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Wednesday, October 8, 2014

वेदों में पशु बलि का निषेध :-

देवगिरा संस्कृत में एक ही शब्द के अनेक अर्थ होते

है , इसी तरह एक ही विषय के लिए अनेक शब्द

प्रयुक्त किये जाते है ।

उदाहरणार्थ १ सूर्य के लिए

भानु ,भास्कर,दिवाकर इत्यादि १२ नाम

प्रयुक्त है । इसी तरह १अज शब्द के ३ अर्थ क्रमश:

आत्मा ,३साल पुरानी चावल एवं बकरा होते है

"अजेन यजेत का अर्थ

योगी आत्मा द्वारा परमात्मा की उपासना ऐसा करते

है । कर्मकांडी अज=३ साल पुरानी चावल ,और

आसुरी प्रकृति के वेद विरोधी "बकरा "

ऐसा करते है !!

प्राचीन काल में यज्ञ हिंसा नही थी इस

बात पर मह्रिषी चरक का भी प्रमाण है

जो देखिये :-

.
.यज्ञ के आहुति सम्बन्ध में ओषधि और अनाज

के ,,जिसके बारे में वेदों में ही लिखा है :-

धाना धेनुरभवद् वत्सो अस्यास्तिलोsभवत

(अर्थव १८/४/३२)

धान ही धेनु है औरतिल ही बछड़े है |

अश्वा: कणा गावस्तण्डूला मशकास्तुषा |

श्याममयोsस्य मांसानि लोहितमस्य

लोहितम||(अर्थव ११/३ (१)/५७ )

चावल के कण अश्व है ,चावल

ही गौ है ,भूसी ही मशक है ,चावल

का जो श्याम भाग है वाही मॉस है और लाल

अंश रुधिर है |

यहा वेदों ने इन शब्दों के अन्य अर्थ प्रकट कर

दिए जिससे सिद्ध होता है की मॉस पशु

हत्या का कोई उलेख वेदों में नही है |

अनेक पशुओ के नाम से मिलते जुलते ओषध के नाम है

ये नाम गुणवाची संज्ञा के कारण समान

है ,श्रीवेंकटेश्वर प्रेस,मुम्बई से छपे ओषधिकोष में

निम्न वनस्पतियों के नाम पशु संज्ञक है जिनके

कुछ उधाहरण नीचे प्रस्तुत है :-

वृषभ =ऋषभकंद मेष=जीवशाक

श्वान=कुत्ताघास ,ग्र्न्थिपर्ण कुकुक्ट =

शाल्मलीवृक्ष

मार्जार= चित्ता मयूर= मयुरशिखा

बीछु=बिछुबूटी मृग= जटामासी

अश्व= अश्वग्न्दा गौ =गौलोमी

वाराह =वराह कंद रुधिर=केसर

इस तरह ये वनस्पति भी सिद्ध होती है अत:

यहा यज्ञो में प्राणी जन्य मॉस अर्थ

लेना गलत है |

अत निम्न कथन से भी स्पष्ट है कि प्राचीन

काल में यज्ञ हिंसा नही थी |

मीमासा दर्शन ने इस बात पर प्रकाश

डाला है :-” मांसपाक प्रतिषेधश्च तद्वत |”-

मीमासा १२/२/२

यज्ञ में पशु हिंसा मना है ,वैसे मॉस पाक

भी मना है | इसी तरह दुसरे स्थान पर आता है

१०/३/.६५ व् १०/७/१५ में लिखा है कि ”

धेनुवच्चाश्वदक्षिणा ” और अपि व दानमात्र

स्याह भक्षशब्दानभिसम्बन्धात |”

