Wednesday, July 15, 2009

एक सशक्त नारी की कहानी - मैडम मेरी क्युरी
मारिया स्कोलोडोवस्का (मेरी ) का जन्म १८६७ में नवम्बर माह की सातवीं तारीख को वारसा (पोलैंड ) में हुआ था. मारिया के माता पिता अध्यापक थे. जिस वक्त मेरी का जन्म हुआ पोलैंड का राजनीतिक वातावरण काफी अस्थिर था .उनकी माता की असमय मृत्यु के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति भी बहुत बिगड़ गई थी. जन्म से २४ साल की उम्र तक वे अपने जन्म स्थान में रहीं. उन्होंने स्नातक प्रथम श्रेणी में उतीर्ण किया.उस समय वारसा विश्वविद्यालय में महिलाओं का प्रवेश वर्जित था.आगे की पढाई के लिए उन्होंने पेरिस के सोरबोन विश्वविद्यालय में नामाकन करने का निश्चय किया आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारन यह उनकी पहुँच से बाहर था, इसलिए उन्होंने और उनकी बहन ने निर्णय लिया की उनकी बहन पेरिस में रहकर डाक्टरी की पढाई करेगी और मेरी यहीं घरेलू अध्यापिका का काम करेंगी, जब बहन डाक्टर बन जायेगी मेरी को भी पेरिस बुला लेंगी.मेरी ने ४ वर्षों तक घरेलू अध्यापिका का काम जारी रखा. इस बीच उन्हें एक परिवार में पढ़ाते हुए उसी परिवार के एक नवयुवक से प्रेम हो गया.एक गरीब अध्यापिका कितनी ही सुन्दर और सुशील क्यों न हो पर एक निहायत ही उच्च वर्गीय परिवार की बहू नहीं बन सकती. इस प्रेम प्रसंग का दुखद अंत हो गया.अंततः पेरिस से बहन का बुलावा आ गया और मेरी सबकुछ भूल कर एक नए भविष्य को ओर चल दी. नवम्बर १८९१ में वह हजारो मील की रेल यात्रा करके पेरिस पहुँच गई .वैसे तो मेरी काफी खुले विचारों वाली युवती थी गर्मी की छुट्टिओं में वह खूब आनन्द मनाती दिनों तक बहनों के साथ नृत्य करती पर बहन के पास पेरिस में जीजा की दिल बहलाव चर्चाओं से उसका अध्ययन प्रभावित होना उसे नागवार गुजरने लगा.उन्होंने इससे बचने के लिए अलग कमरा लेना ठीक समझा.समस्या यह थी की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण अच्छा और सुविधाजनक कमरा मिलना नामुमकिन था इसलिए मेरी ने छठवीं मंजिल पर एक कमरा किराये पर ले लिया जो गर्मी में गर्म और सर्दी में बहुत ठंढा हो जाता था.मेरी काम पर जाती,लौटते वक्त फल ,सब्जियां और अंडे लाती ( क्योंकि खाना पकाने का वक्त नहीं बचता था ) फिर तपते गर्म या सिल -ठंढे बिस्तर पर सो जाती.अपनी आत्मकथा में मेरी ने लिखा "यह मेरे जीवन का सबसे कष्टप्रद भाग था, फिर भी मुझे इसमें सच्चा आकर्षण लगता है. इससे मुझमे स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की बहुमूल्य भावनाएं पैदा हुई. एक अनजानी लड़की पेरिस जैसे बड़े शहर में गुम सी हो गई थी, किन्तु अकेलेपन में भी मेरे मन में शांति और संतुष्टि जैसी भावनाएं थी ."पेरिस में ही उनकी मुलाकात पियरे क्युरी से हुई. पियरे क्युरी वैज्ञानिक कार्य के प्रति पूर्णतया समर्पित वैज्ञानिक थे. वे विवाह की संभावनाओं को लगातार झुठलाते जा रहे थे क्योंकि उनका मानना था "जीवन को जीने के लिए स्त्रियाँ पुरुषों से अधिक प्यार करती है ,परन्तु एक प्रतिभाशाली स्त्री का मिलना दुर्लभ है". पियरे क्युरी को मेरी में यह दुर्लभता दिखाई दी.