैं। यह सभी चीजे पहले आशचर्य जनक थीं परन्तु आज ऐक आम बात बन चुकी हैं। ‘मन की गति से चलने वाले’ रावण के पुष्पक-विमान का ‘प्रोटोटाईप’ भी उडान भरने के लिये चीन ने बना लिया है।

निस्संदेह रामायण तथा महाभारत के ग्रंथकार दो प्रथक-प्रथक ऋषि थे और आजकल की सैनाओं के साथ उन का कोई सम्बन्ध नहीं था। वह दोनो महाऋषि थे और किसी साईंटिफिक – फिक्शन के थ्रिल्लर – राईटर नहीं थे। उन के उल्लेखों में समानता इस बात की साक्षी है कि तथ्य क्या है और साहित्यक कल्पना क्या होती है। कल्पना को भी विकसित होने के लिये किसी ठोस धरातल की आवश्यक्ता होती है।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र जैसे अस्त्र अवश्य ही परमाणु शक्ति से सम्पन्न थे, किन्तु हम स्वयं ही अपने प्राचीन ग्रंथों में वर्णित विवरणों को मिथक मानते हैं और उनके आख्यान तथा उपाख्यानों को कपोल कल्पना, हमारा ऐसा मानना केवल हमें मिली दूषित शिक्षा का परिणाम है जो कि, अपने धर्मग्रंथों के प्रति आस्था रखने वाले पूर्वाग्रह से युक्त, पाश्चात्य विद्वानों की देन है, पता नहीं हम कभी इस दूषित शिक्षा से मुक्त होकर अपनी शिक्षानीति के अनुरूप शिक्षा प्राप्त कर भी पाएँगे या नहीं।

खुद को भारतीय कहने वालो गर्व करो

INTRODUCTION

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INDIA-RUSSIA, India
Researcher of Yog-Tantra with the help of Mercury. Working since 1988 in this field.Have own library n a good collection of mysterious things. you can send me e-mail at alon291@yahoo.com Занимаюсь изучением Тантра,йоги с помощью Меркурий. В этой области работаю с 1988 года. За это время собрал внушительную библиотеку и коллекцию магических вещей. Всегда рад общению: alon291@yahoo.com