इसमें कोई दो राय नहीं कि मानव ने धरती के संसाधनों का इतना शोषन किया है कि धरती पर कई खतरे मंडराने लगे हैं। खतरे कम नहीं हुए हैं, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि खतरे केवल मानव प्रदत्त नहीं हैं। कई ऐसे खतरे भी हैं जो प्रकृति प्रदत्त हैं और इन पर हमारा कोई वश नहीं। दरअसल हमारा सौरमंडल आकाशगंगा के उस हिस्से में है, जो उग्र हलचलों की तुलना में शांत है, अन्यथा पृथ्वी पर जीवन को विकसित होने का मौका ही नहीं मिलता। जिस पृथ्वी रूपी यान पर हम सवार हैं, वह मानव निर्मित किसी भी यान से कई-कई गुना तेज गति- 105,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से सूर्य का चक्कर लगा रहा है। इतना ही नहीं, हमारी पृथ्वी और उसका घर सौरमंडल अपने बड़े घर यानी आकाशगंगा (मिल्कीवे) के केंद्र की परिक्रमा करता है और उसका यह यात्रा पथ तरह-तरह के खतरों से भरा पड़ा है।
एलियंस का अस्तित्व है! अभी तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है, लेकिन ज्यादातर खगोलविदों और वैज्ञानिकों का मानना है कि इनका अस्तित्व नकारा नहीं जा सकता। ऐसा इसलिए, क्योंकि अकल्पनीय विस्तार लिए ब्रह्मांड में असंख्य सौर परिवारों तथा ग्रहों में सिर्फ पृथ्वी पर ही बुद्धिमान सभ्यता का विकास हुआ, ऐसा संभव नहीं। आमतौर पर माना जाता है कि एलियंस हमसे बुद्धि और शक्तिमें सदियों आगे हो सकते हैं। कार्ल सगान और स्टीफन हॉकिंग जैसे चर्चित खगोलविदों और कॉस्मोलोजिस्ट का तो मानना है कि कोई भी बाह्य सभ्यता मानव जाति के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। कुछ समय पहले रॉयल एस्ट्रोनॉर्मर मार्टिन रीज ने कहा कि संभव है, एलियंस हमें घूर रहे हों और हम उन्हें अपने सीमित संवेद-बोध के कारण पहचान ही नहीं पा रहे हों। स्टीफन हाकिंग का कहना है कि हमें एलियंस से संपर्क करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से हम संपूर्ण मानव जाति को खतरे में डाल देंगे।
पिछले दिनों सूर्य की सतह पर होने वाली हलचलें चर्चा का विषय बनी रहीं। सूर्य-सतह से उठी ‘सौर-सुनामियों’ की भभक पृथ्वी की कक्षा में परिक्रमारत कृत्रिम उपग्रहों और पावर ग्रिड के लिए खतरा बन गई थीं। सौर ज्वालाएं, दरअसल सूर्य पर होने वाले चुंबकीय विस्फोट हैं, जो पृथ्वी पर तेज गति से उपआण्विक कणों की मूसलाधार वर्षा करते हैं। पृथ्वी का वायुमंडल और चुंबकीय क्षेत्र (ध्रुव) साधारण सौर ज्वालाओं के घातक प्रभाव को तो व्यर्थ कर देता है, लेकिन पुराने खगोलीय रिकार्ड को देखने से पता चलता है कि सूर्य जैसे तारों की चमक कुछ देर के लिए 20 गुना ज्यादा बढ़ जाती है। इन तारों में दिखने वाली यह अतिरिक्त चमक ‘सुपर फ्लेयर’ या महा ज्वालाएं कहलाती हैं, जो कि सामान्य सौर ज्वालाओं से लाखों गुना शक्तिशाली होती हैं। ऐसी ही कोई महासौर-ज्वाला यदि कभी सूर्य से उठ गई तो यह कुछ ही घंटों में पृथ्वी को भून सकती है।