इसके बाद क्युरी दम्पति ने एक गोदामनुमा कमरे को प्रयोगशाला का रूप देकर शोध कार्य आरम्भ किया. उन्होंने देखा कि शुद्ध यूरेनियम की जगह यूरेनियम खनिज में अधिक सक्रियता होती है और इससे यह प्रमाणित होता है की मिश्रित यूरेनियम में कोई अज्ञात सक्रिय तत्व है और तत्काल शोध कार्य उस अज्ञात तत्व की तरफ मुड़ गया. अंततः शोधकार्य सफल हुआ और एक नए तत्व की खोज हुई जिसका नाम उन्होंने अपने देश के नाम पर पोलोनियम रख दिया.दूसरी तरह उन्ही के एक सहयोगी ने रेडियम की खोज का दावा किया.इन दावों को मान्यता तब मिलती जब वे इन तत्वों को शुद्ध रूप में प्राप्त करके इनकी भौतिक और रासायनिक गुणों की व्याख्या करते.यह एक कठिन कार्य था खासकर तब, जब उनके पास न तो प्रयोगशाला थी, न ही उपकरण और न ही कच्चे खनिज की पर्याप्त मात्रा. उसपर भी गोदामनुमा प्रयोगशाला में न ही गैस निकासी की व्यवस्था थी न ही सामान्य किस्म के उपकरण ही उपलब्ध थे.वहाँ का वातावरण का दूषित और अस्वास्थ्यकर था. मेरी क्युरी ने इस कठिन समय के बारे में लिखा "इस कष्टप्रद पुराने गोदाम में हमने अपने जीवन के सर्वोतम वर्ष, अपने कार्य को समर्पित करते हुए बिताये. कभी-कभी मुझे मेरी लम्बाई जितनी बड़ी लोहे के छड़ से उबलते हुए पदार्थ को मिलाने में पूरा-पूरा दिन व्यतीत करना पड़ता था. मैं शाम तक थकान से टूट जाती थी .इसके विपरीत काम तब बहुत सूक्ष्म और गंभीर हो जाता जब रेडियम के क्रिस्टलीकरण पर ध्यान केन्द्रित करना पढता था. मैं तब बहुत ही क्षुब्ध हो जाती थी जब दूषित धुँए और धुल से इतनी मेहनत से प्राप्त किये उत्पाद को नहीं बचा पाती थी. इसके बावजूद मैं शोध के उस अबाधित और शांत माहौल में मिले हर्ष को कभी अभिव्यक्त नहीं कर पाऊँगी."पियरे दम्पति ने शोध कार्य में खुद को इस कदर डुबो दिया की उनका सामाजिक जीवन लगभग खत्म हो गया. १९०३ में मेरी को पीएच . डी की उपाधि मिली. पियरे ने रायल सोसाइटी के समक्ष अपने द्वारा किये गए शोध पर एक व्याख्यान दिया जो बहुत प्रशंसित हुआ. कुछ समय बाद ही क्युरी दंपती को वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण खोज के लिए हम्फ्री डेवी पुरुस्कार दिया गया. १९०३ में ही क्युरी दंपती को बेकुरल के साथ भौतिकी के क्षेत्र में नोबल पुरुस्कार मिला. नोबल मिलने के बाद न सिर्फ इनकी आर्थिक स्थिति में सुधर आया वरन काफी लोकप्रियता भी मिली.प्रसिद्धि के कुछ अँधेरे पहलू भी होते हैं.रेडियो सक्रीय पदार्थों से मुक्त हुई किरने बहुत तीक्ष्न होती है, इनसे जीवित कोशिकाएं नष्ट होने का खतरा होता है. कई बार शरीर पर जलने के घाव बन जातें हैं. अधिक समय रेडियो सक्रीय पदार्थों के बीच रहने के कारन मेरी को रक्त अल्पता और थकान का अनुभव होने लगा और पियरे को भयावह दर्द के दौरे पड़ने लगे. इन विकिरण जनित बिमारिओं के चरम तक पहुचने के पूर्व ही एक दुर्घटना में पियरे का निधन हो गया. तब वे महज ४७ साल के थे. इस दुर्घटना के बाद मेरी टूट गईं. वे शांति चाहती थी परन्तु मिला कोलाहल.उन्हें पियरे के स्थान पर सोरबोन में प्राध्यापक नियुक्त किया गया.यह पद पहली बार किसी महिला को दिया गया था. मेरी ने कार्य आरम्भ किया जहाँ से पियरे ने छोडा था .