गौ आदि की भाति अश्व भी यज्ञ में केवल

दान के लिए ही है | क्यूंकि इनके साथ भक्ष शब्द

नही आया है | अत: स्पष्ट है कि पशु वध के लिए

नही दान आदि के लिए थे |

कात्यान्न श्रोतसूत्र मे आया है-

दुष्टस्य हविषोSप्सवहरणम् ।।२५ ,११५ ।।

उक्तो व मस्मनि ।।२५,११६ ।।

शिष्टभक्षप्रतिषिध्द दुष्टम।।२५,११७ ।।

अर्थात होमद्र्व्य यदि दुष्ट हो तो उसे जल मे

फेक देना चाहिए उससे हवन

नहीं करना चाहिए ,शिष्ट

पुरुषो द्वारा निषिध मांस आदि अभक्ष्य

वस्तुयें दुष्ट कहलाती है ।

उपरोक्त वर्णन के अनुसार यहाँ मॉस

की आहुति का निषेध हो रहा है ।

अत: स्पष्ट है कि मॉस बलि वेदों में नही है न

ही प्राचीन काल यज्ञ में थी |

चुकी वेद विरोधी मलेच्छोंने शतपत

का भी प्रमाण दिया है तो हम कुछ बात

शतपत की भी रखते है :-

शतपत में मॉस भोजी को यज्ञ का अधिकार

नही दिया है देखिये :-

”न मॉसमश्रीयात् ,यन्मासमश्रीयात

्,यन्मिप्रानमुप

ेथादिति नेत्वेवैषा दीक्षा ।”(श. ६:२ )

अर्थात मनुष्य मॉस भक्षण न करे , यदि मॉस

भक्षण करता है अथवा व्यभिचार करता है

तो यज्ञ दीक्षा का अधिकारी नही है ….

यहा स्पष्ट कहा है की मॉस भक्षी को यज्ञ

का अधिकार नही है ,अत : यहाँ स्पष्ट

हो जाता है की यज्ञ मे मॉस

की आहुति नही दी जाती थी ।

शतपत में ही ये लिखा है कि मॉस भक्षक

को यज्ञ का अधिकार नही है ।

” अघतेsत्ति च भुतानि तस्मादन्न तदुच्यते (तैत॰

२/२/९)”

प्राणी मात्र का जो कुछ आहार है वो अन्न

ही है |

जब प्राणी मात्र का आहार अन्न होने

की घोषणा है तो मॉस भक्षण का सवाल

ही नही उठता |

वेद विरोधी लोग अर्थव॰ के ९/६पर्याय ३/४

का प्रमाण देते हुए कहते है की इसमें लिखा है

की अथिति को मॉस परोसा जाय|

जबकि मन्त्र का वास्तविक अर्थ निम्न प्रकार

है :-” प्रजा च वा ………………पूर्वोष्श

ातिश्शनाति |”

जो ग्रहस्थ निश्चय करके अपनी प्रजा और पशुओ

का नाश करता है जो अतिथि से पहले

खाता है |

इस मन्त्र में अतिथि से छुप कर खाने या पहले

खाने वाले की निंदा की है …उसका बेटे

बेटी माँ ,पिता ,पत्नी आदि प्रजा दुःख

भोगते है ..और पशु (पशु को समृधि और धनवान

होने का प्रतीक माना गया है )

की हानि अथवा कमी होती है …अर्थात ऐसे

व्यक्ति के सुख वैभव नष्ट हो जाए |

यहा अतिथि को मॉस खिलाने का कोई

उलेख नही है |

अत: निम्न प्रमाणों से स्पष्ट है की प्राचीन

काल में न यज्ञ में बलि होती थी न मॉस

भक्षण होता था ..न ही वेद यज्ञ में पशु

हत्या का उलेख करते है न ही किसी के मॉस

भक्षण का ।

ॐ तत्सत ।

INTRODUCTION

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INDIA-RUSSIA, India
Researcher of Yog-Tantra with the help of Mercury. Working since 1988 in this field.Have own library n a good collection of mysterious things. you can send me e-mail at alon291@yahoo.com Занимаюсь изучением Тантра,йоги с помощью Меркурий. В этой области работаю с 1988 года. За это время собрал внушительную библиотеку и коллекцию магических вещей. Всегда рад общению: alon291@yahoo.com