घातक क्षुद्रग्रह, उल्का पिंड, धूमकेतु से पृथ्वी को ज्यादा खतरा उन अंतरिक्षीय आक्रांताओं से है, जिन्होंने एक नहीं कई बार पृथ्वी से प्रजातियों का सफाया किया है। पृथ्वी के दामन पर अंकित लगभग 200 दाग (क्रेटर) इस बात के गवाह हैं। मंगल और बृहस्पति के बीच (एस्ट्रॉटड बेल्ट) में लाखों की संख्या में ऐसी चट्टानें तैर रही हैं। ऐसे पिंड कई बार अपनी कक्षा से भटक कर पृथ्वी के लिए खतरा पैदा कर देते हैं। माना जाता है कि 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व ऐसा ही कोई पिंड पृथ्वी से टकराया था, जिसने डायनासोरों का हमेशा के लिए सफाया कर दिया था। इससे भी बड़ी टक्कर 25 करोड़ वर्ष पहले हुई थी, जिसके बाद समुद्र की 90 प्रतिशत और जमीन पर कशेरुकी जीवों की 70 प्रतिशत प्रजातियां खत्म हो गईं। वैसे पृथ्वी से टकराने वाले ज्यादातर पिंड वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद घषर्ण से जलकर राख हो जाते हैं।
1783 में आइसलैंड में जो भयावह ज्वालामुखी फूटा था, उससे तीन घन मील लावा निकला था। लावा की बाढ़, राख और भभक ने वहां नौ हजार लोगों और 60 प्रतिशत मवेशियों का सफाया कर दिया था। इस परिस्थिति के चलते पैदा हुई विषम जलवायु में भुखमरी के चलते वहां एक-चौथाई जनसंख्या खत्म हो गई थी। वायुमंडल में पहुंची धूल ने तब नए-नए स्वतंत्र हुए अमेरिका में सर्दियों का मौसम पैदा कर तापमान नौ डिग्री तक गिरा दिया था। ज्वालामुखी कार्बन डायऑक्साइड मुक्तकरते हैं जो लंबे समय तक ग्रीन हाउस प्रभाव को गरम बनाए रखते हैं। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि 6.5 करोड़ वर्ष पहले डायनासोरों के खात्मे की संभावित वजह बड़े ज्वालामुखी का फूटना था।
इस तरह के विस्फोट, जिन्हें गामा-रे बस्र्ट यानी ‘जीआरबी’ कहा जाता है, प्रकृति में ज्ञात अब तक के सबसे शक्तिशाली विस्फोट हैं। यदि हमारी आंखें गामा किरणों को देखने की क्षमता रखतीं तो हम देखते कि किस तरह ये ब्रह्मांडीय किरणों हमारा पीछा करती हैं, जो हमारी आंखों को चुंधिया देती हैं। दिन में हमें एक या दो बार हमें ऐसी चमक दिखाई देती है, जिसके सामने सूरज की रोशनी भी फीकी होती है। सौभाग्य से ये विस्फोट हजारों प्रकाश वर्ष दूर आकाशगंगाओं (गैलेक्सीज) में घटित होते हैं और सूर्य से खरबों गुना ऊर्जावान होते हैं।
ये ब्रह्मांड के सबसे शक्तिशाली और रहस्यमय पिंड हैं। इनका गुरुत्वाकषर्ण इतना सशक्तहोता है कि सबसे तेज गति से चलने वाला प्रकाश भी इससे बाहर नहीं निकल सकता। ब्लैक होल इतना संघनित (डेंस) होता है कि 10 करोड़ सूर्य मात्र 60 लाख किलोमीटर व्यास के ब्लैक होल में फिट हो जाएंगे। हमारे सूर्य का व्यास 1,390,000 किलोमीटर है। हर आकाशगंगा के केंद्र में एक भीमकाय ब्लैक होल होता है। खगोलविदों का आकलन है कि सिर्फ हमारी आकाशगंगा में ही करीब एक करोड़ ब्लैक होल हो सकते हैं। विनाश लाने के लिए ब्लैक होल को पृथ्वी के निकट आने की भी जरूरत नहीं होगी। सौरमंडल से काफी दूरी पर गुजरने से ही सारे ग्रहों की कक्षाएं अस्त-व्यस्त हो जाएंगी। संभव है पृथ्वी दीर्घवृत्ताकार कक्षा में चली जाए।