मेरी टूट चुकी थी. उनकी जिंदगी के अंधकार का असर उनकी पोशाक के काले रंग के रूप में सबके सामने आने लगा था.पतझड़ बिता फिर बसंत आया ..और १९१० के बसंत ने मेरी को एक नए प्रेम प्रसंग में डुबो दिया. पाल लैंगविन जो उनका लम्बे समय तक मित्र रह चुका था अब सिर्फ मित्र न रहा. मेरी और लैगोविन ने सोरबोन के पास ही एक मकान किराये पर ले लिया. लैगोविन विवाहित थे और उनके चार बच्चे भी थे . उनकी पत्नी ने इस सम्बन्ध का विरोध किया और हर और इसकी आलोचना होने लगी. कई अवसरों पर मेरी को अज्ञात जगहों पर रहना पड़ा . इस अपमान जनक अभियान को प्रेस और तथाकथित बुद्धिजीविओं का पूरा संरक्षन मिला क्योंकि वे विज्ञानं अकादमी के एक चुनाव में प्रत्याशी थी और वे लोग नहीं चाहते थे की मेरी जीतें. पूरी जिंदगी में मेरी को ईर्ष्या जनित भेदभाव का सामना करना पड़ा क्योंकि वह एक स्त्री थी. अकादमी के चुनाव में उनके प्रतिद्वंदी ने मात्र दो मतों से उनसे विजय हासिल की.इस बीच १९११ में उन्हें दुबारा नोबल मिला रसायन शास्त्र में उनके योगदान के लिए. नोबल पुरुस्कार समिति के एक अधिकारी स्वानाते अर्रहेनियास ने सुझाव दिया की पुरस्कार को लैगोविन के तलाक के फैसले और मेरी की साफ़ छवि स्थापित हो जाने तक स्थगित कर दिया जाना चाहिए. मेरी ने इसका विरोध किया उन्होंने एक सदस्य को लिखा "यह पुरस्कार मुझे रसायनशास्त्र में मेरे योगदान के लिए दिया जा रहा है, मेरे निजी जीवन से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है. अतः इसे मेरे निजी जीवन के अपयश से यह प्रभावित नहीं किया जाना चाहिए ".अंततः फैसला हुआ दिसम्बर १९११ में मेरी ने स्काट होम जाकर यह पुरुस्कार ग्रहण किया. यद्यपि मेरी का स्वस्थ ठीक नहीं चल रहा था फिर भी मेरी ने द्वितीये विश्वयुद्ध में बेटी आइरीन के साथ चलंत एक्स रे इकाई का गठन किया और और चिकित्सीय कार्यों में अपनी खोज की उपयोगिता दिखाई. उनके निजी प्रयासों से चलित इकाइयों की संख्या २० और स्थाई की २०० पहुँच गई. युद्ध के बाद मेरी मेरी ने रेडियन शोध संस्था के अधूरे कार्य को पूरा किया. यह संस्था पियरे को समर्पित थी.१९१५ आते -आते यह संस्था विश्विख्यात शोध केंद्र बन गई. मेरी खुद ही शोधकर्ताओं का चयन करती थी. मेरी को यात्राओं से नफरत थी बावजूद इसके उन्होंने संस्था के प्रचार के लिए देश -विदेश की यात्रा की. सबसे संस्था के लिए समर्थन जुटाया. इस कार्य के लिए उन्हें अमिरीकी महिला पत्रकार मेरी मिलोनी का बहुत सहयोग प्राप्त हुआ. मेरी को अमेरिका तक लाने के लिए मिलोनी ने उसे वाईट हाउस में समारोह के दौरान राष्ट्रपति द्वारा दिए जाने वाले एक ग्राम रेडियम जिसकी कीमत हजारों रुपये थी का प्रलोभन दिया . मेरी ने संस्था के भविष्य को देखते हुए अमेरिका जाने का फैसला किया.उन्होंने राष्ट्रपति से १ ग्राम रेडियम का उपहार ग्रहण किया .अंततः अस्वास्थ्यता की अवस्था में उनकी मृत्यु १९३४ में हुई और उन्हें पियरे की बगल में दफनाया गया. मेरी ने जिंदगी भर नारी होने की कीमत चुकाई. उनकी प्रतिभा की तुलना उनके व्यक्तिगत जीवन से की जाती रही.
http://sanchika.blogspot.com/ से धन्यवाद सहित

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